मुसीबते हमें तोड़ती या गढ़ती है ये किसी भी इंसान की शख्सियत पर निर्भर करती है। जज्बा और हिम्मत के आगे मुसीबते हमेशा से बौनी पड़ती रही है और मशहूर एथलीट हिमा दास ने भी मुसिबतों को हमेशा अपने हौसलों से मात दिया है। गरीबी और सामजिक दशा हमेशा किसी भी इंसान की जिंदगी में चट्टान बढ़कर खड़ी होती है लेकिन जो तूफानों से टकराते है वही आसमान की बुलंदी को चूमते हैं।
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कुछ दिनों पूर्व जब अन्तर्राष्य्रीय ख्याति प्राप्त एथलीट हिमादास को DSP बनाया गया तो वर्दी में उनकी तस्वीरें वायरल होने लगीं। आज यह दिन है जब उपलब्धिया और हिमा दास एक दूसरे के पर्याय बन चुके है लेकिन इस बुलंदी तक पहुंचने के लिए कभी हिमा दास कदम कदम की ठोकर खा चुकी हैं लेकिन लगन ऐसी , चाह ऐसी कि वे सारे मुश्किलो को अपने साहस से रौंदती हुई न केवल अपने परिवार और गाँव् का ही नहीं बल्कि पुरे विश्व में ही हिंदुस्तान का नाम रोशन किया है।
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हिमा दास अभी 21 वर्ष की हैं, उन्हें बीते दिनों एक समारोह में असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने हिमा को नियुक्ति पत्र सौंपा। हिमा दास भी असम की ही रहनेवाली है। वे प्रथम भारतीय महिला एथलीट है जिन्होंने किसी भी फॉर्मेट में स्वर्ण पदक जीता है। साल 2019 में उन्होंने पांच स्वर्ण पदक अपने नाम किया। उनके एथलीट बनने का सफर गरीबी के अँधेरे में शुरू हुआ था। लडकिया कुछ आगे बढ़ी जरूर है लेकिन अभी खेल के मैदान में लडकिया वैसे ही दिखती हैं जैसे सितारों के बीच एक चाँद।
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हिमा लड़को के साथ फूलबॉल खेला करती थी और लड़के उनसे हार जाते थे। उनकी फुर्ती को देखते हुए उनके कोच ने उन्हें एथलीट बनने की सलाह दी और हिमा का मन इधर रम गया। लेकिन इतने पैसे नहीं थे की हिमा के घरवाले उन्हें एक जूते भी दे सके। हिमा का परिवार खेती करते हैं। हिमा नंगे पाँव ही दौड़ने का अभ्यास करती और रेस में भाग लेती । उनकी फुर्ती और स्पीड के आगे लड़के भी घुटने टेकते थे।
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उनकी उपलब्धि के चलते उन्हें Adidas का ब्रांड एम्बेसडर भी बनाया गया जो जूतों की एक कंपनी थी। ये वाकया भी गजब हुआ की जो हिमा दास कभी नंगे पांव रेस में दौड़ती थी उन्होंने वह मुकाम हासिल किया कि वे जूते की कंपनी की ब्रांड एम्बेसडर बन गईं।
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