Saturday, June 3, 2023

कभी दूध बेचा करते थे बंधन बैंक के मालिक, आज है 54 हजार करोड़ के बैंक का मालिक

मुरली मनोहर श्री कृष्ण कह गए है कि भगवान भी उन्ही की मदद करता है जो अपनी मदद खुद करते है। मंजिल भी उन्हें प्राप्त होती है, जो मेहनत करने से कभी कतराते नही है और बिना कुछ सोचे समझे कठिन परिश्रम करते है। ऐसी ही एक कहानी है बंधन बैंक के मालिक चंद्रशेखर घोष कि जिन्होंने इस बैंक कि स्थापना की, इसके पीछे की कहानी बेहद दिलचस्प है। करीब 6 साल पहले 23 अगस्त 2015 को अरुण जेटली ने चंद्रशेखर घोष के इस बैंक को लांच किया था और आज इस बैंक की मार्किट वैल्यू करीब 54 हज़ार करोड़ रुपये है।

कैसे शुरू हुआ सफर :-

त्रिपुरा के अगरतला में रहने वाले चंद्रशेखर घोष के पिता कि एक छोटी सी मिठाई की दुकान थी और इसी दुकान की मदद से वह अपने नौ सदस्यों वाले परिवार का पालन पोषण करते थे। चंद्रशेखर बचपन से ही घर में पैसों की कमी को देखते बड़े हुए, लेकिन वह कभी इसके कारण निराश नही हुए और मेहनत और लगन से अपनी पढ़ाई करते गए। मूल रूप से बांग्लादेश से ताल्लुक रखने वाले चंद्रशेखर ने अपनी मास्टर्स की डिग्री भी वही से ली और अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्होंने अपना पहला काम ढाका में ही शुरू किया।

ट्यूशन पढ़ाकर जमा किये पढ़ाई के पैसे :-

अपनी 12वीं तक कि पढ़ाई त्रिपुरा से पूरी करने के बाद चंद्रशेखर बांग्लादेश चले गए और वहां उन्होंने साल 1978 में ढाका यूनिवर्सिटी से अपनी स्नातक की डिग्री ली। ढाका में उन्होंने अपने खाने और रहने का इंतजाम ब्रोजोनंद सरस्वती के आश्रम में किया। चंद्रशेखर के पिता ब्रोजोनंद सरस्वती के बड़े भक्त थे इसलिए उनका वहां रहने का इंतजाम बड़ी आसानी से हो गया। खाने और रहने के अलावा चंद्रशेखर अपने सारे खर्च खुद ही उठाते थे। उन्होंने वहां बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया और ट्यूशन के फीस की मदद से वह अपने पढ़ाई का खर्च निकालते थे।

पहली कमाई से खरीदी पिता के लिए शर्ट :-

चंद्रशेखर ने अपने पहले बार कमाए 50 रुपयें से अपने पिता के लिए एक शर्ट खरीदा और जब वो उसे लेकर गांव गए और पिता को वो शर्ट निकाल कर दी तो उनके पिता ने उनसे कहा कि वह इस शर्ट को अपने चाचा को दे दें क्योंकि उन्हें इस शर्ट की ज्यादा जरूरत है। चंद्रशेखर बताते है कि अपने पिता की इन्ही बातों से उन्होंने सीखा है कि हमे केवल अपने बारे में नही बल्कि अपने साथ साथ दूसरों के बारे में भी सोचना चाहिए और यह एक बहुत बड़ी बात है।

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महिलाओं को सशक्त बनाने का किया काम :-

