दिवाली मतलब उत्साह, उमंग और पटाखे । पुरातन काल से दिवाली में दिए जलाने की प्रथा है और सैकड़ों सालों से हम पटाखे की बात सुनते आ रहे हैं । दिवाली आते ही पूरे देश में आतिशबाजी की लहर सी दौड़ जाती है । लेकिन आगे रन पटाखों की शुरुआत हुई कैसे, कहां से आई है पटाखे! आइए आपको बताते हैं कि आखिर कैसे शुरुआत हुई पटाखों की और यह कैसे हमारे देश भारत में पहुंचा ।
चीन ने की पटाखों की खोज
हालांकि अब दिवाली पर बढ़ते प्रदूषण की वजह से हर साल आतिशबाजी करने और पटाखे जलाने पर बैन लगा दिया जाता है । इस बार भी सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर दिशा निर्देश दे दिए हैं । लेकिन आखिर इन पटाखों का आविष्कार हुआ कैसे और यह भारत तक कैसे पहुंचे काफी रोचक है । बताया जाता है कि पटाखों का आविष्कार हमारे पड़ोसी देश चीन में हुआ था । वहां हर साल नववर्ष पर लोग बुरी शक्तियों को दूर भगाने के लिए पटाखों का इस्तेमाल करते थे ।
इससे हमें यह भी ज्ञात होता है कि कई ईशा के पूर्व काल में ही चीनियों को बालों की जानकारी हो गई थी । सबसे पहले बारूद की खोज चीन ने किया था । मालूम हो कि बारूद गंधक, कोयला और पोटैशियम नाइट्रेट का मिश्रण होता है और इसका इस्तेमाल विस्फोटक सामग्री में किया जाता है । चीनी लोगों का मानना है कि आग अनिष्ट चीजों, भूत प्रेतों और बुरी शक्तियों को दूर करती है इसलिए हर साल नव वर्ष पर वहां पटाखे फोड़े जाते हैं । बता दे कि चीन में 90 के दशक से 2008 तक शहरों में पटाखों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई थी ।
भारत में यहां हुई बारूद की खोज
बात करें भारत की तो भारत में सबसे पहले बारूद बनाने और प्रयोग करने का काम विजयनगर साम्राज्य में किया गया था । इसका जिक्र बाबर द्वारा लिखी गई बाबरनामा में मिलता है । भारत में प्रचलित बातों के अनुसार बारूद मुगल लेकर आए थे किंतु सच यह है कि वह सिर्फ तोप लेकर आए थे और बालू सबसे पहले विजयनगर साम्राज्य में बना था । बारूद का इस्तेमाल करते हुए भारत में सबसे पहले विजय नगर में बामणी राज्य से युद्ध किया था ।
इतिहासकारों की यह राय
इतिहासकारों के अनुसार भारत में आतिश दीपांकर नाम के बंगाली बौद्ध धर्मगुरु नेपाल में शादी में किया था । बताया जाता है कि यह 12 वीं सदी में प्रचलित हुआ था और शायद वह यह सब चीन, तिब्बत और पूर्व एशिया से पटाखे चलाना सीख कर आए थे । बाद में मुगलों के समय से आतिशबाजी का दौर शुरू हुआ ।
तमिलनाडु का शिवकाशी है पटाखों का सबसे बड़ा केंद्र
मालूम हो कि तमिलनाडु का शिवकाशी भारत में पटाखा बनाने का सबसे बड़ा केंद्र है और यहां के के पी. अय्या नादर और उनके भाई शनमुगा नादर नहीं पटाखा बनाना शुरू किया था । दोनों भाई काम की तलाश में 1923 में कोलकाता गए और वहां एक माचिस फैक्ट्री में काम शुरू किया । बाद में वापस लौट कर शिवकाशी में माचिस फैक्ट्री की शुरुआत की ।
अंग्रेजों ने एक्सप्लोसिव एक्ट पारित कर लगाया था पटाखों पर पाबंदी
जानकारी के लिए बता दें कि अंग्रेजों ने एक्सप्लोसिव एक्ट पारित किया था इसमें पटाखों के लिए इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल को बेचने और पटाखे बनाने पर पाबंदी लगा दी गई थी । बाद में 1940 में इस एक्ट में संशोधन किया गया और एक खास करके पटाखों को बनाना लीगल किया गया तब जाकर नादर ब्रदर्स ने पहली पटाखों की फैक्ट्री लगाई जिसके बाद अब शिवकाशी भारत में पता कर निर्माताओं का गढ़ है ।
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