अगर आपको कहा जाए कि विदेशी गाय की तुलना में भारतीय गाय ज्यादा इमोशनल होती है , भारतीय गाय के कूबड़ में अधिक शक्तियां होती है , इसके दूध में सोने के कन मौजूद होते हैं तो आपका क्या रिएक्शन होगा। जी हां इसी तरह की तथ्यों पर एक “गौ-विज्ञान” नामक परीक्षा होने वाली थी। क्या है यह परीक्षा ? क्यों होने वाली थी ? और इस पर क्या विवाद हुआ? आगे क्या होगा? आइए जानते है।
दरअसल बात ये है कि पिछले कुछ समय से देशभर के छात्र इस फिराक में लगे थे कि जहां से भी हो गाय के बारे में जितना ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटा लें उनके लिए उतना फायदेमंद रहेगा। और वह भी कुछ हजार दस हजार नहीं लाखों स्टूडेंट। भारत सरकार की राष्ट्रीय कामधेनु आयोग(RKE) कि वेबसाइट से मिली खबरों को माने तो “कामधेनु गौ-विज्ञान प्रचार-प्रसार परीक्षा” 25 फरवरी को आयोजित होने वाली थी। जिसके लिए 5 लाख लोगों ने रजिस्टर (Cow Exam Registration) भी किया था।
इस वजह से किया गया स्थगित
लेकिन 21 फरवरी को होने वाली मॉक टेस्ट से पहले अचानक इस परीक्षा को स्थगित करने की सूचना मिली। इसके अलावा अगली तारीख की कोई सूचना भी नहीं दी गई जिससे बहुत सवाल
खड़े हो गए। इसके बाद चर्चाओं का बाज़ार भी गर्म रहा। सब लोग परेशान थे कि जिस परीक्षा को लेकर इतनी उत्सुकता थी जिसको लेकर इतना प्रचार किया गया वह अचानक से कैंसिल क्यों हो गया। हालांकि इस परीक्षा से पहले कुछ वैज्ञानिकों , ज्ञानविद और कुछ शिक्षा से जुड़े संगठनों इसका विरोध किया था और कहा था कि इसमें दिए गए तथ्य बहुत ही भ्रामक और गलत है । परीक्षा टालने की सबसे बड़ी वजह इसे ही माना जा रहा है।
साल 2019 में ही वर्तमान नरेंद्र मोदी की सरकार ने राष्ट्रीय कामधेनु आयोग का गठन किया था। उस समय यह कहा गया था कि यह आयोग गाय के संरक्षण और उनके वंश विकास के लिए काम करेगी । भाजपा से जुड़े बल्लभभाई कथिरिया को इसका प्रमुख बनाया गया था जो कि पेशे से एक सर्जन हैं। उनके साथ ही सुनील मानसिन्हका और हुकुमचंद सांवला को दो साल के किए प्रभार दिया गया था। इस साल 20 फरवरी को इन सब का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। और परीक्षा टालने की भी वजह नहीं बताई गई है।
आइए जानते हैं इस विवाद कि जड़ क्या है ?
- दूध कम देने के बावजूद गाय उपयोगी है क्योंकि इसका गोबर और मूत्र कीमती है. भोपाल गैस ट्रैजडी में वो लोग बचे जो गोबर या मूत्र का सेवन करते थे।
- गौ-वंश की हत्या और भूकंप के बीच वैज्ञानिक लिंक है ।
- गौ-मांस खाने वाले नेता के समय में भारत बीफ का लीडिंग एक्सपोर्टर बना।
- गाय के कूबड़ में सोलर पल्स होता है जिससे वह विटामिन डी सोखती है, जो उसके दूध में पाया जाता है. बगैर कूबड़ वाली जर्सी गाय में यह गुण नहीं होता है
- भारतीय गाय यानी कूबड़ वाली ज़ेबू गाय गर्मी, सूखे को सह सकती है, कई रोगों के खिलाफ प्रतिरोध रखती है, हालांकि दूध कम देती है।
- विदेशी गायें आलसी होती हैं, जबकि देसी गाय ज़्यादा इमोशनल, अलर्ट और मज़बूत होती है।
- इस तरह कि भ्रामक तथ्यों के आधार पर परीक्षा लिया जा रहा था जो की विवाद की वजह से टालने पड़ा।
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