ईश्वर ने यह धरती बनाई और इस धरती पर कई सारे ऐसे लोगों को जन्म दिया जो दुनिया के लिए वरदान निकलें। लेकिन कुछ लोगों को ऐसा भी बनाया जिन्हें अपनी विकलांगता पर अफसोस होता रहा। लेकिन आज हम आपको एक ऐसी शख्सियत की कहानी बताने जा रहे हैं जिन्होंने अपनी असफलताओं का दोष किस्मत को नहीं दिया। उन्होंने तो बस अपने बल पर मेहनत की,आगे बढ़े और लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत बने।
जी हां, हम बात कर रहे हैं सुहास लालीनाकेरे यतीराजी की। यह वही दिव्यांग है जो बिना रुके ही आगे बढ़े और टोक्यो पैरालंपिक्स में बैडमिंटन खेलते हुए भारत के लिए गोल्ड जीत कर लाएं। आइए जानते हैं कैसे सुहास ने अपने दृढ़ संकल्प से यूपीएससी की परीक्षा पास की और फिर टोक्यो पैरालंपिक्स में भारत के लिए गोल्ड मेडल जीत कर लाएं।
इंजीनियरिंग की डिग्री से नहीं मिली संतुष्टि तो बन गए आईएएस अफसर
सुहास कर्नाटक के शिगोमा के एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं। बचपन से ही वह दिव्यांग है। उनके पिता एक सरकारी कर्मचारी थे जिसकी वजह से सुहास की पढ़ाई अलग-अलग शहरों से हुई। उनके परिवार वाले चाहते थे कि वह बड़े होकर एक डॉक्टर बने, लेकिन सुहास ने इंजीनियरिंग की तरफ रुख कर लिया। उनके इस फैसले पर उनके परिवार वालों ने भी उनका पूरा सहयोग किया।
सुहास ने कठिन परिश्रम से साल 2004 में कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की डिग्री ले ली। लेकिन उन्हें इस डिग्री से संतुष्टि नहीं थी। इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद वो भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए तैयार हुए और उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली। 3 साल की कड़ी मेहनत के बाद वो आईएएस अफसर बन गए।
बैडमिंटन खेलने के शौक को गोल्ड मेडल में कर दिया तब्दील
सुहास बचपन से ही पढ़ाई के साथ खेलकूद का भी काफी शौक रखा करते थे। उन्हें बैडमिंटन खेलना काफी पसंद था। आगे चलकर उन्होंने अपने इसी शौक को जुनून में बदल डाला और इसी जुनून से देश के लिए ले आए गोल्ड मेडल। उन्होंने साल 2016 में इंटरनेशनल मैच खेलना शुरू कर दिया। पहले मैच में तो उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
लेकिन उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह अपने निरंतर अभ्यास से देश-विदेश के कई मैच में गोल्ड मेडल हासिल करते गए। आपको बता दें कि इस साल टोक्यो पैरालंपिक्स में बैडमिंटन खेलते हुए सुहास ने भारत के लिए गोल्ड मेडल जीता है।
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