अगर इंसान ठान ले और मन के भीतर हौसला जगा ले कुछ कर गुजर जाने का तो दुनिया की हर मुश्किलों को पार करते हुए वह आगे बढ़ेगा. हम आज ऐसे एक संघर्ष की कहानी बता रहे हैं जो आपको भीतर तक झकझोर देगी. इस कहानी से हर स्टूडेंट प्रभावित होगा खासतौर पर यूपीएससी की तैयारी करने वाले छात्रों को यह स्टोरी जरूर पढ़नी चाहिए. यह कहानी है राकेश शर्मा की जिन्होंने अपनी बचपन में दोनों आंखें की रोशनी खो दी थी.
Delhi Knowledge Track को दिए गए इंटरव्यू में राकेश ने अपनी जिंदगी से जुड़ी हर पहलुओं पर बात की साथ ही उन्होंने यूपीएससी परीक्षा की तैयारी के दौरान उन्हें किस तरह का कठिनाइयों का सामना करना पड़ा इन सब पर चर्चा की…
2 साल की उम्र में गवा दी आंख की रोशनी
इंटरव्यू के दौरान उन्होंने अपनी जिंदगी से जुड़ी पहलुओं पर बात करते हुए उन्होंने बताया. एक दवा के रिएक्ट कर जाने के कारण उनकी आंखों की रोशनी चली गई. उनके परिवार वालों ने इलाज करवाया काफी इलाज के बावजूद भी कोई फायदा नहीं हुआ. उनकी आंखों की विजन पूरी तरह चला गया और वह बिल्कुल भी देख नहीं सकते.
यह समय उनके माता-पिता और परिवार वालों के लिए बहुत कठिन था, पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. कुछ लोगों ने उन्हें यहां तक सलाह दे डाली कि इसे किसी आश्रम में डाल दो ताकि ठीक से पल जाएगा और खाने-पीने की चिंता नहीं करनी होगी. लेकिन राकेश के माता-पिता ने मन में ठान लिया था कि वे इसे आम बच्चे की तरह ही पालेंगे और कभी भी इसे इस कमी को उसके दिमाग पर हावी नहीं होने देंगे.
नहीं मिला सामान्य स्कूल में एडमिशन
आंखों की रोशनी चले जाने के बाद बहुत कोशिशों के बावजूद भी उन्हें सामान्य बच्चों के स्कूल में एडमिशन नहीं मिला. मजबूरन उन्हें स्पेशल स्कूल से अपनी शुरुआती पढ़ाई पूरी करनी पड़ी. 12वीं के बाद जब राकेश दिल्ली यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया तो उनके जीवन में काफी बदलाव आए यहां से उनका कॉन्फिडेंस लेवल काफी ऊपर चढ़ा. बातचीत के दौरान राकेश ने बताया कि दिल्ली यूनिवर्सिटी में होने वाली एक्टिविटीज और वहां के शिक्षक तथा साथियों के प्रोत्साहन से वे ना केवल जीवन के तमाम और पहलुओं से रूबरू हुए बल्कि उनके अंदर कुछ और बड़ा करने की इच्छा ने भी जन्म ले लिया. यहां से उनका कॉन्फिडेंस लेवल काफी बढ़ गया इसके बाद राकेश ने कभी मुड़ कर पीछे नहीं देखा.
ऐसे आए सिविल सेवा के क्षेत्र में
इंटरव्यू के दौरान राकेश ने बताया कि दिल्ली यूनिवर्सिटी में कई तरह की गतिविधियां होती थी एक बार राकेश का सामना एक बच्चे से हुआ जो अपना घर छोड़कर भागा था और किसी से अपने बारे में बात नहीं करता था राकेश ने उसको दिल दिया धीरे-धीरे हुआ लड़का सामान हो गया और अपने घर वापस लौट गया उस लड़की के घरवालों ने राकेश को बहुत दुआएं भी यहीं से राकेश को लगा कि क्यों ना कोई ऐसा काम किया जाए जिससे उस जैसे दूसरे बच्चों की मदद की जा सके.
दूसरे की सेवा के विचार से राकेश सिविल सेवा के क्षेत्र में कूदे जिसमें उनके साथियों, शिक्षकों और परिवार वालों ने पूरा सपोर्ट दिया. एक तरफ जहां बड़े-बड़ों के लिए एग्जाम पास करना आसान नहीं होता वही राकेश ने अपने जैसे और लोगों की मदद करने के उद्देश्य इस फील्ड में आने का फैसला किया और उनका जज्बा देखिए कि पहली ही बार में पूरे सिलेक्ट भी हो गए.
राकेश की सलाह
राकेश कहते हैं अगर उनके मां-पिता ने उन पर दया दिखाई होती तो वह शायद कभी यहां तक नहीं पहुंचते. उनके परिवार, दोस्तों और शिक्षकों किसी ने कभी उनके साथ सिंपैथी नहीं दिखाई और उन्हें हमेशा आम इंसान की तरह ट्रीट किया. यही वजह है कि उनके अंदर कॉन्फिडेंस आया था कि वह भी आम कैंडिडेट की तरह ना केवल यह परीक्षा दे सकते हैं बल्कि इसमें सफल भी हो सकते हैं. हालांकि शुरुआती दौर में उन्हें बहुत परेशानी उठानी पड़ती थी, लेकिन ऑप्शन ना होने से बस दिन रात लगे रहते थे.
उन्होंने अपनी पूरी ताकत से परीक्षा की तैयारी की और इस सफर में उनके शिक्षकों ने उन्हें बहुत सहारा दिया. राकेश अंत में यही कहते हैं कि इस परीक्षा को भी आम परीक्षा की तरह ही देखिए और हिम्मत रखिए. अगर आपने ठान लिया है तो ऐसा कोई काम नहीं जिसे ना किया जा सके. उनका कहना है कि अपनी कमी को कभी भी अपने ऊपर हावी ना होने दिया जाए. अपनी कमजोरी को ताकत बनाएं और खुद को यह विश्वास दिलाएं कि जो दूसरे कर सकते हैं वह आप भी कर सकते हैं. इससे सफलता आपके कदम चूमेगी.
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