तीन दोस्त बनने निकले इंजीनियर, छूटी ट्रेन पर हार नहीं माने,एक बना IFS, दूसरा IAS और तीसरा IRTS

सिविल सर्विसेज में बिहार की भागीदारी को लेकर भले ही अलग धारणा लोगों में बनी हो लेकिन सच्चाई तो यह है कि पिछले 10 सालों में बिहार ने देश को 125 आईएएस ऑफिसर दिए हैं. 1 जनवरी 2017 के अनुसार देश में आईएएस कैडर का हर दसवां आदमी बिहार से है। देश के 1588 आईएएस अफसरों में से 108 बिहार के हैं (ये आंकड़े 1997 से 2006 के बीच के हैं). आज हम ऐसे ही एक बिहारी प्रतिभा की कहानी बताने जा रहे हैं पटना के स्कूल में पढ़ाई के दौरान तीन छात्र दोस्त बने.ये कहानी है पटना के तीन दोस्तों की. अरुण कुमार सिंह, अफजल अमानुल्ला और कुंदन सिन्हा पटना के संत माइकल स्कूल में एक साथ पढ़ते थे.

संजोग ऐसा कि तीनों छात्रों के पिता इंजीनियर थे और अपने बेटे को भी इंजीनियर बनाना चाहते थे इन तीनों को इंजीनियरिंग की परीक्षा देने पटना से बाहर जाना था और तीनों को एक ही ट्रेन से सफर करनी थी लेकिन संजोग कुछ ऐसा हुआ कि उन्हें स्टेशन पहुंचने में देर हो गई जब तक वह प्लेटफार्म पर पहुंचते तब तक उनकी ट्रेन खुल चुकी थी ट्रेन छूटने का उन्हें बेहद ही अफसोस हुआ ट्रेन छूटने से सपने टूटने की कसक भी हुई लेकिन उन्होंने उसी समय फैसला कर लिया कि अब इंजीनियर नहीं बनना है.

सिविल सर्विसेज परीक्षा पास करने की ठानी

जब ट्रेन छूट जाने के कारण उनके इंजीनियर बनने का सपना टूटा तो तीनों ने दिल्ली जाकर ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने लगे. अरुण कुमार सिंह ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स ऑनर्स में एडमिशन लिया एम ए करने के बाद वे 2 साल तक दिल्ली यूनिवर्सिटी में लेक्चरर रहे. 1979 में उनका चयन भारतीय विदेश सेवा के लिए हुआ यूपीएससी की मेरिट लिस्ट में उनका स्थान चौथा था.

वहीं अफजल अमानुल्लाह ने दिल्ली आने के बाद सेंट स्टीफेंस कॉलेज में दाखिला लिया इन्होंने भी इकोनामिक से ग्रेजुएशन किया फिर दिल्ली स्कूल इकोनॉमिक्स M.A किया. 1979 में वे भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए चुने गए. इनके तीसरे दोस्त कुंदन सिन्हा की किस्मत भी 1979 में ही मेहरबान हुए कुंदन सिन्हा रेलवे टैरिफ सर्विसेज के लिए चुने गए. अरुण कुमार सिंह कई देशों में राजदूत रहे नरेंद्र मोदी की सरकार में उन्हें 2015 में अमेरिका के राजदूत बनाकर एक बड़ी जिम्मेदारी दी थी. अमेरिका का राजदूत होना एक रूप से बड़ी जिम्मेवारी मानी जाती है. यह पद सरकार सबसे काबिल ऑफिसर कोही देता है विदेश नीति के हिसाब से सरकार का यह बड़ा फैसला होता है.

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कुंदन सिन्हा भी रेलवे के काबिल अफसर बने

ट्रेन छूटने की घटना ने इन तीन दोस्तों की जिंदगी में एक नया मोड़ पैदा कर दिया अगर ट्रेन मिल जाती और वह इंजीनियरिंग की परीक्षा पास कर जाते तो उनकी भूमिका कुछ अलग ही होती. लेकिन तकदीर ने उनके लिए कुछ और तय कर रखा था और इन लोगों ने भी मेहनत की. वह कहते हैं ना अगर आपके लिए एक रास्ते बंद होते हैं तो कई रास्ते खुले भी होते हैं. स्कूल के इन तीनों दोस्तों की किस्मत देखिए कि वह एक ही साल 1979 में भारत के उच्च सेवा के लिए चुने गए.

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