केंद्रीय मंत्रिपरिषद विस्तार के बीच यह खबर जोरों पर है कि पीएम मोदी नीतीश कुमार की मांग को मान सकते हैं। सूत्रों से जो जानकारी मिली है उसके अनुसार केंद्रीय कैबिनेट में मोदी सरकार जदयू की पुरानी माँग आनुपातिक भागीदारी को मान सकते है। जदयू कोटे से तीन मंत्री बानाए जाने की खबर उड़ने लगी है जिसमें आरसीपी सिंह और ललन सिंह का नाम कैबिनेट मंत्री के लिए तथा राज्य मंत्री के लिए रामनाथ ठाकुर , चंदेश्वर चंद्रवंशी, दिलेश्वर कामत और संतोष कुशवाहा के नाम की चर्चा जोरों पर है। इनमे से किसी भी एक को राज्य मंत्री का पद दिया जा सकता है।
मिल सकता हाई आनुपातिक भागीदारी
गौरतलब है कि इससे पहले 2019 मे जब मोदी सरकार दुसरी बार सत्ता में आई थी तो लोजपा केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुई थी जबकि जदयू ने यह ऑफर ठुकरा दिया था। लेकिन इस बार जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह ने खुद सरकार मे शामिल होने की बात कही है, जिसे देखकर यह कहा जा रहा कि जदयू को तीन मंत्री पद दिए जाने को लेकर जदयू और भाजपा मे आपसी सहमति हो गई है।
प्रारम्भ से ही सीएम नीतीश कुमार सीटों की हिस्सेदारी के आधार पर आनुपातिक भागीदारी चाहते थे, लेकिन तब भाजपा ने सभी सहयोगी दलों को सांकेतिक भागीदरी देने पर सहमत हुई थी, इससे जदयू मे काफी असंतोष था और मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार ने कड़ी नाराजगी जताते हुए केंद्रीय मंत्रिपरिषद मे हिस्सा लेने से साफ -साफ इंकार कर दिया था। लेकिन इस बार सीएम नीतीश की आनुपातिक भागीदारी की इच्छा पूर्ण होती नज़र आ रही है। इसके पीछे पश्चिम बंगाल मे बीजेपी की हार को सबसे बड़ा वजह माना जा रहा है। यूपी मे विधानसभा चुनाव होने वाला है और जदयू ने भी चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है, ऐसे मे बीजेपी जदयू की नाराजगी नहीं लेना चाहती है।
जेडीयू की कूटनीतिक जीत
कहा जा रहा कि जदयू मौके का फायदा उठाने मे पूरी कामयाब रही और वह मौके की ताक को देखकर दबाव की राजनीती का फार्मूला अपना रही। लोकसभा चुनाव के 50-50 फॉर्मूले की ही तरह जदयू मोदी कैबिनेट में जगह चाहती हैं. 2019 लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियों ने 17-17 सीटों पर मैदान मे उतरी थी जिसमें बीजेपी 17 पर जबकि जेडीयू 16 पर जीत दर्ज करने में सफल रही थी। बिहार से 5 मिनिस्टर मोदी मंत्रिमंडल में हैं तो ऐसे मे जदयू भी अपने पांच मंत्री चाहती है, लेकिन पाँच मंत्रियो की बात को मंजूरी दे पाना आसान नहीं है। फिर भी तीन नामो पर सहमति बनती दिख रही है और इसे जेडीयू की कूटनीतिक जीत भी माना जा रहा।
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