11 मई को ही दिन राजस्थान के पोकरण में परमाणु परीक्षण कर दुनिया को चौंका दिया था। अचानक किए गए इन परमाणु परीक्षणों से अमेरिका, पाकिस्तान समेत कई देश दंग रह गए थे। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की अगुआई में यह मिशन कुछ इस तरह से अंजाम दिया गया कि अमेरिका समेत पूरी दुनिया को इसकी भनक तक नहीं लगी। इस परीक्षण को पोखरण-2 का नाम दिया गया।
इससे पहले 1974 में इंदिरा गांधी की सरकार ने पहला परमाणु परीक्षण (पोकरण-1) कर दुनिया को भारत की ताकत का लोहा मनवाया था, इसे ऑपरेशन ‘स्माइलिंग बुद्धा’ नाम दिया गया था। आपको बताते हैं कि 22 साल पहले कैसे भारत सरकार ने बड़े ही गोपनीय तरीके से पोखरण परमाणु परीक्षण को अंजाम दिया था।
अमेरिका की ना के बावजूद भारत ने किया न्यूक्लियर टेस्ट
पहले न्यूक्लियर बम का टेस्ट करने के बाद भारी वैश्विक दबाव के बावजूद साल 1974 में भारत ने अपना न्यूक्लियर प्रोग्राम जारी रखा। उस वक्त केंद्र में इंदिरा गांधी की ताकतवर सरकार थी। 1995 में दोबारा परीक्षण के लिए नरसिम्हा राव वाली सरकार ने हरी झंडी दी थी। लेकिन इस दौरान अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA ने भारत के न्यूक्लियर बम बनाने की गतिविधियों को अपने सैटेलाइट से पकड़ लिया। उस वक्त अमेरिका ने कड़े शब्दो मे कहा कि अगर भारत न्यूक्लियर प्रोग्राम जारी रखता है तो उस पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए जाएंगे।
1996 में अटल बिहारी वाजपेई भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और उन्होंने न्यूक्लियर टेस्ट कराए जाने का आदेश दिया। लेकिन आदेश के महज 2 दिनों के बाद ही वाजपेई की सरकार गिर गई, बारी आई साल 1998 की एक बार फिर अटल बिहारी बाजपेई ने भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, और फिर से सत्ता में आए। प्रधानमंत्री बनने के बाद अटल बिहारी बाजपेई ने पोखरण-2 की फिर अनुमति दी।
भारतीय वैज्ञानिकों ने अमेरिकी खुफिया एजेंसी को इस तरह किया चकमा
दरअसल, अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA भारत पर नजर रखे हुए थी और उसने पोकरण पर निगरानी रखने के लिए 4 सैटलाइट लगाए थे। हालांकि भारत ने CIA और उसके सैटलाइटों को चकमा देते हुए परमाणु परीक्षण कर दिया। आपको बता दें कि रात में सेटेलाइट से पोकरण की गतिविधियों का पता लगाना मुश्किल था, तो भारतीय वैज्ञानिकों ने तय किया कि सभी वैज्ञानिक रात में काम करेंगे और सभी वैज्ञानिक सेना की वर्दी में काम कर रहे थे।
उस दिन सभी को आर्मी की वर्दी में परीक्षण स्थल पर ले जाया गया था ताकि खुफिया एजेंसी को यह लगे कि सेना के जवान ड्यूटी दे रहे हैं। ‘मिसाइलमैन’ अब्दुल कलाम भी सेना की वर्दी में वहां मौजूद थे। इस प्रॉजेक्ट के साथ जुड़े वैज्ञानिक कुछ इस कदर सतर्कता बरत रहे थे कि वे एक दूसरे से भी कोड भाषा में बात करते थे और एक दूसरे को अलग नामों से बुलाते थे। परमाणु बमों को सेना के 4 ट्रकों के जरिए ट्रांसफर किया गया। इससे पहले इसे मुंबई से भारतीय वायु सेना के प्लेन से जैसलमेर बेस लाया गया था।
जब पोखरण में परीक्षण का समय आया तब हवाएं आबादी वाले इलाके की ओर बह रही थी। ऐसे में अगर परमाणु परीक्षण किया जाता तो रेडिएशन फैलने का खतरा हो सकता था। हवाओं के शांत होने तक इंतजार किया गया। दोपहर में हवाओं का डायरेक्शन बदला, आखिरकार जिसके लिए यह प्रोजेक्ट तैयार किया गया उसका समय आ गया था, आखिरकार धमाका किया गया और धमाके से पूरे आसमान में धुएं का गुबार उठ गया। इस धमाके के साथ ही 11 मई का दिन अमर हो गया, और इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज हो गया।
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