बिहार का ये नींबू करेगा कैंसर का इलाज, अमेरिका-फ्रांस जैसे देशों में भेजने की तैयारी, जानें क्या है खासियत?

पूर्णिया (Purnia) के गांव में उपजे गंधराज नींबू (Gandhraj Lemon) की चर्चा आज दुनियाभर में हो रही है। ऐसे में दूसरे देशों में कैंसर जैसे गंभीर रोग की रोकथाम (Gandhraj Lemon Will Prevent Cancer Disease) भी में इस नीबू का इस्तेमाल (Gandhraj Lemon Use) किया जाता है।। बता दे गंधराज नींबू का उत्पादन पूर्णिया के रामनगर गांव में होता है और दूसरे देशों में निर्यात करने वाली मुंबई की कंपनी ने इसके लिए समझौता कर रही है। मालूम हो कि पूर्णिया से हर साल यह कंपनी 50 हजार टन गंधराज नींबू खरीदेगी और इसकी सप्लाई अमेरिका, फ्रांस, हॉलैंड, दुबई और जर्मनी जैसे कई बड़े देशों के बाजारों में करेगी। ऐसे में बिहार के इस नींबू (Bihar Gandhraj Lemon) की गूंज वैश्विक स्तर पर हो रही है।

Gandhraj Lemon

बिहार से मुंबई और फिर विदेश में लोगों का इलाज करने पहुंचा पूर्णिया का नींबू

मुंबई की ब्रिंग इंटीग्रेटेड लाजिस्टिक कंपनी के प्रेसिडेंट ने पिछले दिनों ही पूर्णिया का दौरा किया था। सात ही उन्होंने यहां नेचुरल फॉर्म के किसान हिमकर मिश्रा की खेती का मुआयना किया है। बता दें कि गंधराज नींबू के छिलके और रस से कैंसर जैसे गंभीर रोग का इलाज होता है, जिसकी डिमांड दूसरे देशों में काफी ज्यादा है।

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दरअसल, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर गंधराज नींबू की वृहद स्तर पर हो रही खेती की जानकारी प्राप्त होने के बाद ब्रिंग इंटीग्रेटेड लाजिस्टिक कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट मुंबई से डायरेक्ट पूर्णिया आ गए थे। उन्होंने यहां रह कर 4 दिनों तक के नींबू के उत्पादन का मुआयना किया। पूर्णिया के केनगर ब्लॉक के रामनगर गांव में होने वाली नेचुरल खेती से वे काफी प्रभावित हुए। उन्होंने श्री मिश्रा से मुलाकात कर न केवल गंधराज, बल्कि दूसरे प्राकृतिक आपदाओं को लेकर कई सारे महत्वपूर्ण कार्य योजना भी तैयार की।

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मालूम हो कि इसमें गंधराज नींबू के अलावे लाल अमरूद, गुलाबी मिर्च एवं हल्दी को देश के अलग-अलग हिस्सों तक पहुंचाने की योजना शामिल है। किसान हिमांशु मिश्रा बताते हैं कि उनके समर नेचुरल फॉर्म में फिलहाल गंधराज नींबू के एक लाख पौधे लगे हुए हैं, जबकि 50 हजार पौधे और लगाए जाने की योजना है। उन्होंने बताया कि बांग्लादेश के रंगपुर से गंधराज नींबू आया है। इसका दूसरा नाम रंगपुरा नींबू है। अपने देश में बंगाल और असम में भी इसकी खेती होती है।

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