पिछले 60 सालों से जिस कंपनी के विज्ञापन ने आपको टीवी से जोड़ कर रखा है। कुछ भी टूटने फूटने पर आपको इस कंपनी के ही प्रोडक्ट याद आते हैं। हम बात कर रहे हैं फेविकोल बनाने वाली कंपनी पिडीलाइट की। एक ऐसा प्रोडक्ट जो पिछले कई सालों से लोकप्रिय बना हुआ है। आए दिनों टीवी पर फेविकोल के कई तरह के एड आते हैं इसमें कुछ फनी भी होते हैं जो दर्शकों को हंसा हंसा कर लोटपोट कर देते हैं।
फेविकोल वही कंपनी है जिसके बारे में कहा जाता है “यह फेवीकोल का जोड़ है टूटेगा नहीं” वाकई में यह फेविकोल का जोड़ इतना मजबूत है कि दर्शक कई सालों से इससे जुड़े हैं। इस कंपनी की स्थापना बलवंत पारेख ने की थी। इन्हें फेविकोल मैन के नाम से भी जाना जाता है। पिडीलाइट कंपनी के कई सारे ब्रांड है, फेविकोल भी इसी कंपनी का ब्रांड है।
वकील बनाने चाहते थे घर वाले
बलवंत पारेख का जन्म 1950 में गुजरात के भावनगर जिले के महोबा नामक कस्बे में हुआ था। बलवंत पारेख एक मध्यमवर्गीय परिवार से तालुकात रखते थे। इन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा अपने ही कस्बे से प्राप्त की। कहा जाता है कि बलवंत को शुरू से ही बिजनेसमैन बनने का शौक था। हालांकि इनके घरवाले चाहते थे कि बलवंत वकालत की पढ़ाई करें और वकील बने। घर की परिस्थितियों और घरवालों के दबाव के आगे बलवंत को झुकना पड़ा और उन्होंने वकालत की पढ़ाई की। वकालत की पढ़ाई के लिए उन्होंने मुंबई के सरकारी लॉ कॉलेज में दाखिला लिया और पढ़ाई शुरू की।
स्वंत्रता संग्राम मे ले चुके हैं हिस्सा
उस दौर में पूरे देश में महात्मा गांधी के विचारों का रंग चढ़ा हुआ था। उनके द्वारा शुरू किए गए भारत छोड़ो आंदोलन में देश के युवा भी अपने भविष्य की आहुति देते हुए कूद रहे थे। बलवंत पारेख भी उन्हीं युवाओं में से एक थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई को बीच में ही छोड़कर आंदोलन में कूद गए और आंदोलन का हिस्सा बने। अपने गृह नगर में भी बलवंत ने कई आंदोलन का हिस्सा रहे। आंदोलन करते-करते उनका 1 साल बीत गया और बाद में बलवंत ने फिर से वकालत की पढ़ाई शुरू की और इसे पूरा किया।
वकालत की पढ़ाई तो की लेकिन वकालत नहीं की
किसी तरह बलवंत ने वकालत की पढ़ाई पूरी कर ली हालांकि उन्होंने वकालत करने से मना कर दिया। वह वकील नहीं बनना चाहते थे उनके ऊपर महात्मा गांधी के विचारों का रंग चढ़ चुका था वह सबसे ज्यादा सत्य और अहिंसा को महत्व दे रहे थे। उनका मानना था कि वकालत एक झूठ का धंधा है यहां पर सिर्फ झूठ ही बोला जाता है यही वजह है कि उन्होंने वकालत नहीं की। पढ़ाई के दौरान ही बलवंत पारेख की शादी कर दी गई । शादी के बाद मुंबई में रहने के लिए उन्हें कुछ तो करना पड़ता है ऐसे में उन्होंने एक डाइंग और प्रिंटिंग प्रेस में नौकरी की। नौकरी में बलवंत का मन नहीं लग रहा था, वो खुद का व्यापार करना चाहते थे, लेकिन उनकी परिस्थिति ऐसी नहीं थी कि वह व्यापार कर सकते थे
करनी पड़ी चपरासी की नौकरी
डाइंग प्रिंटिंग प्रेस में नौकरी करने के बाद उन्होंने लकड़ी व्यापारी के कार्यालय में चपरासी की नौकरी कर ली। चपरासी की नौकरी के दौरान बलवंत को गोदाम में रहना पड़ता था। वह यहां अपनी पत्नी के साथ रहते थे। लकड़ी चपरासी की नौकरी के बाद उन्होंने कई नौकरियां बदली इसके साथ ही उन्होंने अपने संपर्क को भी खूब बढ़ाया। इसी माध्यम से बलवंत पारीक को एक बार जर्मनी जाने का मौका मिला । इस दौरान उन्होंने व्यापार से जुड़ी कई नई बातें सीखी।
देश आजाद होने पर मिला उड़ने का रास्ता
