मां चंद्रघंटा की पूजा करते समय इस चमत्कारी स्त्रोत का करें पाठ, हर दुख दूर करेगी मां दुर्गा

Chaitra Navratri 2024 : चैत्र की नवरात्रि हिंदू धर्म का एक बहुत बड़ा त्यौहार है और हिंदू धर्म के लोग बड़े धूमधाम से चैत्र नवरात्रि मनाते हैं. चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन मां चंद्रघंटा को समर्पित होता है और इस दिन लोग मां चंद्रघंटा की बड़ी धूमधाम से पूजा करते हैं.

हिंदू धर्म में मां चंद्रघंटा की महिमा का बखान देखने को मिलता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां चंद्रघंटा का पूजा करने से शत्रुओं से लड़ने की शक्ति मिलती है और साथ ही मृत्यु लोक में सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है. अगर आप अपने जीवन में शांति चाहते हैं तो मां चंद्रघंटा के एक चमत्कारी स्त्रोत का पाठ करना चाहिए.

मां चंद्रघंटा का चमत्कारिक स्त्रोत(Chaitra Navratri 2024 )

मंत्र

  1. ओम देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥
  2. आह्लादकरिनी चन्द्रभूषणा हस्ते पद्मधारिणी।

घण्टा शूल हलानी देवी दुष्ट भाव विनाशिनी।।

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स्तुति मंत्र


या देवी सर्वभू‍तेषु मां चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

मां चन्द्रघण्टा बीज मंत्र

ऐं श्रीं शक्तयै नम:।

प्रार्थना मंत्र

पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।

प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥

देवी स्तोत्र


वन्दे वाच्छित लाभाय चन्द्रर्घकृत शेखराम्।

सिंहारूढा दशभुजां चन्द्रघण्टा यशंस्वनीम्॥

कंचनाभां मणिपुर स्थितां तृतीयं दुर्गा त्रिनेत्राम्।

खड्ग, गदा, त्रिशूल, चापशंर पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्यां नानालंकार भूषिताम्।

मंजीर हार, केयूर, किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥

प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुग कुचाम्।

कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटिं नितम्बनीम्॥

स्तोत्र


आपद्धद्धयी त्वंहि आधा शक्ति: शुभा पराम्।

अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यीहम्॥

चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्ट मंत्र स्वरूपणीम्।

धनदात्री आनंददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥

नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायनीम्।

सौभाग्यारोग्य दायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥

देवी कवच

रहस्यं श्रणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।

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श्री चन्द्रघण्टास्य कवचं सर्वसिद्धि दायकम्॥

बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोद्धारं बिना होमं।

स्नान शौचादिकं नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिकम॥

कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च।

न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्॥

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दुर्गा कवचम्


शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिदम् ।

पठित्वा पाठयित्वा च नरो मुच्येत सङ्कटात् ॥

उमा देवी शिरः पातु ललाटं शूलधारिणी ।

चक्षुषी खेचरी पातु वदनं सर्वधारिणी ॥

जिह्वां च चण्डिका देवी ग्रीवां सौभद्रिका तथा ।

अशोकवासिनी चेतो द्वौ बाहू वज्रधारिणी ॥

हृदयं ललिता देवी उदरं सिंहवाहिनी ।

कटिं भगवती देवी द्वावूरू विन्ध्यवासिनी ॥

महाबाला च जङ्घे द्वे पादौ भूतलवासिनी

एवं स्थिताऽसि देवि त्वं त्रैलोक्यरक्षणात्मिके ।

रक्ष मां सर्वगात्रेषु दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥

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