Chandrayaan 3 Live Update: चंद्रयान-3 की चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग के साथ आज भारत एक नया इतिहास रच दिया है। ऐसे में जहां भारत अमेरिका, रूस और चीन के बाद यह उपलब्धि हासिल करने वाला चौथा देश बन गया, तो वही बीते कुछ दिनों में चांद की सामने आई तस्वीरों को लेकर चर्चाएं तेज हो गई है। दरअसल हमारे देश में अक्सर लोग किसी की सुंदरता की तारीफ करते हुए यह कहते हैं चांद सी सूरत है, तो वही बच्चों के लिए कहा जाता है कि चंदा मामा है… इस दौरान कुछ लोगों ने चांद को चंद्र देवता का दर्जा दे रखा है।
ऐसे में हमारे देश के अलग-अलग हिस्सों में चांद को लेकर कई अलग-अलग तरह की शेरों-शायरियां और कहानियां मौजूद है। वही हाल ही में चांद की कुछ नई तस्वीरें के साथ यह तो साफ हो गया है कि चांद का नजारा सच में बेहद खूबसूरत है, लेकिन इन तस्वीरों से यह भी पता चलता है कि चांद पर सिर्फ दाग-धब्बधे ही नहीं बल्कि गड्ढे भी है।
45 लाख साल पुराना है चांद
आज से करीब 45 से 50 लाख साल पहले चांद को लेकर पहली बार चर्चा हुई थी। उसे दौरान अंतरिक्ष में चल रही पत्थर बाजी की वजह से कई बड़ी घटनाएं हुई। इस दौरान बड़ी-बड़ी चट्टानें तेज गति से इधर-उधर भाग रही थी। इस वजह से बड़ी-बड़ी चट्टानें यानी एस्टेरॉइड और मीटियोर जिसे हिंदी में शुद्र ग्रह और उल्का पिंड कहा जाता हैं, ये आकर चांद से टकरा गए। इसी की वजह से चांद पर गड्ढे पड़ गए। चांद पर मौजूद इन गड्ढों को क्रेटर कहा जाता है।
जब अंतरिक्ष में मौजूद बड़ी-बड़ी चट्टाने चांद की सतह से टकराती है, तो यह क्रेटर बन जाते हैं। एस्टेरॉइड और मीटियोर की टक्कर की वजह से हुए इन गड्ढों के बारे में तो अब आपको पता चल गया, लेकिन अब चांद पर धब्बों की बात करें तो बता दें कि इसके पीछे भी एक कारण है।
चांद के धब्बों को मारिया कहा जाता है
आपने अक्सर अपने बड़े-बूढ़े लोगों को यह कहते सुना होगा कि चांद की तरह उसमें भी दाग था… या चांद की तरह इसमें भी दाग है। ये सुनने के बाद आपके मन में भी चांद पर दाग होने के सवाल जरूर उठे होंगे और आपने सोचा होगा कि आखिर यह चांद पर दाग धब्बे कहां से पड़े। तो बता दें कि चांद पर नजर आने वाले इन दाग धब्बों को पहले एस्टॉनोमर्स ने मारिया का नाम दिया था। लैटिन भाषा में मारिया का मतलब समुद्र होता है। अब आप यह सोच रहे होंगे कि चांद के धब्बों का समुद्र से क्या कनेक्शन है, तो बता दे कि पहले एस्टॉनोमर्स को ऐसा लगता था कि चांद पर मौजूद धब्बे चांद पर समुद्र होने के निशान थे, जो वक्त के साथ सूख चुके हैं। हालांकि यह चांद पर पहुंचने से पहले की सोच थी।
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वहीं चांद की तस्वीर में नजर आए सैंपल्स से यह पता चलता है कि चांद पर जो काले धब्बे हैं वह समुद्र ही थे, लेकिन इन समुद्र में पानी नहीं था बल्कि यह है लावा से भरे हुए थे। जब बड़ी-बड़ी चट्टानें चांद से टकराई तो इसके गड्ढे और भी बड़े हो गए। यह चट्टानें इतनी बड़ी थी कि धमाके की वजह से चांद की बाहरी सतह फट गई और उनके अंदर मौजूद लावा बाहर आकर चांद के गड्ढ़ों में भर गया। बाद में यह लावा ठंडा होकर वहीं पर जम गया और बेसॉल्ट की काली चट्टानों में बदल गया, जिसकी वजह से चांद पर काले दाग-धब्बे पड़ गए।
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