क्या पलट जायेगा इंदिरा गांधी का 51 साल पुराना फैसला, देश में बचेंगे बस 4 सरकारी बैंक!

सरकार ने आत्मनिर्भर भारत का ऐलान करने के दौरान कहा था कि वह सभी पब्लिक सेक्टर कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचकर उनका निजीकरण करेगी। उस ऐलान में सरकारी इंश्योरेंस कंपनियां शामिल नहीं थी। लेकिन बजट 2021 के दौरान फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण ने 2 सरकारी बैंकों के साथ ही कई इंश्योरेंस कंपनी के निजीकरण की घोषणा की है।

Bloomberg को दिए गए एक इंटरव्यू में मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रमण्यम ने कहा कि उन्होंने सरकारी बैंकों के निजीकरण के फैसले का स्वागत किया उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में देश में केवल चार या उससे भी कम पब्लिक सेक्टर बैंक बचेंगे।

फिलहाल अभी देश में 12 पब्लिक सेंटर सेक्टर बैंक है दो बैंकों के निजीकरण की घोषणा के बाद यह घटकर 10 हो जाएगा। मुख्य आर्थिक सलाहकार सुब्रमण्यम ने कहा कि भविष्य में बैंकिंग स्ट्रैटेजिक सेक्टर में शामिल हो जाएगा और देश में केवल 4 पब्लिक सेक्टर बैंक रहेंगे। इसके अलावा जितने भी बैंक है उनका निजी करण कर दिया जाएगा। आपको बता दें कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और तत्कालीन वित्त मंत्री इंदिरा गांधी ने 19 जुलाई 1974 को 14 बड़े प्राइवेट बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। इस फैसले से 80 फीसदी बैंकिंग ऐसेट पर सरकार का नियंत्रण हो गया।

2017 तक थे 27 सरकारी बैंक

एक तरफ जहां तत्कालीन वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। वहीं 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने बैंकों का निजीकरण किया है। ऐसे में देखना होगा कि उनका निजी करण कितना सफल हो सकेगा। आपको बता दें कि नरेंद्र मोदी ने पहले कार्यकाल के दौरान कई बैंकों का निजीकरण या फिर मर्जर किया साल 2017 तक देश में कुल 70 सरकारी बैंक थे। पहली बार 2017 में 5 एसोसिएट बैंकों और भारतीय महिला बैंक का स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में मर्जर किया गया इसके अलावा देना बैंक और विजया बैंक का बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय कर दिया गया यह फैसला केंद्र कि मोदी सरकार ने अप्रैल 2017 में लिया था।

2020 मैं 6 बैंकों का मर्जर 4 बैंकों में कर दिया गया

इसके बाद केंद्र की मोदी सरकार ने साल 2020 में फिर से 10 बैंकों को मर्जर करने का घोषणा किया। इसके तहत छह बैंकों का अस्तित्व 4 बैंकों में समेट दिया गया जिसके बाद देश में सिर्फ 12 सरकारी बैंक बचे। पिछले साल यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और आंध्र बैंक का कॉरपोरेशन बैंक में मर्ज किया गया, वहीं केनरा बैंक में सिंडिकेट बैंक का मर्जर किया गया। इलाहाबाद बैंक का विलय इंडियन बैंक में किया गया, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का पंजाब नेशनल बैंक में मर्जर किया गया।

राष्ट्रीयकरण का क्या फायदा हुआ?

तत्कालीन प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री इंदिरा गांधी ने यूं ही बैंकों के राष्ट्रीयकरण का फैसला नहीं लिया। इसके पीछे बहुत बड़ी वजह थी दरअसल साल 1969 से पहले देश गरीब था और शिकायत थी कि प्राइवेट बैंक कॉरपोरेट को तो लोन देता है लेकिन खेती के लिए वह लोन नहीं देता है। एक रिपोर्ट के अनुसार साल 1951 तक बैंकिंग लोन में कृषि की हिस्सेदारी सिर्फ 2% थी। ऐसा करीब 1 साल 1967 तक चलता रहा।

वही कारपोरेट लैंडिंग का शहर 34 फ़ीसदी से बढ़कर 64 फ़ीसदी पर पहुंच गया। ऐसे में जब इंदिरा गांधी ने 19 जुलाई 1969 को राष्ट्रीय एकीकरण का फैसला लिया तो उसके बाद कृषि के लिए लोन में तेजी आई। ऐसे में वर्तमान फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण ने ऐलान किया कि आने वाले दिनों में सरकारी बैंकों की संख्या घटकर सिर्फ चार रह जाएगी। इस से क्या-क्या नुकसान होंगे इसका अंदाजा आप पिछला इतिहास देख कर ही लगा सकते हैं।

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