दिवाली पर यहां लगता है ‘गधों का मेला’, अयोध्या दीपोत्सव की तरह ही पूरी दुनिया में होती है इसके चर्चा

प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या में वर्षो से धुमधाम से दीपोत्सव मनाया जाता है, इस बार भी यहाँ दीपोत्सव की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। अयोध्या में दीपोत्सव के अवसर पर जलाए जाने वाले 9.50 लाख दीयों की चर्चा दुनियाभर में की जाती है। अयोध्या दीपोत्सव की तरह एक खास आयोजन दिवाली के मौके पर होता है, और उसे भी देखने लोग दूर दूर से आते हैं।दिवाली के मौके पर मंदाकिनी तट पर विशाल गधा मेला आयोजित की जाती है। इस दौरान भारत के कई राज्यों से व्यापारी गधों की बिक्री के लिए आते हैं, और करोड़ों का कारोबार होती है।

मेले में गधे, घोड़े और खच्चरों की बिक्री

दिवाली के दिन मंदाकिनी नदी के तट पर विशाल गधा मेला का आयोजन किया जाता है, जो मध्यप्रदेश के सतना जिले की धार्मिक नगरी चित्रकूट में मंदाकिनी के तट पर होता है। वैसे तो मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश दो अलग राज्य हैं, लेकिन, चित्रकूट और अयोध्या के बीच में सदियों से धार्मिक जुड़ाव रहा है।

चित्रकूट प्रभु श्रीराम की तपोभूमि है, जहां दिवाली के दौरान मंदाकिनी नदी के तट पर गधों का मेला लगता है, यहाँ पांच दिनों तक व्यापारियों और खरीददारों की बड़ी भीड़ रहती है। पांच दिनों तक गधों की खरीद-बिक्री होती है और इस दौरान करोड़ों का कारोबार होता है। सतना जिला पंचायत की तरफ से मेले का आयोजन किया जाता है। मेले में गधे के अलावा घोड़े-खच्चरों की भी बिक्री की जाती है।

दिवाली पर पांच दिनों का दीपदान मेला

कहा जाता है कि चित्रकूट मे गधों के​ मेले की परंपरा अरसो पुरानी है, इसे मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा शुरू किया गया था। उस समय मेले से मुगल सेना के बेड़े में गधे-खच्चर शामिल किए गए थे। ये तो हुई गधे मेले की बात, इसके अलावा दिवाली के और भी रंग हैं। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर चित्रकूट तीर्थ क्षेत्र में पांच दिनों के दीपदान मेले का अलग ही उल्लास होता है। इस दौरान भारतीय लोक संस्कृति की झलक और अनेकता में एकता का नायाब नमूना देखने को मिलता है। दीपदान मेले के दौरान सांस्कृतिक विविधता और ऐतिहासिक एकता की झलक देखने को मिलती है। चित्रकूट मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की तपोभूमि रही है। ऐसे मे यहाँ आयोजित किए जाने वाले दीपदान मेला का अपना एक खास महत्त्व होता है।