आज हम आपको ऐसे ही एक शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं जो अदालत यानी कोर्ट (Court) में चपरासी की नौकरी करता था। जिस अदालत में यह शख्स चपरासी का काम करता है उसी अदालत में आज उसकी बेटी जज बनकर पहुंची है। यह कहानी उन लाखों लोगों के लिए प्रेरणा है जो अपना मुकाम तय करने के लिए हर संघर्ष से जूझते है।
अदालत में चपरासी की नौकरी करने वाले अर्चना ने अपने पिता के सरकारी झोपड़ीनुमा छोटे से घर में ही जज बनने का सपना देखा था।अर्चना को अपने पिता गौरीनंदन को चपरासी के रूप में देखना अच्छा नहीं लगता था। बस तभी से उन्होंने ठान ली थी कि वो जज ही बनेगी। उन्होंने उस छोटी सी झोपड़ी में जज बनने का सपना तो बन लिया था.
साधारण से परिवार में जन्मी अर्चना के पिता गौरी नंदन जी सोनपुर सिविल कोर्ट जिला छपरा में चपरासी पद पर थे. शास्त्री नगर कन्या हाई स्कूल से उन्होंने 12वीं तक की शिक्षा ली इसके बाद वह पटना विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया. लेकिन उनके परिवार पर एक मुसीबत तब आ गई जब उनके पिता की अचानक मृत्यु हो गई. जिसके बाद परिवार की जिम्मेदारी अर्चना पर आ गए उन्होंने पढ़ाई भी की और कोचिंग में पढ़ा कर परिवार भी चलाया.
साधारण से परिवार में जन्मी अर्चना के पिता गौरी नंदन जी सोनपुर सिविल कोर्ट जिला छपरा में चपरासी पद पर थे. शास्त्री नगर कन्या हाई स्कूल से उन्होंने 12वीं तक की शिक्षा ली इसके बाद वह पटना विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया. लेकिन उनके परिवार पर एक मुसीबत तब आ गई जब उनके पिता की अचानक मृत्यु हो गई. जिसके बाद परिवार की जिम्मेदारी अर्चना पर आ गए उन्होंने पढ़ाई भी की और कोचिंग में पढ़ा कर परिवार भी चलाया.
अर्चना की शादी पटना मेडिकल कॉलेज के क्लर्क राजीव रंजन से हुआ. शादी के बाद अर्चना के पति राजीव रंजन ने अर्चना की एलएलबी के लिए पुणे विश्वविद्यालय में एडमिशन कराया अंग्रेजी माध्यम से अर्चना ने एलएलबी और बीएमटी लॉ कॉलेज पूर्णिया से LLM किया. अपने दूसरे ही प्रयास में उन्होंने बिहार न्यायिक सेवा में सफलता प्राप्त की है अर्चना कहती है जज बनने का सपना तब देखा था जब वह सोनपुर जज कोठी में एक छोटे से कमरे में परिवार के साथ रहती थी.
अर्चना ने कहा उनके पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने बहुत कष्ट झेले क्योंकि पूरे परिवार की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर आ गई थी. लेकिन मैंने सपना पूरा करने के प्रयास नहीं छोड़े उन्होंने कहा कि शादी के बाद मैंने पढ़ाई जारी रखी और दिल्ली में ज्यूडिशरी की तैयारी छात्रों को कराई. वह भावुक होते हुए कहते हैं कि पिता की मृत्यु के बाद मां ने हर मोड़ पर साथ दिया, पति ने सहयोग किया और भाई-बहन ने हिम्मत दिया जो मेरे लिए हौसला बनी. उन्होंने कहा कि नारी जो ठान ले हुआ कर सकते कठिनाइयां हर सफर में आती है लेकिन हौसला नहीं छोड़ना चाहिए.
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