Anand Mohan: आजाद भारत का पहला नेता जिसे मिली फांसी की सजा, लेकिन अब सड़कों पर घुमेगा रिहा

Anand Mohan rihai: बिहार की राजनीति में इन दिनों बाहुबली आनंद मोहन की रिहाई की खबर ने भूचाल मचा दिया है, जहां एक ओर नीतीश सरकार आनंद मोहन की रिहाई को लेकर निर्देश दे रही हैं, तो वही विपक्षी पार्टी इस पर हमलावर हो गई है। ऐसे में आनंद मोहन की रिहाई बिहार की राजनीति में कौन सा नया हंगामा मचाती ,है यह तो आने वाले वक्त में पता चलेगा… लेकिन क्या आप जानते हैं कि बिहार की राजनीति में हमेशा बाहुबलियों की खास भूमिका रही है। बात चाहे सूरज भान की हो, शहाबुद्दीन की, सुनील पांडे की या फिर आनंद मोहन की… इन सभी ने बिहार की राजनीति पर अपनी छवि से गहरा प्रभाव डाला है। आनंद मोहन जेडीयू के पूर्व सांसद रह चुके हैं। ऐसे में आइए हम आपको आनंद मोहन की बाहुबली राजनीतिक छवि के बारे में कुछ खास बातें बताते हैं।

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गैंगस्टर से राजनेता बने आनंद मोहन का सफर

आनंद मोहन ने गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की हत्या कर दी थी। इस मामले में फिलहाल वह जेल में सजा काट रहे हैं। आनंद मोहन अपने जीवन के शुरुआती सफर में गैंगस्टर हुआ करते थे, बाद में वह अपनी इसी बाहुबली छवि के साथ राजनीति की दुनिया में उतर गए और जेडीयू से सांसद बन गए। बिहार की राजनीति में आनंद मोहन का नाम हमेशा सुर्खियों में रहा। आनंद मोहन को राजपूत समाज का वोट बैंक भी माना जाता है। ऐसे में उनकी रिहाई को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है।

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आनंद मोहन सहित बिहार सरकार 27 दोषियों को रिहा करने की अनुमति देने के फैसले के पीछे जेल नियमों में बदलाव का हवाला दे रही है। इस तरह एक बार फिर आनंद मोहन की बिहार की राजनीति में वापसी हो सकती है। ऐसे में आनंद मोहन की रिहाई राजनीति गलियारों में इस समय सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोर रही है। जहां एक ओर बिहार सरकार आनंद मोहन की रिहाई के साथ सुर्खियों में है, तो वहीं विपक्ष भी लगातार नीतीश सरकार पर हमलावर है।

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कौन है बाहुबली नेता आनंद मोहन

आनंद मोहन बिहार के सहरसा जिले के पंचगछिया गांव के रहने वाले हैं। उनके दादा राम बहादुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे। आनंद मोहन ने साल 1974 में लोक प्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन के दौरान राजनीति की दुनिया में एंट्री की थी। 17 साल की उम्र में आनंद मोहन राजनीति की दुनिया से जुड़ गए थे। इसके बाद उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी और इमरजेंसी के दौरान आंदोलन के चलते 2 बार जेल भी गए। 90 के दशक में आनंद मोहन का नाम बिहार की राजनीति में एक खौफ का चेहरा था।

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90 के दशक में बिहार की राजनीति में आनंद मोहन के नाम की तूती बोलती थी। जेपी आंदोलन के जरिए आनंद मोहन बिहार की सियासत में आए और 1990 में सहरसा जिले की महिषी सीट से जनता दल के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे। इस दौरान बिहार की सत्ता लालू प्रसाद यादव के हाथ में थी। ऐसे में स्वर्ण के हक के लिए उन्होंने 1993 में बिहार पीपल्स पार्टी का गठन किया। लालू का विरोध कर रहे थे इसलिए राजनीति की दुनिया में बेहद जल्दी छा गए।

हमेशा लालू की सोच के विरुद्ध रहे आनंद मोहन

बिहार की राजनीति में आनंद मोहन का नाम एक कद्दावर और बाहुबली नेता के तौर पर लिया जाता है। आनंद मोहन के नाम पर लोग वोट देते हैं। राजपूत तबके में उनकी धाक सबसे ज्यादा है। बिहार की राजनीति जब से शुरू हुई तब से जातिवाद के नाम पर ही चुनाव लड़ा जाता है और जातिवाद के नाम पर ही वोट आते हैं। ऐसे में 90 के दशक में सामाजिक सोच का ताना-बाना बुन जात की लड़ाई पर आनंद मोहन खुलकर बोलते और लालू प्रसाद यादव का विरोध जताते नजर आए। आनंद मोहन एक और राजनीति की दुनिया में छा रहे थे, तो वहीं दूसरी और उनकी दबंगई के किस्से भी कम नहीं थे। हत्या, लूट, अपहरण, फिरौती, दबंगई जैसे दर्जनों मामले उन पर दर्ज हो गए थे।

आजाद भारत के पहले नेता, जिन्हें फांसी की सजा सुनाई गई

बता दे आनंद मोहन ने साल 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या कर दी थी। इस मामले में साल 2007 में एक अदालत में आनंद मोहन को फांसी की सजा सुनाई थी। इसके बाद निचली अदालत के खिलाफ अपील दायर करते हुए पटना की उच्च अदालत में केस पहुंचा, तो उनकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया, लेकिन अब बिहार सरकार के फैसले के बाद वह जल्द ही सड़कों पर घूमते नजर आ सकते हैं।

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