Thursday, June 1, 2023

जाने, भारतीय सिनेमा के जनक दादा साहेब फाल्के कौन थे, नाम पर दिया जाता है फाल्के पुरुस्कार

हर साल दादा साहेब फाल्के अवार्ड सेरेमनी का आयोजन किया जाता है जिनमे बॉलीवुड के चर्चित चेहरों को इस अवार्ड से नवाजा जाता है लेकिन क्या आप जानते है कि आखिर दादा साहेब फाल्के थे कौन? साल 1910 में मुम्बई में एक फ़िल्म के प्रदर्शन के दौरान एक शख्स ने यह तय कर लिया था अब वो अपनी जिंदगी में फिल्में ही बनायेगा और वह शख्स कोई और नही बल्कि दादासाहेब फाल्के थे। दादासाहेब ने अपनी जिंदगी को हिंदी सिनेमा के नाम कर दिया और अपने 19 साल के फिल्मी कैरियर में 95 फिल्में और 27 शार्ट फिल्मों का निर्माण किया।

मूल रूप से मुम्बई के रहने वाले फाल्के का जन्म 30 अप्रैल 1870 को हुआ था और उनका असली नाम धुंडिराज गोविंद फाल्के था।बचपन से ही कला में रुचि रखने वाले दादा साहेब ना सिर्फ एक निर्देशक थे बल्कि जाने माने निर्माता और स्क्रीन राइटर भी थे। फाल्के ने बचपन में ही यह तय कर लिया था कि वो अपना करियर फिल्मी क्षेत्र में ही बनाएंगे जिसके लिए उन्होंने अपना दाखिला जेजे कॉलेज ऑफ आर्ट में कराया। इतना ही नही फाल्के ने बड़ौदा के मशहूर कलाभवन से कला की शिक्षा हासिल कर नाटक कम्पनी में चित्रकार के रूप में काम करना शुरू किया और फिर साल 1903 में बतौर फोटोग्राफर पुरातत्व विभाग में काम किया।

ऐसे बनाई पहली फिल्म

लेकिन समय बीतने के साथ दादा साहेब का मन फोटोग्राफी से भी ऊबता गया और फिर उन्होंने अपने जीवन का एक अहम निर्णय लिया और फिल्मकार बनने की राह पर निकल गए। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए फाल्के ने साल 1912 में अपने दोस्त से पैसे उधार लिए और लंदन रवाना हो गए। वहां उन्होंने फिल्म निर्माण के बारे में जानकारी प्राप्त की और इससे जुड़े कुछ उपकरणों के साथ वापिस मुम्बई आ गए।यही वो समय था जब दादा साहेब फाल्के ने मुम्बई में अपनी कम्पनी की शुरुवात की और उसका नाम ‘फाल्के फ़िल्म कम्पनी’ रखा। इसी कम्पनी के बैनर तले फाल्के ने पहला साइलेंट मूवी बनाया जिसका नाम ‘राजा हरिश्चन्द्र’ था और इस मूवी को बनाने में फाल्के को लगभग छह महीने का समय लगा था।

पत्नी ने दिया काफी सहयोग

उस दशक में एक फ़िल्म बनाना काफी मुश्किल का काम था और इस फ़िल्म निर्माण के दौरान फाल्के को काफी मुसीबतों का भी सामना करना पड़ा लेकिन उनकी पत्नी ने उनकी काफी सहायता की। इस फ़िल्म के निर्माण में लगभग 500 लोगों का हाथ था और उनकी पत्नी हर रोज उन 500 लोगों का खाना बनाती थी। वही बात करें अगर पैसों की तो इस फ़िल्म को बनाने में कुल 15,000 रुपये लगे। लगभग 40 मिनट की इस फ़िल्म को पहली बार साल 1913 में 3 मई को कॉर्नेशन सिनेमा हॉल में रिलीज किया गया जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया और उस वक़्त यह फ़िल्म बहुत बड़ी सुपरहिट साबित हुई।

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ऐसा रहा सफर

इस फ़िल्म को दर्शकों की ओर से मिले प्यार के बाद फाल्के ने दूसरे फ़िल्म का निर्माण किया जिसका नाम मोहिनी भस्मासुर था। यह फ़िल्म सिनेमा जगत के इतिहास में काफी महत्वपूर्ण साबित हुई क्योंकि इसी के बाद फिल्मी दुनिया को दो अभिनेत्रियां मिली जिनका नाम दुर्गा गोखले और कमला गोखले था। हालांकि उनकी यह फ़िल्म भी बड़े पर्दे पर हिट साबित हुई जिसके बाद फाल्के ने एक के बाद एक कई सुपरहिट फिल्में बनाई। वही उनकी आखिरी फ़िल्म ‘सेतुबंधन’ थी और फिर साल 1944 में 16 फरवरी को दादासाहेब ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

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Manish Kumar
Manish Kumarhttp://biharivoice.com/
Manish kumar is our Ediitor and Content Writer. He experience in digital Platforms from 5 years.

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