आज के दौर में भी कई जगह ऐसी है जहां शिक्षा का स्तर (Education Rate In India) काफी नीचे है और यह स्तर इतना नीचे है, कि यहां मैट्रिक की पढ़ाई करना भी यहां के लोगों के लिए आसान बात नहीं है। देश (India) की सर्वाधिक आबादी वाले राज्य बिहार (Bihar) का एक ऐसा गांव है दुबे टोला, जहां महादलित जाति के लोग रहते हैं। यहां बने ढाई सौ घरों में लगभग हजार से ज्यादा लोग रहते हैं, जिनमें से 900 लोग मुसहर जाति के हैं। यादव और अन्य जाति भी यहां रहती है। इस पूरे गांव में कोई भी ऐसा सदस्य नहीं है, जिसने मैट्रिक के परीक्षा कभी दी हो। वही अब महादलित परिवार की बेटी इंद्रा (Mushar Girl Indra) ने मैट्रिक की परीक्षा देकर सीमा को पार किया है।
इंद्रा बनी मेट्रिक की परीक्षा देने वाली पहली बेटी
सीतामढ़ी के ढाई सौ परिवारों में इस दुबे टोला में रहने वाली एक महादलित बच्ची ने पूरे गांव में शिक्षा की एक उम्मीद जगाई है। इस बच्ची का नाम इंद्रा है, जिसने इस समाज में व्याप्त बुराइयों को खत्म करने का एक अभियान छेड़ा है। इंदिरा का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का सपना है- बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और हमारे मुख्यमंत्री भी दहेज प्रथा के खिलाफ समाज को जागरूक करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में मैं भी सीतामढ़ी के दुबे टोला की ओर से मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के सपनों को साकार करने में जुटी हुई हूं।
गांव बच्चों को पढ़ाती है इंद्रा
इंद्रा का पढ़ाई के प्रति खासा रुझान है। उनका कहना है कि काफी पहले बचपन बचाओ आंदोलन वालों ने मुंबई में मजदूरी कर रहे इस गांव के 5 बच्चों को मुक्त कराया था। वह लोग उन पांचों बच्चों को लेकर गांव आए थे। उन लोगों ने उन्हें शिक्षा के लिए जोड़ने की कोशिश भी की थी। इसी दौरान इंद्रा भी बचपन बचाओ आंदोलन वालों के संपर्क में आ गई और उन लोगों ने उन्हें प्रेरित किया। इसी का नतीजा है कि आज वह मैट्रिक की परीक्षा दे पाई है।
अपने गांव की ब्रांड एंबेसडर है इंद्रा
इंद्रा आज अपने गांव के ब्रांड एंबेसडर बन चुकी है। मैट्रिक की परीक्षा के लिए उन्होंने जमकर तैयारी की थी। उनका कहना है कि वह अपने गांव की दूसरी बच्चों को भी पढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहती हैं। वह खाली समय में गांव के सरकारी स्कूल में जाती हैं और वहां की छोटी-छोटी बच्चियों को पढ़ाने का काम करते हैं।
इंदिरा के माता पिता मजदूरी कर परिवार का गुजर-बसर करते हैं। उनके पिता खेत में काम करते हैं। इंदिरा का कहना है कि वह पढ़ लिख कर एक बड़ी वकील बनना चाहती हैं। उनका सपना हैं कि गांव के गरीब तबके के लोगों को वकील बन कानूनी सुविधा मुहैया करा सकें।
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