Bahubali Neta In Bihar Politics: बिहार के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई पर सियासत गरमा गई है। आनंद मोहन 1994 में गोपालगंज जिला अधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे थे। हाल ही में उन्हें बेटे की सगाई शादी में शामिल होने के लिए 15 दिन की पैरोल पर रिहा किया गया था, लेकिन बेटे की सगाई में शामिल हुई नीतीश सरकार ने उनकी परमानेंट रिहाई का तोहफा देकर सभी को चौंका दिया।
बाहुबली आनंद मोहन रिहा
बिहार सरकार ने आनंद मोहन की रिहाई को रिहाई कानून में बदलाव के साथ 27 कैदियों की रिहाई का हवाला दिया है। आनंद मोहन बिहार की राजनीति के उन नेताओं में शामिल है, जिनका राजनीति पर गहरा प्रभाव रहा है। खासतौर पर आनंद मोहन को राजपूत तबके का वोट बैंक माना जाता है। ऐसे में बाहुबली नेता जिनके नाम की तूती राजनीति में बोलती है, उनकी रिहाई पर सभी अपने-अपने अंदाज में सवाल उठा रहे हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आनंद मोहन अकेले बिहार के ऐसे नेता नहीं है जिनका बिहार की सियासत पर गहरा प्रभाव हो। बिहार की राजनीति में आनंद मोहन के अलावा 7 और ऐसे बाहुबली है, जिन्होंने राजनीति पर अपने रवैया के साथ राज किया है। इस लिस्ट में आनंद मोहन के अलावा अनंत सिंह, पप्पू यादव, मुन्ना शुक्ला सहित कई नाम शामिल है।
अनंत सिंह
बिहार के मोकामा में अनंत सिंह को मोकामा का डॉन उर्फ छोटे सरकार के नाम से जाना जाता था। अनंत सिंह का बिहार की राजनीति पर गहरा प्रभाव था। अनंत सिंह ने अपने जीवन काल में सैकड़ों अपराध किए। इतना ही नहीं उनके घर से एके-47 और बम तक बरामद हुए। उस एके-47 केस में कोर्ट से उन्हें 10 साल की सजा सुनाई थी।
आनंद सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह बिहार के बाहुबली नेता माने जाते थे। ऐसे में लालू यादव के साथ उनकी नज़दीकियां काफी ज्यादा थी। बड़े भाई की सीएम और आरजेडी प्रमुख लालू यादव से नजदीकी का फायदा अनंत सिंह को भी भरपूर मिला। अनंत सिंह ने अपने बड़े भाई दिलीप से ही राजनीति की बारीकियां सीखी। दिलीप सिंह का नाम तब सुर्खियों मे आया जब कांग्रेस विधायक रहे श्यामसुंदर धीरज के विरुद्ध चुनावी मैदान में उतरे और वोट वाले दिन बूथ पर कब्जा कर विधायक बन गए। ऐसे में उनके नाम का दबदबा पूरे क्षेत्र में फैल गया। दिलीप सिंह के बाद उनके इस दबदबे को उनके भाई अनंत सिंह ने कायम रखा।
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बता दें कि एक वक्त ऐसा था जब अनंत सिंह ने बेहद कम उम्र में वैराग्य ले लिया, लेकिन वहां भी उसका बाहुबली रवैया नहीं छूटा और साधुओं से झड़प हो गई। ऐसे में यहां भी मन उचटने लगा। वही इस दौरान बड़े भाई बिरंचि सिंह की हत्या के बाद अनंत सिंह पर बदला लेने की धुन सवार हो गई। एक दिन अपने भाई के हत्यारे को नदी के पास बैठा देखकर तैरकर नदी के किनारे पहुंचा और ईंट-पत्थरों से मार-मार कर उसकी हत्या कर डाली। बता दे अनंत सिंह 5 बार विधायक रह चुके हैं।
मुन्ना शुक्ला
बाहुबली नेताओं का जिक्र हो तो मुन्ना शुक्ला को कैसे भूल सकते हैं, जिन्होंने बिहार के अंडरवर्ल्ड डॉन से लेकर विधायक बनने के सफर तक अपराध की दुनिया में एक नई कहानी लिखी थी। वैशाली जिले के लालगंज में कभी मुन्ना शुक्ला का नाम लोगों के खौफ की वजह था। 15 साल तक वह इसी सीट पर अपना कब्जा जमाए बैठा रहा। लालगंज हजारीपुर लोकसभा सीट के तहत आता है ऐसे में जुर्म की दुनिया में कदम रखने वाले मुन्ना शुक्ला ने सीधे यहां के जिलाधिकारी की हत्या कर दी थी। इतना ही नहीं मुन्ना शुक्ला ने राबड़ी देवी के कार्यकाल के दौरान पूर्व मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की भी हत्या कर दी थी, जिसके बाद उन्हें जेल भेज दिया गया था।
