क्यों थी Mulayan Singh Yadav को साइकिल में दिलचस्पी, इसे चुनावी चिन्ह बनाने के पीछे की क्या है राज

Mulayan Singh Yadav: मुलायम सिंह यादव एक साधारण किसान परिवार से ताल्लुक रखते थे। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा अपने ही क्षेत्र से पूरी की थी। इसके बाद वे डिग्री कॉलेज की शिक्षा के लिए 20 किलोमीटर दूर अपने दोस्त रामरूप के साथ जाया करते थे। (बता दें कि रामरूप वही हैं, जिन्होंने द सोशलिस्ट किताब लिखी है) ऐसा इसलिए क्योंकि उनके पास खुद कॉलेज जाने के लिए कोई साधन नहीं था। परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर थी, ऐसे में वह अपने पिता से साइकिल नहीं मांग पाए जो कि उनके लिए उस समय बेहद जरूरी थी। इस कारण उन्हें अपने दोस्त के साथ उनकी साइकिल पर सवार होकर जाना पड़ता था।

क्या है मुलायम का साइकिल प्रेम

मुलायम सिंह यादव के करीबी दोस्त रामरूप में ही अपनी किताब द सोशलिस्ट में बताया है कि एक बार जब वह उजियानी गांव से गुजर रहे थे, तो गांव के कुछ लोग ताश खेल रहे थे। गांव की गिनजा में लाला राम प्रकाश गुप्ता भी खेल रहे थे ।इस दौरान शर्त यह रखी गई थी कि जो जीतेगा उसे रोबिन्हुड साइकिल (Robinhood Cycle) मिलेगी। ऐसे में मुलायम सिंह यादव की भी दिलचस्पी इस साइकिल को जीतने में थी। फिर क्या मुलायम सिंह यादव भी ताश खेले और जीते भी गए। यहां से शुरु हुआ मुलायम का साइकिल प्रेम उनके जीवन की अंतिम सांस तक उनके साथ चला।

इसी साइकिल पर सवार मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनीतिक सफर की भी शुरुआत की थी। समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह मुलायम सिंह यादव ने साइकिल को इसी लिए चुना था। इसी साइकिल की रफ्तार को पकड़कर उन्होंने अपने समाजवादी कुनबे को उत्तर प्रदेश की राजनीति में वह मुकाम दिलाया, जिसकी पहचान 90 के दशक में हर घर में हुई और मुलायम सिंह यादव इसी साइकिल पर सवार होकर साल 1989 में यूपी के मुख्यमंत्री भी बनें।

मालूम हो कि मुलायम सिंह यादव तीन बार क्रमश, 5 दिसम्बर 1989 से 24 जनवरी 1991 तक, 5 दिसम्बर 1993 से 3 जून 1996 तक और 29 अगस्त 2003 से 11 मई 2007 तक उत्तर प्रदेश के मुख्य मन्त्री रह चुके थे। इसके अलावा वह केन्द्र सरकार में रक्षा मन्त्री का भी पदभार संभाल चुके थे।

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राजनीति ही नहीं रिश्तो के भी दद्दा थे मुलायम सिंह यादव

मुलायम सिंह यादव राजनीति का गलियारे में तो अपने नाम, अपनी पार्टी और अपनी साइकिल के नाम का परचम लहराया ही था, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने अपने दोस्तों, अपने परिवारों और अपने सभी रिश्तेदारों को भी बेपनाह प्यार और सम्मान दिया था। सैफई, मैनपुरी और इटावा में मुलायम सिंह यादव को दद्दा के नाम से बुलाया जाता था। इसी नाम से उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई थी। हालांकि कुछ लोग उन्हें नेताजी के नाम से भी बुलाते थे। उत्तर प्रदेश के अलावा देश की राजनीति में मुलायम सिंह यादव को नेताजी के नाम से ही उपाधि मिली थी।

हर रिश्ते को दिया प्यार और सम्मान

नेताजी ने राजनीतिक गलियारों में ही सिर्फ रिश्तों को अहमियत नहीं दी बल्कि कई जगह ऐसे मौके भी देखने को मिले, जहां नेता जी ने रिश्तो की मिसाल सबके सामने रखी। बात चाहे शादी की हो या शपथ ग्रहण समारोह की… नेता जी ने हर रिश्ते पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने परिवार के हर सदस्य को चाहे वह छोटा हो या बड़ा सबको एक नजरिए से देखा और सब का एक ही नजरिए से ख्याल भी रखा।

नेता जी ने अपने रिश्तो की डोर को हमेशा संभालने के लिए कई बार आलोचनाओं की भी मार झेली, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने जीते जी अपने परिवार को टूटने नहीं दिया। उन्होंने अपने पूरे परिवार को एक धागे में पिरोए रखने का हर समय अथक प्रयास किया।  इस दौरान नेताजी पर कई बार परिवारवाद का भी आरोप लगा। शिवपाल से लेकर रामगोपाल, धर्मेंद्र ,अक्षय, डिंपल सभी के चलते उन्होंने परिवारवाद का दंश भी झेला, लेकिन फिर भी उन्होंने सबका ख्याल रखा और कुनबे को एकजुट लेकर आगे बढ़े। मुलायम सिंह यादव को दद्दा कहकर लोगों का संबोधित करना ही उनके अपनेपन और उनके अपनत्व की कहानी बयां करता है।

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