क्यों बिहार में संपूर्ण लॉक डाउन ही बचा अंतिम विकल्प, जानिए इसके पीछे का राज

देश में को रोना अपनी कहर बरपा रहा है। जिसके कारण लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। कोविड-19 के बढ़ते कहर के बीच बिहार में अंततः 10 दिनों का सम्पूर्ण लॉकडाउन लागू कर दिया गया है। आपको बता दें कि राज्य में लॉकडाउन लगाने की मांग लगातार उठ रही थी। लेकिन सरकार ने लॉक डाउन के बजाय कई गाइडलाइन और नाइट कर्फ्यू जैसे नियमों को जारी कर दिया। लॉक डाउन लगने के बाद सवाल यह सामने आता है कि बिहार सरकार की क्या मज़बूरी रही होगी की राज्य में लॉकडाउन लगाने की जरूरत पड़ी? इसके बाद संक्रमण के बड़ते संख्या, अस्पतालों में बेड की कमी और दवाइयों की कालाबजारी के कारण मरीजो के सही तरह से इलाज नही किये जाने को लेकर हाईकोर्ट ने नाराजगी जाहिर की।

बता दें कि सोमवार को बिहार में कोरोना संक्रमण के 11407 नए मामले सामने आए। जबकि 82 मरीजों ने अपनी जान गवां दी। नए मामले सामने आने के बाद राज्य में कोरोना के एक्टिव मरीजों की संख्या 1,07,667 पहुंच गई। राज्य में रिकवरी रेट में भी लगातार गिरावट आई है। सरकार ने इससे पहले नाइट कर्फ्यू भी लगा रखा था, लेकिन कोरोना के केस ही नहीं कम रहे थे। ऐसे में पटना हाईकोर्ट बिहार में कोरोना संक्रमण से उपजे हालात पर प्रतिदिन निगरानी रख रहा था।

हाईकोर्ट ने कहा ऐसा

हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए सरकार के खिलाफ सख्ती बरती है। कोर्ट ने महाधिवक्ता से कहा कि राज्य सरकार से बात करें और मंगलवार यानी चार मई को बताएं कि राज्य में लॉकडाउन लगेगा या नहीं। पटना हाईकोर्ट ने साथ ही कहा था कि अगर आज निर्णय नहीं आता है तो हाईकोर्ट कड़े फैसले ले सकता है। माना जा रहा है कि ऐसे में नीतीश सरकार पर दबाव बढ़ गया था कि कहीं कोर्ट अपनी तरफ से ही बिहार में लॉकडाउन लागू न कर दे। ऐसे में हाईकोर्ट के संभावित कड़ी सख्ती के बाद नीतीश सरकार ने लॉक डाउन की घोषणा कर दी।

दूसरी वजह यह रही कि विपक्ष से साथ साथ सहयोगी दल के तरफ से भी बयानबाजी शुरू हो गई थी। दबाव में आने के बाद नीतीश कुमार पटना के सड़कों पर भ्रमण करने निकले और मौजूदा हालात को जानने की कोशिश की। राजधानी में कहीं से भी कोई नियम का पालन करते नहीं दिखा। प्रशासन ने भी पूरी कोशिश की और लोगों से नियम को पालन करने को कहा। लेकिन अंततः लॉकडाउन ही एक मात्र विकल्प रहा।

whatsapp channel

google news

 
Share on