मक्के की रोटी और सरसो साग की होम डिलीवरी कर किया कई किसानो को आत्मनिर्भर

ठंड भरे मौसम में अगर गरमा-गरम मक्की की रोटी और सरसों का साग और साथ में कटा प्याज और नीबू मिल जाए तो फिर क्या कहनें, क्या आप भी कुछ ऐसी ही ख्वाहिश रखते हैं तो हम आपके लिए लाए हैं एक खबर.

आधुनिक युग में पुराने जमाने का भोजन मक्के की रोटी और सरसों के साग को शहर का खादी ग्रामोद्योग सबकी जुबान पर ला रहा है. फोन से ऑनलाइन ऑर्डर कर साग, रोटी लोगों को परोसी जा रही है.

देश में हावी होते वेस्टर्न कल्चर और वेस्टर्न भोजन के बीच खादी ग्रामोद्योग की अच्छी पहल है. इस पहल से लोगों में इसका प्रचलन बढ़ेगा. साथ ही इस भोजन की मांग बढ़ने पर अगल बगल के किसानों के लिए रोजगार भी पैदा होगा. साथ ही जिले में विलुप्त होती मक्के और सरसों की खेती को बढ़ावा मिलेगा.

देशी मक्के की रोटी और सरसो के साग से बहुराष्ट्रीय पिज्जा बर्गर जैसे आधुनिक खानपान को चुनौती दे रहा है. गांव के किसानों के घरों में मक्के की रोटी साग बनवाकर उसकी होम डिलीवरी कराई जा रही है इसकी मार्केटिंग डिजिटल प्लेटफॉर्म पर की जाती है. इस योजना में ठेठ गंवई परंपरा से लेकर आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक का सहारा लिया जा रहा है. रोटी साग को पारंपरिक स्वाद का टच देने के लिए इसे लकड़ी के चूल्हे पर तैयार किया जाता है.

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जिला खादी ग्रामोद्योग संघ के इस योजना के पहले चरण में 50 किसानों का समूह बनाया जा रहा है. जो अपने-अपने घरों में मक्के की रोटी और सरसों का साग तैयार करेंगे. डिजिटल मार्केटिंग के लिए भंसा घर नामक एक प्रकोष्ठ बनाया गया है जिसका प्रचार सोशल मीडिया के जरिए किया जा रहा है. डिजिटल मार्केटिंग की पूरी जिम्मेदारी खादी ग्रामोद्योग संघ की है. प्रचार में दिए गए मोबाइल नंबर पर जो भी ऑर्डर आते हैं उसके अनुसार ताजा रोटी और सरसों का साग तैयार कर पैक करके होम डिलीवरी की जाती है.

इस योजना से जुड़े समाजसेवी किसान अनिल अनल बताते हैं कि देश में हावी होते वेस्टर्न कल्चर और वेस्टर्न भोजन के बीच देसी स्वाद कहीं गुम सा हुआ जा रहा है. उन्होंने कहा कि बड़ी-बड़ी पार्टियों में आजकल मक्के की रोटी और सरसों साग का काउंटर लगाया जाता है जिसे लोग बड़े ही चाव से खाते हैं. उसी को देखकर उनके मन में यह ख्याल आया क्यों ना इसे व्यवसाय के तौर पर विकसित किया जाए.

फिलहाल अभी तो साग और मक्के की रोटी की बिक्री की जा रही है भविष्य में इसमें मडुआ और बाजरे की रोटी और लिट्टी-चोखा को भी जोड़ा जाएगा. योजना है कि खादी परिसर में रोटी साग का एक्सक्लूसिव रेस्टोरेंट भी खोला जाए.

रोटी साग के शौकीन कुंदन कहते हैं कि इस देसी डीसा में नानी दादी के हाथों के स्वाद की याद दिला दी वही शिव पूजन के घर पर भी रोटी साग की डिलीवरी पहुंच रही है. आपको बता दें कि इस देसी स्वाद में मसाले का यूज नहीं किया जाता है. जिला खादी ग्रामोद्योग संघ के अध्यक्ष वीरेन्द्र कुमार बताते हैं कि महात्मा गांधी का सपना बना था कि गांव में हर हाथ को काम मिले और गांव सबल बने, इसे देखते हुए आत्मनिर्भर गांव की अवधारणा पर
यह शुरुआत की गयी है.

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