शादी में दिए जाने वाले दहेज वैसे तो एक सामाजिक बुराई के रूप में जानी जाती है लेकिन अभी भी ज्यादातर शादियों में दहेज का प्रचलन है। पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दहेज को लेकर ठोस निर्देश देने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई की गई, इस सुनवाई में कोर्ट ने कहा कि भारतीय विधि आयोग इस मुद्दे पर अपने सभी दृष्टिकोणों के तहत विचार करें तो ये उचित हो सकता है।
याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, दहेज एक सामाजिक बुराई है, इसमें कोई दोराय नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि शादी में दिए गए आभूषण और अन्य संपत्ति को कम से कम सात साल तक महिला के नाम पर रखने की प्रार्थना बहुत मान्य है और विधायिका इस पर बहुत गंभीरता से विचार करेगी।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह भी कहा गया कि दायर याचिका में कई प्रकार की मांग याचिकाकर्ता द्वारा की गई हैं। इसमें पहला है, दहेज निषेध अधिकारी को एक आरटीआई अधिकारी के समान नामित की जाए, लेकिन अदालत ऐसा नहीं कर सकती है, आरटीआई अधिकारी को भी केंद्रीय कानून के तहत नामित किया गया है। दूसरा सुझाव शादी में दिए गए गहने और अन्य संपत्ति को कम से कम 7 साल तक महिला के नाम पर रखने की प्रार्थना का है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे बहुत मान्य बताया और कहा कि विधायिका इस पर बहुत गंभीरता से विचार करेगी।’
सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि तीसरी प्रार्थना विवाह पूर्व विवाह पाठ्यक्रम आयोग के गठन के बारे में है, जिसमें कानूनी विशेषज्ञ, शिक्षाविद, मनोवैज्ञानिक, सेक्सॉलिजिस्ट शामिल हों, ताकि दाम्पत्य जीवन से पूर्व विवाह करनेवाले व्यक्ति विवाह काउंसलिंग से गुजरें और इस पाठ्यक्रम को विवाह पंजीकरण के लिए अनिवार्य बनाए जाने की प्रार्थना की गई है।
अधिवक्ता वीके बीजू ने इस बात पर बल देते हुए कहा कि इससे मिलता जुलता मुद्दा सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य पीठ के समक्ष पूर्व से लंबित है, जिसके लिए 8 नवंबर को नोटिस जारी किया गया था और न्यायालय द्वारा कम से कम तीसरी प्रार्थना की सीमा तक एक पाठ्यक्रम आयोग के संबंध में नोटिस जारी करने पर विचार किया जा सकता है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के शब्दों मे, ‘कुछ भी नोटिस से बाहर नहीं किया जाएगा। कानून आयोग के अधिकार सीमा में यह है कि दहेज निषेध कानून को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए क्या सुझाव दिए जा सकते हैं, बजाय इसके कि हम सिर्फ नोटिस जारी करें।’
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