Mulayam Singh Yadav Funeral Live Update: समाजवादी पार्टी के संरक्षक और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने 10 अक्टूबर को सुबह 8:13 पर लंबी बीमारी के बाद दुनिया को अलविदा (Mulayam Singh Yadav Death) कह दिया। आज मुलायम सिंह यादव का अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव सैफई में किया जाएगा। सोमवार सुबह गुरुग्राम के मेदांता हॉस्पिटल में उनके निधन के बाद से सैफई में मातम पसर गया है। पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के निधन पर उत्तर प्रदेश में 3 दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया है।
मुलायम सिंह यादव का अंतिम संस्कार
सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के अंतिम संस्कार कार्यक्रम और उनके अंतिम दर्शन करने के लिए भारी तादाद में लोग सफाई में एकत्रित हुए हैं। उनके पैतृक घर सैफई में श्रद्धांजलि देने वालों की भारी भीड़ उमड़ी हुई है। मुलायम सिंह यादव के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक सभी ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए परिवार को इस दुख को सहने की शक्ति देने की कामना की है। साथ ही कहा है कि मुलायम सिंह यादव का निधन राजनीति के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है, जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती।
मुलायम सिंह यादव के अंतिम संस्कार कार्यक्रम का ब्यौर
नेताजी के अंतिम दर्शन के लिए उनका पार्थिव शरीर आज सुबह 10:00 बजे सैफई मेला ग्राउंड के पंडाल में रखा जाएगा। मुलायम सिंह यादव के पार्थिव शरीर के दर्शन करने के लिए भारी तादाद में लोगों की भीड़ यहां इकट्ठा हुई है। बता दे यूपी के अलग-अलग जिलों से लोग नेता जी के अंतिम दर्शन करने आ रहे हैं। नेताजी का अंतिम संस्कार दोपहर 3:00 बजे किया जायेगा।
मुलायम सिंह यादव के अंतिम संस्कार कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनके अंतिम दर्शन के लिए आ सकते हैं, तो ही इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ-साथ कई केंद्रीय मंत्री और प्रदेश मंत्रियों शामिल होंगे।
अधूरी रह गई ‘धरतीपुत्र’ की एक ख्वाहिश
निदा फ़ाज़ली ने इस जमाने की हकीकत को अपने शब्दों में बयां करते हुए कहा था- कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कहीं जमीन तो कहीं आसमान नहीं मिलता… उनका यह शेर धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव के जीवन को भी चरितार्थ करता है। मुलायम सिंह यादव का सपना प्रधानमंत्री बनने का था और दो बार उन्हें यह मौका भी मिला, लेकिन दोनों बार उनकी ख्वाहिश अधूरी रह गई। साल 1996 और 1999 में दो बार वह दिल्ली की सत्ता पर काबिज होते-होते अचानक दौड़ से बाहर हो गए। इस दौरान कहा जाता है क्योंकि अपनों ने ही उनका पत्ता काटा था, जिसकी कसक उन्हें उनकी अंतिम सांस तक रही।