बीते 2 सालों में लगभग सभी देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा (Economy Collapsed) गई है। वही इस लड़खड़ाई अर्थव्यवस्था में बिहार (Bihar) का भी बुरा हाल है। लड़खड़ाई अर्थव्यवस्था को लेकर सरकार (Economy Collapsed In Bihar) का कहना है कि केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी के मद की राशि समय पर मिलने से अर्थव्यवस्था (Economy In Bihar) धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही है। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो राज्य के आंतरिक संस्थान से उगाही के स्थिति भी ठीक-ठाक बताई जा रही है, जिसका असर यह है कि राज्य चालू वित्तीय वर्ष के लिए घोषित बजट के लक्ष्य को हासिल करने की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है। इसके साथ ही कुछ विभागों में हालत अभी भी संतोषजनक नहीं है।
पटरी पर लौट रही है बिहार की अर्थव्यवस्था
बता दे चालू अर्थव्यवस्था बिगड़ी अर्थव्यवस्था की बुनियाद धीरे-धीरे सुधर रही है, लेकिन राज्य में चल रहे मौजूदा कार्यों के बजट को लेकर यह कहा जा सकता है कि राज्य की स्थिति अभी आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया वाली है। ऐसे में आमद और खर्च के बीच संतुलन बिठाने के लिए वित्तीय प्रबंधन पुरजोर कोशिश कर रहा है।
सूत्रों की माने तो वेतन पेंशन और कर्ज के सूद मद का भुगतान यदि समय पर होता रहा तो योजना मद की राशि में भी कटौती नहीं की जाएगी। इसलिए यह अनुमान जताया गया है कि योजना मद में दिसंबर तक 60% से अधिक राशि का आवंटन किया जा चुका है। ऐसे में आगामी 31 मार्च के भुगतान के लिए राज्य सरकार के खजाने में पूरी राशि है।
बता दे 2 लाख 18000 करोड रुपए के बजट में 1 लाख 86000 करोड रुपए राजस्व प्रतियों के मद अनुमानित थे। बता दें दिसंबर तक इसमें 75000 करोड रुपए आए थे। यह कुल हनुमान का 40.57% है। पिछले वित्तीय वर्ष में इस अवधि तक इस मद में 38.48% की उगाही की जा चुकी है। ऐसे में कर राजस्व की प्राप्ति के लिए वित्तीय वर्ष के आखिरी 3 महीने बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इस दौरान अभियान को तेजी से चलाया जाता है, हालांकि गैर कर राजस्व प्रतियों में मद में थोड़ी छूट दी जाती है।
वित्त विभाग के खर्च में जरूरी है इनकी स्वीकृति
मालूम हो कि वित्त विभाग ने सरकार के प्रमुख सभी विभागों में आंतरिक वित्तीय सलाहकार की तैनाती कर दी है। अमूमन ये भारतीय प्रशासनिक सेवा या राज्य वित्तीय सेवा के वरिष्ठ अधिकारी होते हैं, जिनके पास विभाग का पूरा लेखा-जोखा रहता है। राज्य में किसी भी बड़े भुगतान पर इनकी सहमति लेना अनिवार्य है। खास बात यह है कि वित्तीय सलाहकार सीधे तौर पर वित्त विभाग के प्रति जवाबदेही भी होते हैं। इसके साथ ही तैनात किए गए विभाग के प्रधान से इनका सहमत होना जरूरी नहीं होता है, वित्त विभाग भी इन की सलाह को सबसे पहले प्राथमिकता देता है।
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