साल 2019 में chandrayaan-2 की विफलता के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो ने अपने 3 साल के कठिन परिश्रम के बाद Chandrayaan-3 को लॉन्च कर दिया है। अथक प्रयास के पहले चरण की सफलता शुक्रवार को मिल गई है। chandrayaan-3 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के लांच पैड से सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया है। हालांकि बता दे कि इसकी सफलता के लिए अभी एक लंबा सफर तय करना बाकी है। गौरतलब है कि chandrayaan-3 में भी chandrayaan-2 के नाम का ही लैंडर विक्रम अगर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक चंद्रमा की सतह को छूता है और इसके बाद वह रोवर प्रज्ञान को सफलतापूर्वक लैंड कर आता है, तब भारतीय अंतरिक्ष अभियानों के इतिहास में यह एक ऐसा अनोखा आयाम होगा, जिसमें भारत का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा।
अंतरिक्ष सफर पर chandrayaan-3
बता दें कि इस साल चंद्रमा पर कुल 6 अभियान हो रहे हैं। चंद्रयान-3 उस लिस्ट में पहले नंबर पर है। याद दिला दें इसरो की ओर से chandrayaan-2 को 22 जुलाई 2019 के दिन श्रीहरीकोटा से जीएसएलवी मार्क 3 यानी बाहुबली राकेट द्वारा लांच किया गया था। इस दौरान इसके कुल 3 हिस्से थे, जिसमें पहला ऑर्बिबिटर, दूसरा लैंडर विक्रम और तीसरा रोवर प्रज्ञान है। विक्रम को 6 सितंबर की देर रात प्रज्ञान को लेकर सॉफ्ट लैंडिंग के बाद रोवर प्रज्ञान को बाहर आना था। पर चंद्रमा पर उतरने के 3 मिनट पहले विक्रम से इसरो का संपर्क टूट गया।
ऐसे में कई अंतरिक्ष वैज्ञानिकों और अंतरिक्ष इंजीनियरों का कहना है कि विक्रम लैंडर के दौरान अपनी गति को नियमित किए बिना चंद्रमा की सतह से टकराया। उस अनुभव से इसरो वैज्ञानिक इस बार पहले से सावधान है। इसके साथ ही प्रक्षेपण बिना किसी रूकावट के संपन्न हो गया है। वहीं फिलहाल अभी लैंडिंग का इंतजार है।
क्या है chandrayaan-3 का काम?
अब बात इसरो के लांच किए गए chandrayaan-3 की करें तो बता दें कि इसरो द्वारा साझा जानकारी के मुताबिक यह करीब 40 दिनों बाद सौर ऊर्जा से संचालित लेंडर 23 या 24 अगस्त को चंद्रमा की सतह पर उतर सकता है। वहां से सौर ऊर्जा से चलने वाला रोवर निकलेगा और चांद की धरती को छुयेगा। प्रज्ञान रोवर चंद्रमा की मिट्टी की प्रकृति विभिन्न खनिजों की उपस्थिति पर डाटा एकत्र करने का काम भी करेगा।
बता दें कि इसके चंद्रमा पर उतरने का चरण सूर्योदय के समय होगा। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सूर्यास्त के 2 सप्ताह बाद यह काम समाप्त हो जाएगा। इसके बाद chandrayaan-3 चंद्रमा की कक्षा में पहुंचेगा और लैंडिंग से पहले ऑर्बिटर से जुड़ जाएगा।
क्यों फेल हुआ chandrayaan-2 मिशन?
अब बात chandrayaan-2 की करें तो बता दें कि इसे 7 जुलाई 2019 को कैडर विक्रम के साथ लांच किया गया था। इस दौरान चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम ने चंद्रमा के दक्षिणी पूर्व के पास ‘सिंपेलियस एन’ और नगीना सी नामक दो कटु के बीच उतरने का प्रयास किया, लेकिन यह सफल नहीं हो सका। 3 महीने तक अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी नासा विक्रम के अवशेषों को खोजती रही, लेकिन वह इसकी किसी भी तरह की कोई पहचान नहीं कर पाए।
ऐसे में आखिरकार नासा के लूनर रिकॉग्निजेंस ऑर्बिटल द्वारा ली गई एक तस्वीर भी साझा की गई। उस तस्वीर को देखकर चेन्नई के एक मैकेनिकल इंजीनियर ने विक्रम के मलबे की पहचान की। इस दौरान सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह थी कि लैंडर और रोवर के नष्ट होने के बावजूद इसरो का ऑर्बिटल अभी भी चंद्रमा की परिक्रमा कर रहा है। ऐसे में वैज्ञानिकों के मुताबिक chandrayaan-3 उस ऑर्बिटल का उपयोग कर सकता है।
भारत ने क्यों किया चंद्रमा पर अभियान?
ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल भी उठ रहा है कि भारत जैसे देश को चंद्रमा पर रॉकेट भेजने से आखिर क्या फायदा होगा। गरीबी प्राकृतिक आपदा जैसी कई समस्याओं से जूझ रहे भारत का इस समय इन हालातों में चांद पर जाना कितने फायदे का सौदा है…? ऐसे में वैज्ञानिक जानकारों के मुताबिक यह कहा जा रहा है कि अंतरिक्ष यात्रा भारतीयों के लिए राष्ट्रीय गौरव का क्षण लेकर आई है। साल 2014 में मंगल मिशन के दौरान बच्चों को इससे जुड़ी और इसके बदलाव वह मिशन शेड्यूल से जुड़ी पूरी जानकारी भी दी गई।
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याद दिला दें 3 अप्रैल 1984 को भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा ने रूसी अंतरिक्ष यान से अंतरिक्ष में उड़ान भरकर एक ऐतिहासिक मिसाल साबित की थी। वह भारत के पहले ऐसे भारतीय नागरिक थे, जो अंतरिक्ष की यात्रा पर गए थे। वही 4 दशकों बाद इसरो का लक्ष्य भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को स्वदेश निर्मित अंतरिक्ष यान से अंतरिक्ष पर भेजना है। इस मिशन का नाम गंगनयान मिशन रखा गया है। इसरो इस योजना को साल 2025 तक सफल बनाने की कवायद में जुटी हुई है।
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