सदियों पहले भारत के इस ऋषि ने सूर्यग्रहण के बारे मे लगा लिया था पता

साल 2021 का पहला सूर्य ग्रहण 10 जून को दोपहर 1:42 में शुरू हुआ और शाम से 6:41 बजे तक जारी रहा। यह ग्रहण देश के ज्यादातर हिस्सों में नजर नहीं आया। आज हम उन ऋषि का नाम बताएंगे जिन्हें सूर्य ग्रहण का ज्ञाता कहा जाता है। यानी खगोलीय घटनाओं के बहुत बड़े जानकार।

भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र थे अत्रि ऋषि :-

सदियों पहले भारत के  इस ऋषि ने सूर्यग्रहण के बारे मे लगा लिया था पता

ऋषि-मुनियों को ग्रह नक्षत्रों की इस घटना का ज्ञान बहुत पहले से ही है। महर्षि अत्रि ग्रहण के ज्ञान को देने वाले प्रथम आचार्य माने गए हैं। अत्रि ऋषि भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र थे। पुराणों के अनुसार चंद्रमा दत्तात्रेय और दुर्वासा ब्रह्मा जी के असल पुत्र थे। ऋग्वेद में भी अत्रि ऋषि का उल्लेख किया गया है। इनकी पत्नी का नाम अनुसुइया थी। अनुसूया की गिनती 16 सतियों में होती थी। जिन्होंने अपने सतीत्व के तपोबल से ब्रह्मा, विष्णु, महेश को छोटे बच्चों में बदल दिया था।

अत्रिमुनि को था ग्रहण का बेहतर ज्ञान :-

सदियों पहले भारत के  इस ऋषि ने सूर्यग्रहण के बारे मे लगा लिया था पता

whatsapp channel

google news

 

ऋग्वेद के अनुसार अत्रिमुनि और उनके परिवार को ग्रहण का बेहतर ज्ञान था। महर्षि अत्रि मुनि ग्रहण का ज्ञान का देने वाले पहले आचार्य माने जाते हैं। जिसमें आसमान में टिमटिमाते तारों से लेकर अज्ञात ग्रहों का अध्ययन शामिल था। महर्षि अत्रि ने ग्रहण का ज्ञान बाकी लोगों को भी दिया।

महाभारत युद्ध की शुरुआत ग्रहण के समय हुई थी। वहीं युद्ध के आखिरी दिन भी ग्रहण था। इसके साथ ही युद्ध के बीच में एक सूर्यग्रहण और हुआ था। इस तरह 3 ग्रहण होने से महाभारत का भीषण युद्ध हुआ। महाभारत में अर्जुन ने प्रतिज्ञा ली थी कि वो सूर्यास्त के पहले जयद्रथ को मार देंगे वरना खुद अग्निसमाधि ले लेंगे।

1 साल में 3 से अधिक ग्रहण है अशुभ :-

सदियों पहले भारत के  इस ऋषि ने सूर्यग्रहण के बारे मे लगा लिया था पता

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 1 साल में 3 या उससे अधिक ग्रहण हो तो वह शुभ नहीं माना जाता है। ऐसा होने पर देश में रहने वालों लोगों को नुकसान होता है बीमारियां बढ़ती है, देश की आर्थिक स्थिति में उतार-चढ़ाव आते हैं। कई जगह प्राकृतिक आपदाएं भी देखने को मिलती है।

सदियों पहले भारत के  इस ऋषि ने सूर्यग्रहण के बारे मे लगा लिया था पता

हर किस्से के दो पहलू होते हैं जिस तरह पुराने युग में सूर्य ग्रहण का अलग तरीके से जिक्र किया गया है। वहीं इसका एक वैज्ञानिक पहलू भी हैं। विज्ञान की मानें तो सूर्य ग्रहण एक खगोलीय घटना है जब चंद्रमा घूमते-घूमते सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है तो स्कूल की चमकती रोशनी चंद्रमा के कारण दिखाई नहीं पड़ती। चंद्रमा के कारण सूर्य पूर्ण या आंशिक रूप से ढकने लगता है। इसी को सूर्य ग्रहण कहां जाता है लेकिन पुराने वेदों में सूर्य ग्रहण का जिक्र कुछ और तरीके से ही हैं।

Share on