ICU मे रह कर की IAS की तैयारी, पहले ही प्रयास मे बने, ज्योतिष ने बोला था ऐसा!

कई लोग ज्योतिषी को हाथ दिखाने में विश्वास रखते हैं और हाथ इसलिए दिखाते हैं ताकि यह पता चल सके कि उनके किस्मत में क्या लिखा है? फिर ज्योतिषी के बताए अनुसार जिंदगी में आगे बढ़ते हैं. मगर दुनिया में कुछ ही ऐसे लोग हैं जो ज्योतिषी की बताओ बातों को ना मानकर कामयाबी की एक नई और अलग कहानी लिख देते हैं. हाथों की लकीरों पर भरोसा ना रखकर अपनी मेहनत पर भरोसा रखते हैं. ऐसा ही कुछ कहानी है पहले प्रयास में IAS अफसर बनने वाले नवजीवन पवार की. नवजीवन पवार महाराष्ट्र के नासिक जिले के रहने वाले हैं. इनका संघर्ष और आईएएस बनने की कहानी युवाओं को प्रेरित करने वाली है.

IAS नवजीवन विजय पवार का परिवार

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मीडिया से बातचीत के दौरान नवजीवन बताते हैं कि वह महाराष्ट्र के नासिक जिले के एक छोटे से गांव नवीबेज के रहने वाले हैं उनकी माता प्राइमरी स्कूल में टीचर है और पिता किसान हैं. नवजीवन सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त कर रखी है. 27 मई 2017 को इनकी कॉलेज की शिक्षा पूरी हुई इसके बाद 27 जून को दोस्तों के साथ नवजीवन दिल्ली आ गए और यूपीएससी की तैयारियों में लग गए. यूपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा 3 जून 2018 को हुई थी नवजीवन ने जमकर मेहनत किया और पहले ही प्रयास में प्रारंभिक परीक्षा में महारत हासिल कर ली.

परीक्षा से 28 दिन पहले ही डेंगू ने जकड़ा

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अब बारी थी यूपीएससी के मुख्य परीक्षा की जो 28 सितंबर 2018 को होनी थी. नवजीवन को तैयारी के लिए 4 महीने का वक्त मिला था. लेकिन मुख्य परीक्षा के तैयारियों के बीच 28 दिन पहले नवजीवन को डेंगू ने जकड़ लिया. नवजीवन की हालत इतनी खराब हो गई थी कि दोस्त योगेश और रवि ने इन्हें दिल्ली के एक सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में भर्ती करवाया.

दिल्ली के बाद नासिक के अस्पताल में हुए भर्ती

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नवजीवन को 31 अगस्त को डेंगू ने जकड़ लिया था उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया लेकिन यहां पर तबीयत में सुधार नहीं हुआ तो नवजीवन अपने घर नासिक चले गए चले गए. इनके परिवार वालों ने इन्हें गंगापुर रोड कासलीवाल अस्पताल में भर्ती करवाया. इनकी स्थिति सीरियस हो गई तो चिकित्सकों ने इन्हें आईसीयू में भर्ती करवाया. अब नवजीवन के सामने मुख्य परीक्षा के लिए केवल 26 दिन ही बचे थे लेकिन उनकी तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ था.

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पिता ने दे हिम्मत बोले- दो ही रास्ते बचे हैं “रोना या लड़ना”

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अस्पताल के आईसीयू में भर्ती नवजीवन को उनके पिता ने कहा अब उसके सामने दो ही रास्ते हैं रोना है या तो फिर लड़ना है. नवजीवन ने लड़ना तय किया. सबसे पहले लड़ाई अस्पताल की नर्स की और कहा कि मुझे अपने राइट हैंड से परीक्षा के 9 पेपर लिखने हैं कुछ भी करो चाहे सारे इंजेक्शन लेफ्ट हैंड में लगा दो मगर मेरे राइट हैंड को कुछ भी नहीं होना चाहिए.

ICU में बेड पर ही रखी थी किताबें

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अब नवजीवन की अगली लड़ाई हुई डॉक्टर से क्योंकि नवजीवन अस्पताल में भर्ती थे डॉक्टर ने कहा कि परीक्षा से बड़ी जिंदगी है परीक्षा तो फिर भी दे सकते हो. मगर नवजीवन नहीं माने और अस्पताल में ही पढ़ते रहे नवजीवन के एक हाथ में दवा की बोतल चढ़ाई जा रही थी और उनके बगल में बेड पर यूपीएससी की तैयारी की किताबें रखी थी. उन्होंने लड़ने का रास्ता चुना था तो मेहनत भी करनी थी.

बहन, भांजी और दोस्तों ने करवाई UPSC की तैयारी

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नवजीवन की बहन और 12वीं कक्षा में पढ़ रही भांजी ने अस्पताल में ही उनके लिए नोट्स तैयार किए. इतना ही नहीं अस्पताल में भर्ती नवजीवन के एक दोस्त ने यूपीएससी की तैयारी कर वीडियो कॉल करके अर्थशास्त्र की तैयारी करवाता था. जब नवजीवन को अस्पताल से छुट्टी मिली तो वह 15 सितंबर को नासिक से वापस दिल्ली आ गए. अब 13 दिन बाद यूपीएससी की मुख्य परीक्षा देनी थी जब नवजीवन रूम पर पहुंचे तो दोस्त योगेश, रवि और नीलेश ने हिम्मत दी और मुख्य परीक्षा में हिस्सा लेने के लिए उन्हें मानसिक रूप से तैयार किया.

रिजल्ट आने से पहले ही लिखा “बन गया अफसर”

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23 फरवरी को नवजीवन ने अपने परिवार को एक पत्र लिखा उस पत्र में खास बात यह थी कि नवजीवन ने पत्र में लिखा था कि वह अपने पहले ही प्रयास में यूपीएससी परीक्षा पास करके आईएएस बन गया है. जबकि यूपीएससी परीक्षा का साक्षात्कार 25 फरवरी को होना था. लेकिन नवजीवन पवार को अपनी तैयारी पर पूरा भरोसा था और फिर यूपीएससी 2018 का रिजल्ट आया तो नवजीवन ने 360 वीं रैंक हासिल करके आईएएस बन गए.

हाथों की लकीरों पर मत जा ए गालिब

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जब नवजीवन आईएएस बन गए तो वह कहते हैं कि ज्योतिष की बात सुनकर मैं कुछ समय के लिए निराश तो जरूर हुआ था मगर फिर मुझे मिर्जा गालिब का एक शेर याद आया कि “हाथों की लकीरों पर मत जा ए ग़ालिब नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते हैं” मुझे खुद की हाथों की लकीरों की बजाय खुद की मेहनत पर भरोसा था मेहनत के बदौलत ही आज आईएस बना हूं.

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