हमारे देश की यह पुरानी प्रथा रही है कि किसी के वेशभूषा से उसकी पहचान की जाती हो। जैसे अगर कोई अच्छे कपड़े पहनता है तो लोग उसकी तारीफ करते हैं और कहने लगते हैं कि सरकारी बाबू लग रहे हो। लेकिन अगर ऐसे में कोई व्यक्ति आपको लूंगी और कंधे पर गमछा रखे हुए मिले और कहे कि वह एक आईएएस अधिकारी रह चुका है तो क्या आप यकीन करेंगे?
पर आपको यकीन करना पड़ेगा हम बात कर रहे हैं पूर्व आईएएस अधिकारी कमल टावरी की। कमल टावरी अपने साधारण जिंदगी के लिए जाने जाते हैं। यह कई सालों तक आईएएस अफसर रहे। एक इंसान खुद में इतनी सारी उपलब्धियां समेटे हुए हैं कि गिनना भी मुश्किल हो जाए। टावरी साहब एक फौजी भी रह चुके हैं, आईएएस ऑफिसर के रूप में कलेक्टर भी रहे, कमिश्नर भी रहे और भारत सरकार में सचिव भी रहे, वह एक लेखक भी हैं समाजसेवी और मोटिवेटर भी हैं।
जब कमल टावरी की बात आती है तो उनके लिए उपाधियां कम पड़ने लगती है। कमल टावरी की यह सादगी और खुलकर अपनी बात कहने की आदत उन्हें अन्य अधिकारियों से अलग बनाती है। सेवानिवृत्त होने के बाद से वह युवाओं को स्वरोजगार के प्रति प्रेरित करते हैं तथा लोगों को तनाव मुक्त जीवन जीने का हुनर सिखाते हैं। कमल टावरी को देखकर आप विश्वास नहीं कर पाएंगे कि वह 2006 तक कई जिलों के कलेक्टर और कई जगहों के कमिश्नर रह चुके हैं। इसके अलावा वह केंद्र सरकार और राज्य सरकार में कई महत्वपूर्ण विभागों के सचिव भी रह चुके हैं।
आपको बता दें कि इनका जन्म 1 अगस्त 1946 को महाराष्ट्र के वर्धा में हुआ था। बचपन से ही इनमें कुछ अलग करने की इच्छा थी। सिविल सर्विसेज में आने से पहले 6 साल तक कमल टावरी सेना में एक अधिकारी के रूप में अपनी सेवाएं दी।
कमल टावरी 22 सालों तक पंचायती राज खादी ग्राम उद्योग ग्रामीण विकास उच्च स्तरीय लोक प्रशिक्षण जैसे विभाग में लोगों की सेवा करते रहे। वह इंडियन आर्मी का हिस्सा रहने के दौरान कर्नल के पद पर रहे तथा 1968 में आईएएस बने। इनके बारे में कहा जाता है कि अगर सरकार इन्हें सजा के रूप में किसी पिछड़े हुए विभाग में भी भेजती थी तो यह अपनी कार्यशैली से उस विभाग को भी महत्वपूर्ण बना देते थे। यही कारण है कि कमल टावरी को अन्य अधिकारियों से अलग बनाती है।
कमल टावरी को केंद्रीय गृह मंत्रालय और नीति आयोग सहित विभिन्न राष्ट्रीय संस्थाओं में उच्च पदों पर स्थापित होने के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिला के डीएम तथा फैजाबाद के कमिश्नर भी रहे हैं। आपको बता दें कि फैजाबाद अब अयोध्या के नाम से जाना जाता है।
इनमे कुछ अलग जज्बा था और यहीं ज़ज्बा इन्हें हमेशा असंभव को संभव में बदलने में मदद की। कमल टावरी ने अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए इतना अनुभव इकट्ठा कर लिया कि उन्होंने इसके आधार पर 40 पुस्तकें भी लिख डाली। आपको बता दें कि कमल टावरी एलएलबी के साथ-साथ इकोनॉमिक्स में डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की है।
सादा जीवन उच्च विचार
बड़ी पोस्ट पर बैठने के बाद भी कमल टावरी अपने साधारण जिंदगी के लिए जाने जाते हैं। यह खादी का कुर्ता, लूंगी और कंधे पर गमछा रखे हुए मिलते हैं। गांव देहात में कमल टावरी साहब बिल्कुल गांव के स्वभाव में मिलते जुलते बोलते हुए पाए देखे जाएंगे। इनका एक अलग ही अंदाज है जो कि सबसे अलग बनाती हैं। ऐसा नहीं है कि यह स्वभाव इन्होंने सेवा सेवानिवृत्त होने के बाद अपनाया बल्कि अपनी पोस्टिंग के समय से ही कमल टावरी ऐसे हैं।