कुछ समय बाद मुन्ना शुक्ला के भाई छोटन की साल 1994 में हत्या कर दी गई। भाई की मौत के बाद मुन्ना शुक्ला ने उस की शव यात्रा निकाली और साथ ही विरोध प्रदर्शन भी किया। वही जब गोपालगंज के जिलाधिकारी ने इस दौरान इस विरोध प्रदर्शन में आक्रोशित हुए लोगों को शांत कराने की कोशिश की, तो मुन्ना शुक्ला ने सभी को उकसा दिया और भीड़ ने जिलाधिकारी जी कृष्णैया पर हमला कर दिया। मौके पर ही जी कृष्णैया की मौत हो गई। यह एक ऐसा मामला था जब किसी हत्या में मुन्ना शुक्ला का नाम खुलकर सामने आया था। इस घटना के बाद मुन्ना शुक्ला अपने भाई छोटन की कुर्सी के वारिस बने।
इसके बाद मुन्ना शुक्ला ने पहली बार साल 1999 में हजारीबाग जेल से ही निर्दलीय विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन जीत हासिल नहीं हुई। इसके बाद साल 2002 में जेल से ही दुबारा निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। यहां से शुरू हुआ मुन्ना शुक्ला का राजनीति का सफर। साल 2005 में लोक जनशक्ति पार्टी के साथ आगे जारी रहा। इसके बाद जेडीयू के टिकट पर मध्यावधि चुनाव लड़ा और विधायक बन गए। साल 2009 में जेडीयू ने आरजेडी नेता रघुवंश प्रसाद सिंह के खिलाफ मुन्ना शुक्ला को वैशाली सीट से लोकसभा चुनाव में उतारा, लेकिन मुन्ना शुक्ला को जीत नहीं मिली।
हालांकि इसके बाद मुन्ना शुक्ला का राजनीतिक करियर रुक गया, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने सजा काट रहे राजनेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। ऐसे में अपने दबदबे को आगे भी कायम रखने के लिए मुन्ना शुक्ला ने साल 2010 में अपनी जगह अपनी पत्नी अनु शुक्ला को चुनावी मैदान में उतारा। इस दौरान अनु शुक्ला लालगंज सीट से जदयू के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरी और जीत हासिल की।
सूरज भान सिंह
मोकामा के सूरजभान सिंह के पिता एक व्यापारी सरदार गुरजीत सिंह की दुकान पर काम किया करते थे इसी काम से परिवार का गुजर-बसर चलता था। वही सूरजभान के बड़े भाई की नौकरी जब सीआरपीएफ में लग गई, तो परिवार को आर्थिक स्तर पर बड़ी मजबूती मिली। इस दौरान बड़े बेटे के फौज में जाने के बाद पिता को लगने लगा कि लंबी-चौड़ी कद काठी वाला छोटा बेटा भी फौज में ही शामिल होगा, लेकिन उनके छोटे बेटे सूरजभान सिंह ने अपने लिए कुछ और ही मैदान पहले ही चुन लिया था। ऐसे में सूरजभान पहले बाहुबली फिर विधायक और उसके बाद सांसद बनें।
80 के दशक में सूरजभान छोटे-मोटे अपराध के चलते सुर्खियों में आए, लेकिन 90 के दशक में उनका क्राइम ग्राफ तेजी से बढ़ने लगा। आलम यह था कि जुर्म की दुनिया में सूरजभान का नाम हमेशा सुर्खियों में रहने लगा। जुर्म के साथ-साथ सूरजभान ने राजनीति की दुनिया में भी कदम रख दिया और कांग्रेस के विधायक और मंत्री रह चुके श्याम सुंदर सिंह धीरज और अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह का सपोर्ट मिलने के बाद राजनीति के मैदान में उतर गए। ये साल 2000 में तत्कालीन बिहार सरकार के मंत्री दिलीप सिंह के खिलाफ पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा और पहली बार में ही भारी मतों से जीत दर्ज कर छा गए।
सूरजभान सिंह ने राजनीति की दुनिया में पहली जीत दर्ज की थी, उस दौरान बिहार में उन पर कुल 26 मामले दर्ज थे, जिनमें हर तरह के केस शामिल थे। इस जीत के बाद सूरजभान को अगले साल 2000 में रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट से बलिया चुनाव के दौरान जीत मिली और इसी के साथ वह सांसद बन गए। सूरजभान बिहार के उन बाहुबली नेताओं में से हैं, जिन्हें नीतीश कुमार का संकटमोचक कहा जाता है।
पप्पू यादव
