हर किसी की कहानी अपने-आप में खास थी और किसी न किसी प्रकार के संघर्ष को खुद में समेटे हुये थी. कोई गरीबी में पढ़ा तो कोई भूखा सोया। अब तक हमारी टीम (Bihari Voice) ने आपको कई ऐसी प्रेरित करने वाली महिलाओं की कहानियों के बारे में बताएं है, जो अपनी मेहनत और संघर्ष के बल पर सफलता हासिल कर चुकी हैं। हर साल लाखों की तादात में छात्र यूपीएससी की परीक्षा देते हैं लेकिन आज हम एक महिला आईएएस ऑफिसर उम्मूल खैर के बारे में बात करने जा रहे हैं जिनकी जिंदगी काफी कठिनाइयों में गुजरी है।
उम्मूल खैर ने अपने जीवन में कई ऐसे दिन देखे हैं जिनको देखने के बाद कई लोग अपनी जीवन से हार मान जाते हैं। इनका जीवन काफी मुश्किल और संघर्ष में गुजरा है। उम्मूल खेर की कहानी सुनकर आपका दिल पिघल जाएगा और उससे सलाम करने के लिए कहेगा।
उम्मूल खैर मूल रूप से राजस्थान की रहने वाली है। उनका जन्म राजस्थान के पाली मारवाड़ में हुआ था। वह बचपन से ही दिव्यांग पैदा हुई थी। उन्होंने अपनी कमजोरी को ही ताकत बना लिया। जानकारी के मुताबिक इनका बचपन झुग्गी बस्ती में बीता है। वहां से निकल उम्मूल खेर ने आईएएस अफसर बनने तक का सफर अपने दम पर तय किया।
उम्मूल को परेशानी और गरीबी विरासत में मिली थी। उनकी परेशानी उनके जन्म के साथ ही जुड़ी थी वह की हड्डियों के अत्यधिक नाजुक होने की वजह से झट से टूट जाना। लेकिन फिर भी वह अपने दम पर यूपीएससी क्लियर कर सभी युवाओं के लिए प्रेरणा बनी हैं।
बीमारी से पीड़ित थी उम्मूल
हमने तो आपको बता ही दिया कि गरीबी और बीमारी उम्मूल को विरासत में मिली है। जितना प्रेशर या चोट एक आम आदमी का शरीर सह लेता है इस रोग से ग्रसित व्यक्ति नहीं सह सकता। यही वजह है कि छोटी सी उम्र में उन्होंने 15 फ्रैक्चर और आठ सर्जरी करवाए हैं।
उनके पिताजी बेचते थे मूंगफली
झुग्गी ही उनका पहला आशियाना था। वह दिल्ली के निजामुद्दीन में एक झुग्गी में अपने परिवार के साथ रहती थी। उनके पिताजी वही फुटपाथ पर मूंगफली बेचा करते थे जिससे उनके घर का खर्च चलता था। पहले ही गरीबी थी लेकिन एक दिन उनकी झुग्गियों को वहां से हटा दिया गया। उसके बाद उन्हें त्रिलोकपुरी में किराए का कमरा लेना पड़ा पिताजी का काम निजामुद्दीन में था जो यहां आने से चला गया। उस समय उम्मूल सातवीं कक्षा में पढ़ती थी उसी समय उन्होंने सोच लिया कि वह बच्चों को ट्यूशन पढ़ाएंगे। ऐसे उनके घर का खर्च पढ़ाई का खर्च निकलने लगेगा अमूल ने कई सालों तक बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर ही अपनी पढ़ाई का पैसा इकट्ठा किया।
उनकी मां का हो गया देहांत
एक तो गरीबी ऊपर से दुख का पहाड़ उस वक्त टूट गया जब वह स्कूल में थी तभी उनकी मां का देहांत हो गया। इसके बाद उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली और नई मां को उम्मूल का पढ़ना लिखना पसंद नहीं था। उनकी सौतेली मां चाहती थी कि उम्मूल पढ़ाई छोड़ दे लेकिन उम्मूल ने कुछ और सोच लिया था। पढ़ाई तो नहीं छोड़ी लेकिन उन्होंने अपना घर ही छोड़ दिया फिर वह एक छोटा सा कमरा किराए पर लेकर रहने लगी। इसके बाद उन्होंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया।
10वीं में आए 91% प्रतिशत अंक
उम्मुल खेर ने बताया कि 5वीं क्लास तक दिल्ली के ITO में दिव्यांग बच्चों के स्कूल में उनकी पढ़ाई हुई, फिर 8वीं तक कड़कड़डूमा के अमर ज्योति चैरिटेबल ट्रस्ट में पढाई हुई। इसके बाद आठवीं क्लास में उम्मुल स्कूल की टॉपर बनी और स्कॉलरशिप के जरिये उनका एडमिशन एक प्राइवेट स्कूल में हुआ। इसके बाद यहां से उम्मुल ने 12वीं क्लास तक पढ़ाई की। बता दें कि 10वीं क्लास में उम्मुल के 91% अंक प्राप्त हुए। वहीं 12वीं क्लास में उम्मुल ने 90% अंक हासिल किए। 12वीं के बाद उम्मुल ने Delhi University से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने साल 2016 में IAS के लिए तैयारी शुरू की और अपने पहले प्रयास में Civil service exam पास किया। उम्मुल ने 420वीं रैंक हासिल की।
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