आरसीपी सिंह होंगे बिहार के मुख्यमंत्री? महागठबंधन में शामिल होगा जेडीयू ?

बिहार में जो पर्दे के पीछे चल रहा था वह अरुणाचल प्रदेश में भाजपा के किए धरे ने सामने ला दिया है. 2020 विधानसभा चुनाव में भले ही बहुमत एनडीए गठबंधन को मिला है लेकिन नीतीश कुमार को सिर्फ 43 सीटें मिली है और भारतीय जनता पार्टी को करीब 74 सीटें इसे लेकर नीतीश पहले से ही दबाव महसूस कर रहे हैं. और सबसे बड़ी बात यह कि उनके चहेते सुशील कुमार मोदी को भारतीय जनता पार्टी ने बिहार की राजनीति से निकालकर केंद्र की राजनीति में पहुंचा दिया है.

अरुणाचल के मामले को लेकर महागठबंधन को बिना कुछ किए ही मौका मिल गया. महागठबंधन के नेताओं ने नीतीश-निश्चय को भांपते हुए मरहम वाली बोली बोलनी शुरू कर दी. मतलब पिछली बार जो रातों-रात हुआ हुआ इस बार दिनदहाड़े भी हो जाए यह मुमकिन है यानी सत्ता पलट बस इस बार सत्ता बदली तो नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं होंगे यह पक्का है. अगर सत्ता पलटी तो कौन होंगे फिर बिहार के नए मुख्यमंत्री आइए हम आपको बताते हैं..

आपको बता दें कि एनडीए के अंदर कुछ भी ठीक नहीं है. बिहार में एनडीए सरकार अस्थिर है. भले ही भाजपा वाले से स्थिर बता रहे हो लेकिन जदयू के नेता सीधे तौर पर यह मान नहीं रहे. अरुणाचल प्रदेश में भाजपा के रवैए को इसका कारण बताया जा रहा है. लेकिन यह इकलौता कारण नहीं कई बातें हैं जिसके चलते नीतीश कुमार अलग राह अपनाने को मजबूर हो सकते हैं.

1. अरुणाचल प्रदेश में जेडीयू को धोखा

अरुणाचल प्रदेश में नीतीश की पार्टी भाजपा सरकार के साथ थी. जेडीयू के अरुणाचल प्रदेश में 7 विधायक थे जिसमें से भाजपा ने 6 विधायकों को अपने पाले में कर लिया. अब उनके सिर्फ एक विधायक बचे हैं. जदयू के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह ने साफ कह दिया कि भाजपा ने पीठ में छुरा भोंका है. उन्होंने कहा कि भाजपा उनके विधायकों को मंत्री बनाने की बात कह रही थी लेकिन धोखे से सात में से छह विधायक तोड़ लिए गए. इसको लेकर जेडीयू और बीजेपी में तल्ख साफ दिख रही है.

2. भाजपा चाहती है कि उसे मिले गृह विभाग


बिहार में जब से एनडीए की सरकार बनी है तब से भाजपा चाह रही है कि उसे गृह विभाग मिल जाए. भले ही दोनों दलों ने ऐसी बातों से इनकार किया था लेकिन पूर्व केंद्री मंत्री और भाजपा नेता संजय पासवान ने वही बात दोहरा दिया और कह दिया कि नीतीश कुमार गृह विभाग छोड़ें.

3. सीएम पद देकर भाजपा बड़ा भाई बन रहे

बिहार में एनडीए गठबंधन को बहुमत तो मिला लेकिन जेडीयू को सीटें कम मिली. आपको बता दें कि बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन उन्होंने सिर्फ 43 सीटें जीती. वहीं बीजेपी 110 सीटों पर चुनाव लड़ी और 74 सीटें जीत गई. यानी जदयू को भाजपा से 31 सीटें कम मिली. नीतीश कुमार इस हालत में मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते थे लेकिन भाजपा ने बड़प्पन दिखाने के लिए पहले से तय समझौते के तहत उन्हें यह पद दे दिया. 26 और 27 दिसंबर को जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में उन्होंने यह बात कही थी मैं नहीं बनना चाहता था मुख्यमंत्री.

4. सुशील मोदी को केंद्र में भेजा

भाजपा ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री का पद तो दे दिया लेकिन उनके सबसे चहेते पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को दूर कर दो दो भाजपाई डिप्टी सीएम को उनके पास बैठा दिया जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी नीतीश कुमार ने यह दर्द जाहिर किया कि वह इस हाल में सीएम नहीं बनना चाहते थे. इस दर्द पर मरहम भाजपा की ओर से नए-नए राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने ही ठीक से लगाया.

5. बीजेपी ने एलजेपी का इलाज नहीं किया

खुद को प्रधानमंत्री मोदी का हनुमान बताने वाले चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने जदयू के ही लंका में अच्छे से आग लगा दी. क्योंकि जदयू और नीतीश कुमार को बर्बाद करने में लोजपा की अहम भूमिका थी. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में एलजीपी ने भले ही 1 सीट सीटें जीती लेकिन उनकी पार्टी ने जदयू के 7 मंत्रियों समेत 39 प्रत्याशियों को हराने में अहम भूमिका निभाई. नीतीश कुमार भाजपा से लगातार ये उम्मीद लगाए रही कि वह लोजपा को कुछ सबक जरूर सिखाएगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. लोजपा का इलाज ना करने से नीतीश कुमार की नाराजगी स्वाभाविक है.

नीतीश कुमार ने राज्यसभा सांसद आरसीपी सिंह को जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का फैसला कर लिया था. जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक के सामने यह प्रस्ताव रखकर मुहर लगा दी साथ ही उन्होंने दो तरह का अफसोस भी जाहिर किया.

पहला – 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी के बुरे प्रदर्शन के कारण नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते थे. अभी भाजपा चाहे तो किसी को सीएम बना लें.

दूसरा– अरुणाचल प्रदेश में भाजपा ने जदयू विधायक को तोड़ कर अच्छा नहीं किया. राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान नीतीश कुमार ने 2 योजनाएं सामने रखी. पहला- राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह ही भाजपा नेताओं से तालमेल का काम करेंगे. दूसरा- नीतीश कुमार खुद देश में पार्टी को मजबूत करेंगे ताकि कोई छुरा ना भोक सके.

तो ऐसे में आगे की तस्वीर साफ बनती दिख रही है आरसीपी सिंह बिहार के मुख्यमंत्री बन सकते हैं और नीतीश कुमार मोदी को चुनौती पेश कर सकते हैं.

हो सकता है किसी दिन नीतीश कुमार अचानक मुख्यमंत्री पद छोड़े और जदयू अध्यक्ष आरसीपी सिंह का नाम आगे कर दें. ऐसे में जदयू महागठबंधन में शामिल होगा लेकिन नीतीश कुमार का चेहरा गायब होगा. भाजपा उन्हें धोखेबाज नहीं कह सकेगी वह बिहार की ओर से आंखें मूंदकर देश में जदयू को आगे बढ़ाने निकल पड़ेंगे. नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर बहुत बड़ा गेम किया है. फिलहाल बिहार की राजनीति में लगातार हलचल जारी है. ऐसे में विपक्ष कोई भी मौका चूकना नहीं चाहती अब देखिए आगे क्या होता.

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