बिहार के इस एक मंदिर में झुंड बना आरती में शामिल होते हैं कुत्ते, भौंक-भौंक कर मिलाते है सुर

बिहार के बक्सर में एक ऐसा मंदिर है जहां पर आरती के दौरान दशकों से कुत्ते नियमित रूप से भाग ले रहे हैं। यह नजारा आने जाने वाले लोगों को हैरान कर देता है। आपको बता दें कि यह मंदिर बक्सर मैं स्थित है इस मंदिर का नाम श्मशामवासिनी मां काली मंदिर है।

इस काली मंदिर में सुबह और शाम की रस्मों में कुत्तों की शिरकत होती रही है। प्रार्थना शुरू होने से पहले आसपास के सभी कुत्ते मंदिर के दरवाजे के सामने खड़े हो जाते हैं। शंख, ध्वनि और झाल-मंजीरे की आवाज के बीच कुत्तों के भौंकने की आवाज जब घुल-मिल जाती है, तो प्रार्थना का स्वरूप अनूठा हो जाता है। बरसों से यही परंपरा चली आ रही है। मंदिर की सीढ़ी गर्भ गृह के सामने मुंह कर खड़े हो जाते हैं और एक स्वर में भोंकते हैं। आरती के बाद प्रसाद में इन्हें भी मिश्री का प्रसाद दिया जाता है प्रसाद खाकर कुत्ते वहां से चले जाते हैं।

20 साल से आरती में शामिल हो रहे कुत्ते

मंदिर के पुजारी मुन्ना पंडित ने बताया कि ऐसा पिछले दो दशकों से चला आ रहा है। आरती के समय कुत्ते शामिल हो जाते हैं। पुराने लोग बताते हैं कि मां काली की आरती के दौरान बहुत सारे कुत्ते जमघट लगाए रहते हैं। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि कुत्ते कभी शरारत नहीं करते इससे आज तक किसी को नुकसान नहीं पहुंचा। मंदिर से कुत्तों का जुड़ाव को देखते हुए इसी परिसर में श्री काल भैरव नाथ मंदिर का निर्माण कराया गया है। यहां के लोगों का मानना है कि इस मंदिर में पूजा करने से काल विपदा टल जाती है।

सप्ताह में 2 दिन होती है शिवाबलि पूजा

इस काली मंदिर में सप्ताह में सिर्फ 2 दिन ही विशेष पूजा होती है। सप्ताह के रविवार और मंगलवार को एक विशेष पूजा होती है जिसे शिवाबली पूजा कहा जाता है। इसमें कई तरह के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं पूजा खत्म होने के बाद कुत्तों को भोग लगाया जाता है। कुछ लोगों से बातचीत के दौरान पता चला कि यहां का खर्च फक्कड़ बाबाओं की आमद से चलता है। आपको बता दें कि शमशान घाट में कर्मकांड कराने के बदले फक्कड़ बाबा को जो भी पैसे मिलते हैं उसका आधा हिस्सा वह मंदिर के खाते में लगा देते हैं।

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