भारत का ऐसा सिपाही जिसके डर से काँपता है पड़ोसी पाकिस्तान और चीन

भारत के पास एक ऐसा ही है जिससे पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान घबराता है यहां तक कि दोनों देशों के रणनीतिकार भी सावधान रहते हैं चाहे देश के आंतरिक सुरक्षा का संकट हो या बाहरी सिपाही को अंतिम इलाज के रूप में देखा जाता है हम बात कर रहे हैं एनएसए अजीत डोभाल की. जिनकी दिल्ली के दंगों को काबू करने में अहम भूमिका निभाई थी. कश्मीर, दिल्ली दंगों से लेकर चीन तक मोदी सरकार की हर मर्ज़ की दवा बन चुके हैं अजीत डोभाल.

अजीत डोभाल को पसंद नहीं करने वाले लोग पीठ पीछे उनको ‘दारोगा’ कहकर पुकारते हैं. विदेश मंत्रालय में उनके आलोचक भी उनकी एनएसए (पाकिस्तान) कहकर तफ़रीह लेते हैं. वर्ष 2017 में भी जब डोकलाम में भारत और चीन के सैनिक आमने सामने खड़े थे, डोभाल ने ब्रिक्स बैठक के दौरान उस समय के अपने समकक्ष याँग जी ची से बात कर मामले को तूल पकड़ने से बचवाया था.

उनकी ये बातचीत न सिर्फ़ फ़ोन पर जारी रही बल्कि जर्मनी के शहर हैम्बर्ग में मिलकर उन्होंने दोनों तरफ़ के सैनिकों के पीछे हटने का ख़ाका तैयार किया था. इस कूटनीतिक बातचीत के बीच डोभाल चीनियों तक ये संदेश भी पहुंचाने में कामयाब रहे थे कि अगर इसका समाधान नहीं किया गया तो नरेंद्र मोदी की ब्रिक्स सम्मेलन में शिरकत ख़तरे में पड़ सकती है.

हिंदु-मुस्लिम दंगों को रोकने में डोभाल के पुराने ट्रैक रिकॉर्ड की भी इसके पीछे भूमिका थी. 1968 बैच के केरल काडर के अजीत डोभाल ने 1972 में भी थलासरी दंगों को काबू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और एक हफ़्ते के अंदर स्थिति को सामान्य कर दिया था.

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धारा 370 हटाने ने अहम भूमिका

यह पहली बार नहीं था जब डोभाल को अपनी परंपरागत भूमिका से आगे कर कुछ अतिरिक्त करने की ज़िम्मेदारी दी गई थी. जब कश्मीर में अगस्त में धारा 370 हटाई गई तो डोभाल ने कश्मीर में लॉकडाउन की शुरुआत के दिनों में पूरे एक पखवाड़े तक कैंप किया. उसी दौरान उनका एक वीडियो भी वायरल हुआ जहाँ वो कश्मीर के सबसे तनावग्रस्त इलाकों में से एक शोपियाँ में स्थानीय लोगों के साथ बिरयानी खाते देखे गए.

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