किसान के बेटा कई मुसबितों को मात दे बना आईएएस ऑफिसर, जाने उसके संघर्ष की कहानी

हर साल देश के लाखों युवक कम्पटीशन एग्जाम की पूरी लगन और मेहनत से तैयारी करते है और परीक्षा को पास करने की हर सफल कोशिश करते है। लेकिन उन लाखों बच्चों में से कुछ ही को सफलता प्राप्त होती है। परीक्षा पास ना होने के बाद कइयों के हौसले टूट जाते है तो कई उस हार को अपना औजार बना कर और मजबूती से वापिस खड़े होते है।देश मे ऐसे कई लोग है जिनकी कहानी हमें एक शिक्षा और प्रेरणा देती है। ऐसी ही एक कहानी है नजीवन पवार की जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से यूपीएससी की परीक्षा को पार कर 316 रैंक हासिल किया।

महारास्ट्र के छोटे गांव में रहने वाले नवजीवन पवार के पिता एक किसान है। वह बचपन से ही एक सामान्य माहौल में रहे हैं उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव से ही पूरी की। अपनी प्राथमिक शिक्षा करने के बाद नवजीवन ने यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा देने का निर्णय लिया। अपने पिताजी के कहने पर वह इस परीक्षा की तैयारी के लिए दिल्ली चले गए। नवजीवन ने दिल्ली में दिन रात एक कर पढ़ाई की। वहां उन्होंने बहुत से काबिल कैंडिडेट्स को असफल होते भी देखा लेकिन फिर भी हिम्मत नहीं हारे.

या तो उनको पकड़कर रो या उनसे लड़ो

हर आम स्टूडेंट्स की तरह नवजीवन ने भी अपने परीक्षा की तैयारी के दौरान बहुत सी मुश्किलों का सामना किया पर लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नही हारी और हर मुश्किलों का डट कर सामना किया। उन्होंने हर मुसीबतों में अपने अवसर को तलाशा और अपनी तैयारियों में लगे रहे। नवजीवन का मानना है कि लाइफ में मुश्किल के समय दो ही विकल्प होते हैं, या तो उनको पकड़कर रो या उनसे लड़ो. नवजीवन ने हमेशा दूसरा विकल्प चुना.

नवजीवन की मुश्किलें तब ज्यादा बढ़ गई जब उन्होंने अपनी प्री परीक्षा को पास कर लिया था और अपने मेंस की तैयारियों के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे थे। तभी अचानक उनकी तबियत खराब हो गई। बाद में उन्हें पता चला कि उन्हें डेंगू हो गया है। इस खबर के मिलते ही नवजीवन के पिताजी ने उन्हें अपने पास नासिक बुला लिया। उस वक़्त नवजीवन को अपने घर जाना पड़ा पर वो घर जाकर भी घर पर नही रहे, उन्हें आईसीयू में भर्ती कराया गया ।

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नवजीवन के इस अवस्था ने उनका पूरा रूटीन खराब कर दिया था जिसके बाद वह खूब रोये। तब नवजीवन के पिता ने उन्हें समझाया और कहा कि जब जीवन में ऐसी मुश्किल आये तो इंसान दो ही काम कर सकता है, रोना या उस हालात से मजबूती से लड़ना। बस उसी वक़्त नवजीवन ने यह तय किया कि उन्हें थक कर बैठना नहीं है, उन्हें लड़ना हैं। उसके बाद उन्होंने दोस्तों, सीनियर्स और परिवार के मदद अस्पताल में ही पढ़ाई शुरू कर दी. पढ़ाई के वक्त उन्हें जो भी डाउट होते थे वह सीनियर्स और उनके दोस्त क्लियर कर दिया करते. अस्पताल वाले भी नवजीवन का जज्बा देख हैरान थे. उनकी ज्यादातर तैयारी हॉस्पिटल में हुई.

कठिन समय मे भी हिम्मत नहीं हारे

इस बीमारी के अलावा भी उन डेढ़ साल में नवजीवन ने कई मुश्किलों का सामना किया। इतना ही नही उन्हें एक ज्योतिषी ने यह तक कह दिया था कि उनसे यूपीएससी की परीक्षा पास नही होगी। जिसके बाद उन्होंने यह फैसला लिया कि उनकी जिंदगी का फैसला वह खुद लिखेंगे ना कि कोई ज्योतिषी। उनके इस प्रण के बाद नवजीवन को एक कुत्ते ने काट लिया, उनका डेटा से भरा फ़ोन तक चोरी हो गया। इतने कठिन हालात से गुजरने के बाद भी नवजीवन हार नही माने और अपनी यूपीएससी की परीक्षा देने के पूर्व वह कई कड़ी परीक्षाओं को पास करते गए।

किया यूपीएससी कीलियर

अपनी यात्रा के बारे में नवजीवन ने बताया कि अगर किसी चीज को पूरे दिल से चाहो तो पूरी कायनात तुम्हें उससे मिलाने में जुट जाती है. नवजीवन ने जिस हौसले और मेहनत के साथ यह मुकाम हासिल किया है वो बेहद काबिले तारीफ है। इतनी सारी बाधाएं आने के बाद भी नवजीवन ने हार नही मानी। यूपीएससी क्रेक कर उन्होंने अपनी सारी बाधाओं को अलविदा कह दिया और ओम शांति ओम के इस डायलॉग को असल जिंदगी में भी सच कर दिखाया. न सिर्फ खुद के लिए बल्कि आज नवजीवन उन लाखों बच्चों के लिए प्रेरणा है जो आज यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी कर रहे है और साथ ही मुसीबतों और असफलता की वजह से हार मान लेते हैं और तैयारी करना बंद कर देते हैं.

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