बिहार में दिन प्रतिदिन बढ़ते अपराध को देखते हुए मंगलवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने कैबिनेट बैठक में पुलिस जांच से जुड़े मामलों की मॉनिटरिंग को लेकर पुलिस मुख्यालय स्तर पर ‘इन्वेस्टीगेशन मॉनिटरिंग सेल’ के गठन का अहम फैसला लिया है, जिसका काम अपराध की जांच और उसकी प्रगति पर नजर रखना होगा। इसके अलावा इस स्पेशल सेल के लिए कुल 69 पदों पर नियुक्ति किये जाने का फैसला लिया गया है , जिनमे पुलिस अधीक्षक के एक पद, पुलिस उपाधीक्षक के लिए सात पद, पुलिस निरीक्षक के लिए 13 पद, आशु लिपिक सहायक अवर निरीक्षक के लिए आठ पद, कंप्यूटर संचालक के लिए 21 पद, सिपाही के लिए 11 पद और चालक सिपाही के लिए आठ पद होंगे।
बहुत बड़ा है कदम
भले ही नीतीश कुमार द्वारा लिया गया ये फैसला आपको सुनने में बेहद आम लगे मगर इस फैसले के पीछे मुख्यमंत्री का वो फॉर्मूला जुड़ा है जिसके बदौलत उन्होंने अपने पहले कार्यकाल यानी कि 2005 से लेकर 2010 के दौरान बिहार में बढते अपराध के ऊपर काबू पाया था।अब इसे समझने के लिए आपको एक बार फिर से पुराने रिकार्ड्स से रूबरू करवाते है।
दरअसल ये वही फॉर्मूले है जिसके बदौलत नीतीश कुमार ने साल 2010 में महज अपनी एक हुंकार से 3 सालों में 30 हजार से ज्यादा बड़े और छोटे अपराधियों को सज़ा दी थी जो कि अपने आप में एक बड़ा रिकॉर्ड है। उस दौरान रहे डीजीपी अभयानंद को सीएम नीतीश कुमार ने अपराधियों को धर दबोचने का और उनके मन में कानून का डर पैदा करने का आर्डर दिया था। इतना ही नही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ना सिर्फ आपराधिक मामलों की जांच में बल्कि अपराधियों को सजा दिलाने में भी तेजी लाने के लिए मुख्यालय से लेकर निचले स्तर पर अधिकारियों को लगाया था।
स्पेशल कोर्ट का गठन कर जल्द दिलाई गयी थी सजा
साल 2005 में सीएम की कुर्सी पर विराजमान होने के बाद नीतीश कुमार ने ठीक एक साल बाद यानी कि साल 2006 में अपराधियों को जल्द से जल्द सजा दिलाने के लिए एक स्पेशल कोर्ट का गठन किया था जिसके बाद साल 2010 में लगभग 14 हजार 311 अपराधियों को स्पीडी ट्रायल के तहत सजा दिलाई गई थी।
हालांकि बढ़ते वक़्त के साथ नीतीश कुमार की ये पहल कमजोर पड़ती गई और मौजूदा समय में हाल ये है कि अब बिहार में अपराधी बेलगाम हो चुके है और हर दिन एक नए आपराधिक घटनाओं को अंजाम दे रहे है। एक तरफ जहां साल 2010 में सबसे ज्यादा यानी कि 14 हजार से अधिक अपराधियों को सजा दिलाई गई तो वही दूसरी ओर साल 2018 में ये आंकड़े आधे से भी कम होते गए और आलम ये हुआ कि 2018 में केवल 5 हजार 926 अपराधियों को ही सज़ा दिलाई जा सकी। वही अगर क्राइम ग्राफ की बात करें तो 2010 के मुकाबले साल 2018 में आपराधिक घटनाओं में दोगुने से भी ज्यादा रफ्तार में इजाफा पाया गया है।
धीरे धीरे आकडा कम होता गया
जहाँ साल 2010 में अपराध के कुल 1 लाख 37 हजार 572 मामले सामने आए तो वही साल 2018 में लगभग 2 लाख 62 हजार 802 संज्ञेय अपराध के मामले दर्ज किए गए. इतना ही नही आपराधिक घटनाओं के बढ़ने के बाद पुलिस महकमे की रफ्तार भी सुस्त पड़ती गई जिसका उदाहरण शराब बंदी कानून भी रहा। जब साल 2016 में नीतीश कुमार ने बिहार में शराब बंदी को लेकर कानून लागू किया तब महज 0.13 प्रतिशत कन्विक्शन रेट के साथ 5 सालों में 3 लाख 39 हजार 401 गिरफ्तारी की गई थी लेकिन इनमे से केवल 470 को सजा मिली।
अब फिर बढ़ रही आपराधिक घटनाएं
इन रिकार्ड्स को देखकर एक बात तो बेहद साफ है कि नीतीश के पहले कार्यकाल में जितने तेजी से आपराधिक घटनाएं कम हुई थी उतनी ही तेजी से उनके इस कार्यकाल में आपराधिक घटनाएं बढ़ती जा रही है। अपराधियों और शराब माफियों के हौसले दिन प्रतिदिन बुलंद होते जा रहे है। जिसके पीछे की वजह कही ना कही पुलिस कर्मियों की सुस्ती है।
वही अगर बात करें बिहार पुलिस के द्वारा जारी किए गए इस साल के शुरुवाती तीन महीनों के आंकड़े की तो साल 2021 में जनवरी से लेकर मार्च तक में केवल बिहार की राजधानी पटना मर्डर और चोरी के मामलों में अव्वल रही है। इन तीन महीनों में पटना में 40 मर्डर और 157 चोरी की वारदातें हुईं। इसके अलावा पूर्णिया रेप मामलों में सबसे आगे रही और मधेपुरा चोरी के मामलों में टॉप पर है।
फिर एक्शन मे आए नितीश कुमार
जिस तरह से पिछले कुछ सालों में बिहार में आपराधिक घटनाएं बढ़ी है उसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर से घिर चुके है। हालांकि देर से ही सही मगर अब नीतीश कुमार ने ये ठान लिया है की वह बिहार में इन मामलों को जड़ से खत्म कर देंगे और अपराधियों के मन में कानून का खौफ पैदा करेंगे।
जिसके लिए उन्होंने एक बार फिर से अपने पुराने फॉर्मूले को अपनाया है ताकि आपराधिक मामलों की जांच में तेजी आए और अपराधी जल्द से जल्द सलाखों के पीछे जाएं। यही वजह है कि उन्होंने पुलिस मुख्यालय स्तर पर ‘इन्वेस्टीगेशन मॉनिटरिंग सेल’ के गठन का फैसला लिया है। हालांकि अब तो ये आने वाले दिनों में ही मालूम होगा कि इस स्पेशल टीम के गठन के बाद बिहार में आपराधिक घटनाओं पर लगाम लगती है या फिर नीतीश कुमार का यह फैसला भी नाकाम होता है।