Chhath Puja: क्यों मनाई जाती छठ पर्व, क्या आप जानते हैं इसका पौराणिक महत्व और कहानी

Chhath Puja Ki Kahani: बिहार और उत्तर प्रदेश में लोक एवं आस्था के महापर्व का विशेष महत्व है। पूर्वांचल वासियों के लिए यह सिर्फ एक पर्व ही नहीं, बल्कि एक महापर्व है जिसका जश्ने 4 दिनों तक लगातार रहता है। इस महापर्व की शुरुआत नहाए खाए की रस्म के साथ होती है, जो डूबते और उठते सूरज को अर्घ्य देने के साथ समाप्त होती है। छठ का त्यौहार साल में दो बार मनाया जाता है। इस कड़ी में पहली बार चैत्र महीने में और दूसरी बार कार्तिक मास में मनाई जाती है। चैत्र पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ और कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाली छठ को महाछठ कहा जाता है ।कार्तिक मास में मनाई जाने वाली छठ का एक ऐतिहासिक महत्व है एवं इसकी कथा पौराणिक है।

क्यों मनाई जाती है छठ पूजा (Why is Chhath Puja celebrated?)

छठ पूजा की परंपरा की शुरुआत पौराणिक काल में हुई थी। इस के संदर्भ में कई कथाएं भी प्रचलित है। मान्यता के मुताबिक जब भगवान श्रीराम और माता सीता 14 साल के लिए वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ का आयोजन किया था। इस दौरान पूजा के लिए उन्होंने मुंग्दल ऋषि को भी आमंत्रित किया।

इसके बाद मुंग्दल ऋषि ने माता सीता पर गंगाजल छिड़क कर उन्हें पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की छठी तिथि पर सूर्य देव की उपासना करने के आदेश दिए, जिससे माता सीता ने मुंग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर 6 महीने तक सूर्य भगवान की पूजा अर्चना की इसके बाद सप्तमी को सीता माता ने सूर्य देव के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद लिया।

कब से हुई छठ पूजा की शुरुआत (When did Chhath Puja start?)

भारतीय संस्कृति एवं हिंदू मान्यता के मुताबिक यह कथा प्रचलित है कि छठ महापर्व की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। इस दौरान इस पर्व को सबसे पहली बार सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा के साथ शुरू किया था। माना जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह घंटों पानी में खड़े रहने के उपरांत भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया करते थे। सूर्य की कृपा से ही कर्ण महान योद्धा बने थे। इसी के साथ आज भी छठ में अर्घ्य देने की परंपरा प्रचलित है।

whatsapp channel

google news

 

द्रौपदी ने भी रखा था छठी मैया का व्रत

छठ महापर्व को लेकर एक और कथा प्रचलित है, जिसके मुताबिक जब पांडव सारा राजपाट जुए में हार गए तब द्रौपदी ने छठी मैया का व्रत रखा था। इस व्रत को रखते हुए उन्होंने मनोकामना की थी कि पांडवों को उनका सब कुछ वापस मिल जाए और उनकी मनोकामना पूरी हुई। लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मैया का संबंध भाई बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना बेहद फलदाई मानी जाती है।

क्या है छठ महापर्व की पौराणिक कथा (What is the mythical of Chhath Mahaparv)

इसके साथ ही इन कथाओं में एक और कथा प्रचलित है। पुराणों के मुताबिक प्रियव्रत नामक एक राजा था, जिसकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए उसने हर जतन किए, लेकिन उसे फल नहीं मिला। तब महर्षि कश्यप ने उसे पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्र यष्टि यज्ञ कराने का परामर्श दिया। यज्ञ के बाद महारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मृत पैदा हुआ। राजा के मृत बच्चे की सूचना ने पूरे नगर में हाहाकार मचा दिया और इस खबर के बाद पूरा नगर शोक में डूब गया।

इसके बाद राजा मृत बच्चे को दफनाने की तैयारी कर रहे थे कि तभी आसमान से एक ज्योति में विमान धरती पर उतरा। इस में बैठी देवी ने कहा- मैं षष्ठी देवी और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं। इतना कहकर देवी ने शिशु को अपने स्पर्श से जीवित कर दिया। तब से राजा के राज्य में यह त्यौहार मनाने की घोषणा कर दी गई और इसे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने लगा।

Share on