अपनी मास्टर्स डिग्री पूरी करने के बाद चंद्रशेखर को साल 1985 में ढाका के ही एक इंटरनेशनल डेवलपमेंट नॉन प्रॉफिट आर्गेनाईजेशन में जॉब मिल गई। इस संगठन का काम बांग्लादेश के छोटे छोटे गांव की महिलाओं को सशक्त बनाना था।इसी काम में अब घोष भी जुड़ गए थे। एक मीडिया हाउस से बात करने के दौरान घोष ने बताया कि उन गाँव की महिलाओं की हालत बेहद खराब होती थी, उन्हें अपने पेट भरने के लिए बीमार अवस्था में भी मजदूरी करनी पड़ती थी और यह देख घोष खुद को रोक नही पाते थे और रो पड़ते थे। करीब डेढ़ सालों तक BRAC में काम करने के बाद घोष साल 1997 में वापिस कोलकाता लौट आये और वापिस आते ही उन्होंने साल 1998 में विलेज वेलफेयर सोसाइटी जिसका मकसद लोगों को उनके अधिकारों के प्रगति जागरूक करना था, वहां काम स्टार्ट किया।

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बांग्लादेश के दूर दराज वाले इलाकों में जब घोष ने यह देखा कि वहाँ भी महिलाओं की स्तिथि वैसी ही है जैसी ढाका में थी तब उन्होंने यह समझा कि महिलाओं की स्तिथि तब ही बदल सकती है जब वो पूर्ण रूप से किसी और पर नही बल्कि खुद पर निर्भर हो। उन्होंने यह भी जाना कि शिक्षा से वंचित होने के कारण वहां की महिलाओं को बिज़नेस के बारे में कोई आईडिया नही होता था और इसी वजह से वह शोषण का शिकार बनती थी।

ऐसे मिला बैंक का लाइसेंस :-

महिलाओं की ऐसी स्तिथि देख घोष ने यह तय कर लिया था कि वह इसे बदल कर रहेंगे। साल 2013 में रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने निजी क्षेत्रों द्वारा बैंक स्थापित करने का आवेदन आमंत्रित किया जिसके बाद घोष ने भी इसमे लाइसेंस पाने के लिए आवेदन कर दिया। घोष ने बंधन बैंक के नाम से लाइसेंस लेने के लिए आवेदन डाला और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने इसे मान्य करार करते हुए लाइसेंस भी सौंप दिया। हालांकि इस फैसले से सबकोइ हैरान था क्योंकि एक माइक्रो फाइनेंस कंपनी को लाइसेंस मिलना सच में बेहद आश्चर्य की बात थी। इस बैंक कि मान्यता मिलते ही साल 2015 में घोष ने इसमें पूरी तरह से काम करना शुरू किया और करीब 80 हज़ार महिलाओं की जिंदगी को बदल डाला।

केवल 12 कर्मचारियों से कंपनी कि शुरुवात की :-

महिलाओं की समाज में बत्तर स्तिथि को देख चंद्रशेखर घोष ने यह माइक्रो फाइनेंस कंपनी की स्थापना की। हालांकि उस वक़्त अपनी खुद की नौकरी छोड़ एक कंपनी खोलना बेहद मुश्किलों भरा और रिस्की काम था लेकिन फिर भी घोष ने यह कदम उठाया। उन्हें यह भी पता था कि उनके नौकरी छोड़ने से उनके घर वालों को बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा लेकिन फिर भी घोष ने अपने कदम पीछे नही किये और अपने साले और 2 लाख रुपये उधार लेकर कंपनी की शुरुवात की।

इस दौरान उन्हें कई लोगों ने यह समझाया कि नौकरी छोड़ना सही निर्णय नही है लेकिन घोष ने किसी की भी नही सुनी और खुद पर भरोसा करते हुए उन्होंने बंधन बैंक की स्थापना की। इसके बाद उन्हें साल 2002 में सिडबी की तरफ से करीब 20 लाख का लोन प्राप्त हुआ और उसी साल उनके बैंक ने 1,100 महिलाओं के बीच 15 लाख का लोन दिया। जिस वक्त घोष ने अपनी कम्पनी की शुरुवात उस वक़्त उनके साथ केवल 12 लोग ही काम करते थे लेकिन अब ना सिर्फ इस बैंक के कर्मचारियों की संख्यां में इजाफा हुआ है बल्कि इसकी शाखाओं की संख्यां में भी बढ़ोतरी हो चुकी है।

Manish Kumar
Manish Kumarhttp://biharivoice.com/
Manish kumar is our Ediitor and Content Writer. He experience in digital Platforms from 5 years.

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