देश की आजादी के बाद बलवंत के लिए अब वह समय आ चुका था कि वह अपने किस्मत बदले। उन्होंने साइकिल, एक्स्ट्रा ,नोट्स, पेपर, डाय इत्यादि आयात करने का बिजनेस शुरू किया। उनका बुरा वक्त खत्म होने लगा। इसके बाद वह किराए के मकान से निकलकर अपने परिवार के साथ एक फ्लैट में रहने लगे उनका व्यापार अच्छा चल रहा था लेकिन उन्हें कुछ बड़ा करना था।
भारत के आजाद होने के साथ ही बलवंत को अपने सपने को साकार करने का मौका मिल गया। आजादी के साथ ही बलवंत जैसे व्यापारियों को उड़ने के लिए पूरा आसमान खुला था। भारत जब आजाद हुआ तो वह आर्थिक तंगी से जूझ रहा था और पूरा देश अपने पैरों पर खड़े होने की तैयारी कर रहा था। जाने-माने कारोबारियों ने इस मौके का फायदा उठाया और जो सामान विदेशों से आ रहा था उन्हें खुद अपने देश में बनाना शुरू किया।
इसी बीच उनके दिमाग में एक आईडिया ने जन्म लिया जब वो लकड़ी व्यापारी के यहां काम करते थे तो उन्होंने देखा कि कैसे कारीगरों को दो लकड़ियों को जोड़ने में कितनी मुश्किले आती थी। पहले दो लकड़ियों को आपस में जोड़ने के लिए जानवरों की चर्बी से बने गोंद का इस्तेमाल किया जाता था इसके लिए चर्बी को बहुत देर तक गर्म किया जाता था। गर्म करने के दौरान इससे बहुत बदबू आती थी। उस वक्त कारीगरों को सांस लेना मुश्किल हो जाता था।
ऐसे फेविकोल बनाने का आया आइडिया
यही से बलवंत के दिमाग में एक ऐसा आईडिया ने जन्म लिया जिसे उन्होंने सच में साकार किया। उन्होंने एक ऐसे गोंद बनाने के बारे में सोचा जिससे बदबू ना आए और लकड़ी भी चिपक जाए। इसके लिए वह जानकारी इकट्ठा करने लगे बहुत जानकारी इकट्ठा करने के बाद उन्हें पता चला कि सिंथेटिक रसायन के प्रयोग से गोंद बनाया जा सकता है। इसके बाद बलवंत पारेख ने अपने भाई सुनील पारेख के साथ मिलकर 1959 में पीडीलाइट कंपनी की। स्थापना की फेविकोल पिडीलाइट कंपनी का ही एक प्रोडक्ट है।
ऐसे पड़ा फेविकोल कंपनी का नाम
आपको बता दें कि फेविकोल मैं कोल शब्द का मतलब होता है दो चीजों को जोड़ना। बलवंत पारेख ने यह शब्द जर्मन भाषा से लिया। इसके अलावा जर्मनी में पहले से ही एक मोविकोल नामक कंपनी था। वहां भी ऐसा ही गोंद बनता था। बलवंत पारेख ने इस कंपनी से प्रेरित होकर अपने प्रोडक्ट का भी नाम फेविकोल रख दिया। फेविकोल सफेद और बिना बदबू वाली एक ऐसी गोंद है जो लकड़ियों को चिपका देती है। समय के साथ-साथ इनके कंपनी की प्रोडक्ट की डिमांड पूरे भारत में होने लगी। धीरे-धीरे कंपनी ने करोड़ों की कमाई की इसके साथ ही इस कंपनी ने हजारों लोगों को रोजगार भी दिया।
अपने विज्ञापन के कारण भी मशहूर
फेविकोल अपने विज्ञापन के कारण भी मशहूर है। इनका विज्ञापन लोगों को अपने से जोड़े रखता है फेविकोल के विज्ञापनों में लोगों को हंसा हंसा कर उनका मनोरंजन करते हुए इसका प्रचार किया। यही वजह रही कि आज भी लोगों का इस प्रॉडक्ट से नाता नहीं टूटा है। यह कंपनी अब तक 200 से ज्यादा प्रोडक्ट तैयार कर चुकी है इसमें सबसे ज्यादा फायदा फेविकोल ने दिया है। फेविकोल की डिमांड दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है।
2013 में 83 साल की उम्र में हो गया निधन
आपको बता दें कि पिडीलाइट कंपनी ने 1993 में अपने शेयर लांच किए थे। देखते ही देखते 1997 तक फेविकोल टॉप 15 ब्रांडों में शामिल हो गया। आपको बता दें कि इस कंपनी के कारखाने कई देशों में है। दुबई, थाईलैंड, अमेरिका, इजिप्ट और बांग्लादेश जैसे कई देशों में इस कंपनी के बड़े-बड़े कारखाने हैं। इसके साथ ही सिंगापुर में पिडीलाइट ने अपना रिसर्च सेंटर भी शुरू किया है। पिडीलाइट के संस्थापक बलवंत पारेख का निधन 25 जनवरी 2013 में 83 साल की उम्र में हो गया था। उन्होंने अपने पीछे फेविकोल नाम की एक ऐसा प्रोडक्ट छोड़ गए जो हमेशा हमेशा उनके नाम को अमर रखेगा।
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