बुधवार को गणपति के इस चमत्कारी मंत्र का करेे जाप, पैसों की तंगी होगी दूर

Rin Mochan Ganapati Stotram: सनातन धर्म में बुधवार का दिन भगवान गणेश को समर्पित होता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है और भगवान गणेश सबकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। भगवान गणपति को विघ्नहर्ता के नाम से जाना जाता है और गणपति सबके कष्ट को दूर करते हैं।

भक्ति श्रद्धा भाव से भगवान गणेश की पूजा करते हैं तो भगवान सबके कष्ट को दूर करते हैं। आप अगर कासन का सामना कर रहे हैं और आपको किसी भी तरह की समस्या है तो आप भगवान गणेश के इस चमत्कारी मंत्र का हर मंगलवार को जाप करें, इससे आपके सभी कष्ट का निवारण होगा।

ऋणमोचन महागणपति स्तोत्र(Rin Mochan Ganapati Stotram)

ॐ स्मरामि देव-देवेश, वक्र-तुण्डं महा-बलम्।

षडक्षरं कृपा-सिन्धु, नमामि ऋण-मुक्तये।।

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महा-गणपतिं देवं, महा-सत्त्वं महा-बलम्।

महा-विघ्न-हरं सौम्यं, नमामि ऋण-मुक्तये।।

एकाक्षरं एक-दन्तं, एक-ब्रह्म सनातनम्।

एकमेवाद्वितीयं च, नमामि ऋण-मुक्तये।।

शुक्लाम्बरं शुक्ल-वर्णं, शुक्ल-गन्धानुलेपनम्।

सर्व-शुक्ल-मयं देवं, नमामि ऋण-मुक्तये।।

रक्ताम्बरं रक्त-वर्णं, रक्त-गन्धानुलेपनम्।

रक्त-पुष्पै पूज्यमानं, नमामि ऋण-मुक्तये।।

कृष्णाम्बरं कृष्ण-वर्णं, कृष्ण-गन्धानुलेपनम्।

कृष्ण-पुष्पै पूज्यमानं, नमामि ऋण-मुक्तये।।

पीताम्बरं पीत-वर्णं, पीत-गन्धानुलेपनम्।

पीत-पुष्पै पूज्यमानं, नमामि ऋण-मुक्तये।।

नीलाम्बरं नील-वर्णं, नील-गन्धानुलेपनम्।

नील-पुष्पै पूज्यमानं, नमामि ऋण-मुक्तये।।

धूम्राम्बरं धूम्र-वर्णं, धूम्र-गन्धानुलेपनम्।

धूम्र-पुष्पै पूज्यमानं, नमामि ऋण-मुक्तये।।

सर्वाम्बरं सर्व-वर्णं, सर्व-गन्धानुलेपनम्।

सर्व-पुष्पै पूज्यमानं, नमामि ऋण-मुक्तये।।

भद्र-जातं च रुपं च, पाशांकुश-धरं शुभम्।

सर्व-विघ्न-हरं देवं, नमामि ऋण-मुक्तये।।

यः पठेत् ऋण-हरं-स्तोत्रं, प्रातः-काले सुधी नरः।

षण्मासाभ्यन्तरे चैव, ऋणच्छेदो भविष्यति।

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ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र


ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्।

ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्।।

सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजितः फल-सिद्धये।

सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।

त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चितः।

सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।

हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चितः।

सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।

महिषस्य वधे देव्या गण-नाथः प्रपुजितः।

सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।

तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजितः।

सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।

भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धये।

सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।

शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायकः।

सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।

पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजितः।

सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।

इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं,

एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहितः।

दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत्।।

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