रेलवे ने दिव्यांगता के कारण प्रांजल को नहीं दी नौकरी, हिम्मत ना हार प्रांजल IAS बन दिखा दिया

अक्सर दुनिया उन लोगों को कम आकती है जो किसी भी तरह से अपने शरीर से असमर्थ हो। लेकिन ऐसा नही है अगर मन में चाह और हौसले बुलंद हो तो किसी भी तरह की कोई भी कमी आपको रोक नही सकती है। ऐसी ही एक कहानी है प्रांजल की है, जो भले ही दृष्टिहीन हैं लेकिन उन्होंने अपने हिम्मत, हौसले और नेक इरादों से दुनिया को यह दिखा दिया कि वो किसी आम व्यक्ति से कम नही है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि भले ही उनके पास आंखों की रोशनी नही है पर उन्हें सपने देखने और उन्हें पूरा करने से कोई नही रोक सकता।

बनी देश की पहली दृष्टिहीन महिला आईएएस

महाराष्ट्र के उल्हासनगर की रहने वाली प्रांजल देश की पहली दृष्टिहीन महिला आईएएस अफसर है। इनकी कहानी किसी भी प्रेरणा से कम नही है। भले ही प्रांजल के आंखों ने उनके जीवन में अंधियारा ला दिया है पर उन्होंने अपने हौसलों के बदौलत से अपने जीवन में रोशनी का सवेरा लाया है। उनके इरादों से जीवन का सारा अंधियारा छंट गया है। प्रांजल ने अपने पहले ही प्रयास में ही यह सफलता हासिल कर ली थी। उन्होने राष्ट्रीय स्तर पर 773वां रैंक हासिल किया ।

रेलवे ने दिव्यांगता के कारण प्रांजल को नहीं दी नौकरी

प्रांजल ने परीक्षा पास तो कर ली पर उनके आगे का सफर आसान नही था। यूपीएससी में सफल होने के बाद प्रांजल भारतीय रेलवे में आई और उन्हें वहां आई.आर.एस के पद पर काम करने का अवसर दिया गया। लेकिन ट्रेनिंग में भाग लेने के बाद उन्हें वहां से दृष्टिहीन होने के कारण रिजेक्ट कर दिया गया। लेकिन प्रांजल वहां रुकी नही। वो अपनी सोच और मेहनत से मिले पद को हासिल कर समाज में एक बदलाव लाना चाहती थी।

प्रांजल को रेलवे की और से दिए गए कारण से बेहद दुख पहुंचा और उनको यह बात दिल में चुभ गई। लेकिन प्रांजल थक कर बैठी नही उन्होंने पूरे विश्वास के साथ आगे कदम बढ़ाया। इस बीच उन्होंने कई मुश्किलों को सामना किया। उन्होंने बताया कि जब वो 6 साल की थी तब एक बच्चे ने उनके आंखों में पेंसिल चुभा दी थी और इस हादसे के बाद प्रांजल की आंखों की रोशनी चली गई। इतना ही नही इस हादसे के साइड इफेक्ट्स के कारण उनकी दूसरी आँख की भी रोशनी चली गई ।

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ऐसे की पढ़ाई पूरी

उनके पिता ने उनकी पढ़ाई के लिए उनका एडमिशन मुम्बई के दादर स्तिथ श्रीमती कमला मेहता स्कूल में कराया , जहां उन्होंने ब्रेल लिपि के माध्यम से अपनी 10 तक कि पढ़ाई पूरी की और फिर चंदाबाई कॉलेज से 12वी की पढ़ाई पूरी की। इतना ही नही उन्होंने अपने 12वीं की परीक्षा में 85 फीसदी अंक प्राप्त किये और फिर आगे की पढ़ाई के लिए मुम्बई के सेंट ज़ेवियर कॉलेज में दाखिला लिया। प्रांजल के लिए यह सफर आसान नही था। उन्होंने बताया कि वह हर रोज उल्हासनगर से सीएसटी तक का सफर करती थी। कभी कुछ लोग उनकी मदद करते थे तो कभी कुछ लोग उन्हें घर में बैठने की सलाह देते थे।

ऐसे मिला मोटिवेशन

अपने ग्रेजुएशन के दिनों में प्रांजल ने यूपीएससी के ऊपर एक आर्टिकल पढ़ा और फिर उन्होंने ओर अपना रुख मोड़ लिया। उन्होंने यूपीएससी से संबंधित जानकारियों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया और मन ही मन आईएएस बनने का मजबूत इरादा बना लिया। अपनी ग्रेजुएशन की डिग्री लेने के बाद प्रांजल दिल्ली पहुंची और वहां उन्होंने जेएनयू से अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। जेएनयू में पढ़ाई के दौरान ही प्रांजल ने आंखों से अक्षम लोगों की पढ़ाई के लिए बने एक खास सॉफ्टवेयर जॉब ऐक्सेस विद स्पीच के बारे में जाना और उससे एक्सेस करना शुरू किया। लेकिन अब उनके सामने एक और मुश्किल थी।प्रांजल को एक ऐसे शख्स की जरूरत थी जो उनके स्पीड को मैच कर तेजी से लिख सके।

शादी के बाद किया तैयारी

प्रांजल ने साल 2015 में अपनी एम.फिल की पढ़ाई के साथ साथ यूपीएससी की तैयारियां भी शुरू कर दी। लेकिन इसी बीच उनकी शादी हो गई और उन्होंने अपनी शादी को लेकर यह शर्त रखी कि उनकी पढ़ाई शादी के बाद भी चलती रहेगी। साल 2015 में प्रांजल ने अपनी मेहनत और पति, परिवार की मदद से परीक्षा को पास कर लिया और 773वां रैंक हासिल किया। पर परीक्षा पास करने के बाद भी रलवे से वो रिजेक्ट हो गई। लेकिन उन्होंने हिम्मत नही हारी और दुबारा एग्जाम दिया जिसमें उन्होंने 124वां रैंक लाकर एक इतिहास रच दिया।

किया अपना मुकाम हासिल

अपने दूसरे प्रयास में बेहतर रैंक से पास होकर प्रांजल ने उन लोगों के मुंह पर करारा तमाचा मारा जिन्होंने उनकी कमी को बताकर उन्हें घर में बैठने की सलाह दी थी। प्रांजल ने 124वां रैंक तो लाया ही साथ ही वह दिव्यांग वर्ग में नंबर वन पर भी आई। अपनी कमियों को अपना हौसला बनाकर प्रांजल ने हर मुश्किलों को पीछे छोड़कर यह मुकाम हासिल किया और लाखों लोगों के लिए एक प्रेरणा बन गई।

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