भाग्योदय फाउंडेशन के राम महेश मिश्रा बताते हैं कि इनके खादी पहनने का किस्सा बहुत रोचक है। एक दिन अचानक इन्होंने संकल्प ले लिया कि आज से केवल खादी ही पहनेगे और तबसे खादी इनके तन से ना उतरी है। उस समय कमल टावरी उत्तर प्रदेश के ग्राम विकास सचिव थे।
टावरी साहब अपनी सादगी के साथ-साथ अपने सच्चे और ईमानदार छवि के लिए भी जाने जाते हैं। वह सच के साथ हमेशा खड़े रहते हैं चाहे इसका अंजाम जो भी हो इनके नाम से अच्छे-अच्छे अधिकारियों की रूह कांप जाती है। लेकिन इससे कमल टावरी को कभी भी, कुछ भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनका तबादला कहा हो रहा है बस वह अपनी ड्यूटी निभाना जानते थे।
आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने अपने एक लेख के जरिए इनके बारे में बताया कि साल 1985 की बात है। उस वक्त टावरी साहब फैजाबाद जो कि अयोध्या के नाम से जाना जाता है वहां के कमिश्नर थे। बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि से जुड़े एक मामले में कुछ आदेश मिला था जो उन्हें उचित नहीं लगा।
इस पर कमल टावरी साहब ने अपनी बात रखी इस पर उन्हें रातोंरात उनके पद से हटा दिया गया और कहीं दूसरी जगह तबादला करा दिया गया। इसे अधिकारी डंपिंग ग्राउंड कहते हैं जहां आमतौर पर सजा के रूप में अधिकारियों के तबादले होते थे।
29 साल तक लड़ी सम्मान की लड़ाई
आपको बता दें कि एक आईएएस अधिकारी पूरे जिले भर का मालिक होता है उसके हाथ में न्याय व्यवस्था से लेकर पूरे प्रशासन तक की कमान रहती है। ऐसे में कमल टावरी के साथ हुई अभद्रता पर वह शांत कैसे रह सकते थे। मामला 1983 का है जब उन्होंने अपनी पावर दिखाने की जगह कानून का सहारा लेना बेहतर समझा उन्होंने कई सालों तक कानूनी लड़ाई लड़ी।
यह मामला यूपी स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन की बस का हैं, इसमें कमल टावरी और आईपीएस ऑफिसर एस एम नसीम एक संदिग्ध बस का पीछा कर रहे थे। 15 किलोमीटर पीछा करने के बाद दोनों अधिकारियों ने आजमगढ़ के अतरौलिया में बस को रोक लिया। इसी दौरान बस के ड्राइवर और कंडक्टर ने दोनों अधिकारियों पर बुरी तरह हमला कर दिया था जिसकी कमल टावरी ने पुलिस में शिकायत कर दी।
मामला बड़ा ही दिलचस्प है यह मामला कोर्ट में पहुंचा लेकिन कुछ सालों बाद इस केस की फाइल गुम हो गई। करीब तीन दशक बाद जब कमल टावरी इस केस को इलाहाबाद कोर्ट में लेकर पहुंचे तो आदेश दिया गया कि इस केस पर लगातार छानबीन हो। आखिरकार 29 साल बाद 26 मार्च 2012 को इस केस पर फैसला आया आखिरकार दोनों आरोपियों को 3 साल की कैद हुई।
अब सिखाते हैं युवाओं को रोजगार का मूल मंत्र
अपने जीवन के 40 साल से ज्यादा उच्च पदों पर बैठने वाला कमल टावरी आज गांव की मिट्टी से जा लिपटा। गांव से लेकर युवाओं तक के लिए चिंतित है। उन्हें हर तरह से प्रोत्साहित कर रहा है। कमल टावरी का मानना है कि युवा शिक्षा के साथ-साथ अपने अंदर के गुण को भी पहचाने। युवा यह समझे कि वह किस तरह अपनी बुद्धि और समझ से रोजगार पैदा कर सकता है। कमल टावरी का मानना है कि यह आप के आस-पास जितनी भी चीजें हैं उन सब में रोजगार है जरूरत है तो बस अपने अंदर के हुनर को निखारने की।
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