भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अमिताभ बच्चन कई सालों तक एक दूसरे के दोस्त रहे। इन दोनों परिवारों के बीच भी अच्छा संबंध रहा। यही वजह है कि राजीव गांधी अमिताभ बच्चन को राजनीति में लेकर आए। अमिताभ बच्चन कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा सांसद भी रह चुके है। हालांकि कुछ कारणों के चलते इन दोनों के परिवार के बीच कड़वाहट बढ़ गई है। पूर्व सांसद और वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय ने “बीपी सिंह, चंद्रशेखर, सोनिया गांधी और मैं” के नाम से एक किताब लिखी है। इस किताब में कई खुलासे किए गए हैं। अमिताभ बच्चन और गांधी परिवार को लेकर भी इस किताब में बड़े-बड़े दावे किए गए हैं। किताब के मुताबिक राजीव गांधी एक समय बच्चन साहब से इतने नाराज हुए कि उन्हें सांप तक कह डाला था।
जब राजीव ने अमिताभ बच्चन को कहा सांप
इन दोनों के रिश्तो में कड़वाहट तब शुरू शुरू हुई जब विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने और राजीव गांधी उस समय विपक्ष के नेता थे। पुस्तक में इस बात का उल्लेख किया गया है कि जब अमिताभ बच्चन राजीव गांधी से मिलने आए तो उस वक्त पत्रकार राजीव शुक्ला भी मौजूद थे। जब अमिताभ बच्चन चले गए तो राजीव गांधी ने कहा ही इज अ स्नेक मतलब वह एक सांप है।
राहुल की फीस
इस किताब में इस बात का जिक्र है की जब राजीव गांधी की मौत हुई उसके बाद सोनिया गांधी लंदन में पढ़ रहे राहुल गांधी को लेकर चिंतित थी। इस चिंता से सोनिया ने अमिताभ बच्चन को भी रूबरू करवाया। लेकिन अमिताभ बच्चन राहुल गांधी की पढ़ाई की फीस भरने में आनाकानी करने लगे। उन्होंने कहा कि राजीव गांधी के करीबी रहे सतीश शर्मा और ललित सूरी पैसों की गड़बड़ी कर रहे हैं।
कई अहम घटनाओं का जिक्र
इस पुस्तक में एक बड़ी घटना का जिक्र किया गया है दरअसल 1987 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विश्व प्रताप सिंह को वित्त मंत्री से हटाकर रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी को सौंप दिया। किताब में कहा गया है कि इस महत्वपूर्ण घटना के पीछे अमिताभ बच्चन थे। लेकिन राजीव गांधी ने इसके लिए पाकिस्तान से जंग का बहाना बनाया। हालांकि उस वक्त पाकिस्तान से जंग के हालात भी नहीं थे।
कहा जाता है कि इसकी पृष्ठभूमि अंडमान में तैयार की गई थी वहां राजीव गांधी छुट्टियां मनाने गए थे। इसी दौरान अमिताभ भी वहां पहुंचे। पुस्तक के मुताबिक राजीव गांधी समझ नहीं पा रहे थे कि वीपी सिंह की शैली को वह कैसे बदले क्योंकि उन्होंने ही सिंह को बेखौफ आगे बढ़ने का छूट दे रखा था। देश के कई उद्योगपति तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पास वीपी सिंह से वित्त मंत्रालय वापस लेने का निवेदन भेजने लगे। अरुण नेहरू भी राजीव गांधी को यही सलाह दे रहे थे। कहा जाता है कि राजीव गांधी के फैसलों में अरुण नेहरू का दिमाग झलकता था।भारतीय के इस किताब में यह भी दावा किया गया है कि जो उद्योगपति प्रधानमंत्री से संपर्क नहीं कर पा रहा था उन्होंने अमिताभ बच्चन से संपर्क बना लिया लेकिन राजीव गांधी ने कभी भी वीपी सिंह से किसी उद्योगपति की सिफारिश नहीं की।
आप को बता दें कि 1984 में अमिताभ बच्चन कांग्रेस के टिकट पर इलाहाबाद लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे और भारी मतों से अपने प्रतिदंवदी को हराया। लेकिन अमिताभ बच्चन का राजनीतिक करियर बहुत छोटा रहा। मात्र 3 साल बाद ही अमिताभ बच्चन ने सांसद पद से इस्तीफा ही नहीं दिया बल्कि हमेशा-हमेशा के लिए राजनीति से संन्यास ले लिया।
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