बिहार की राजनीति का जिक्र हो और बाहुबली नेताओं का नाम लिया जा रहा हो, तो पप्पू यादव को भूलना बड़ी गलती होगी। बिहार में पप्पू यादव की छवि बड़े बाहुबली राजनेताओं में आती है। उन्होंने साल 1990 में सियासत की दुनिया में कदम रखा और सिंहेसरस्थान विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पहली बार जीत दर्ज कर विधायक बने थे। 90 के दशक की शुरुआत में पप्पू यादव और आनंद मोहन के बीच जातीय वर्चस्व की लड़ाई थी, जहां एक और पप्पू यादव का दबदबा यादव खेमे पर था तो वहीं आनंद मोहन राजपूत तबके पर अपनी पकड़ बनाए हुए थे। ऐसे में दोनों के बीच की जातीय वर्चस्व की लड़ाई में काफी खून खराबा भी हुआ था।
अपनी बाहुबली रवैया के चलते पप्पू यादव बेहद कम समय में कोसी, पूर्णिया, कटिहार, सुपौल और मधेपुरा जैसे सभी सीमांचल जिलों में अपनी लोकप्रियता का परचम लहराने में कामयाब हो गए थे। पप्पू यादव 16वीं लोकसभा में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले सांसद रहे थे। स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर पप्पू यादव ने साल 1991 साल 1996 और साल 1999 में तीन बार पूर्णिया से और आरजेडी टिकट पर 2 बार साल 2004 और 2014 में मधेपुरा से सांसद की कुर्सी पर कब्जा किया था।
पांच बार सांसद रहे पप्पू यादव का नाम 14 जून 1998 में माकपा विधायक अजित सरकार की हत्या के मामले में सुर्खियों में आया और 24 मई 1999 को इस मामले में दर्ज केस दर्ज हुआ। इसके बाद पप्पू यादव को गिरफ्तार किया गया। सीबीआई की विशेष अदालत ने पप्पू यादव, राजन तिवारी और अनिल यादव को इस मामले में हत्याकांड के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई। पप्पू यादव लगातार 12 साल जेल में रहने के बाद पटना हाई कोर्ट की ओर से साल 2013 में बरी कर दिए गए हैं।
प्रभुनाथ सिंह
बाहुबली नेताओं की इस लिस्ट में एक नाम प्रभुनाथ सिंह का भी है, जो सिवान के महाराजगंज सीट के पूर्व सांसद रह चुके हैं। राजनीति की दुनिया में उनके नाम की तूती बोलती थी। प्रभुनाथ सिंह राजनीति की दुनिया का वह चेहरा थे, जो कभी लालू प्रसाद यादव के करीब रहे तो कभी नीतीश कुमार यादव के…। राजपूत जाति से ताल्लुक रखने वाले प्रभुनाथ सिंह पहली बार सारण के मसरख विधानसभा सीट से साल 1985 में चुनावी मैदान में उतरे थे और पहली ही बार में जीत दर्ज कर दी थी। इस दौरान उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा था और इसी सीट से विधायक बने थे। विधायक बनने से पहले उन पर मशरख के तत्कालीन विधायक रामदेव सिंह काका की हत्या का आरोप लगा था। हालांकि इस हत्या के आरोप में उन्हें बरी कर दिया गया था।
प्रभुनाथ सिंह का राजनीतिक सफर पहली ही जीत के साथ शुरू हुआ और इसके बाद साल 1990 में दोबारा विधायक बनें, लेकिन साल 1995 में उनका सिक्का नहीं चला और अपने ही शागिर्द अशोक सिंह के हाथों हार गए। अशोक सिंह के जीतने के बाद प्रभुनाथ सिंह की सियासत डगमगाने लगी थी। ऐसे में अपनी दादागिरी की कुर्सी डगमगाती देख प्रभुनाथ सिंह बौखला गए और बदला लेने का मौका ढूंढने लगे। इसके बाद जब मौका मिला, तो 3 जुलाई 1995 को पटना आवास में विधायक अशोक सिंह की उन्होंने बम से हत्या करवा दी।
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प्रभुनाथ सिंह के इस कारनामे में उनके भाई दीनानाथ सिंह को अपराधी बना दिया गया। वहीं इस हत्याकांड के बाद प्रभुनाथ सिंह ने पटना की राजनीति छोड़कर दिल्ली का रुख कर लिया और लोकसभा चुनाव की तैयारी करने लगे। हालांकि विधायक अशोक सिंह की हत्या के मामले में जांच पड़ताल के बाद उनका नाम सामने आया और वह दोषी पाए गए। तब से अब तक जेल की सजा काट रहे हैं।
रामा किशोर सिंह
बिहार के बाहुबलियों की लिस्ट में एक नाम रामा किशोर सिंह का भी है, जो पांच बार विधायक और एक बार सांसद रह चुके हैं। रामा किशोर सिंह रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी से सांसद थे। वह कई मामलों में दोषी पाए गए थे। इस दौरान उन पर किडनैपिंग से लेकर कत्ल तक कई संगीन आरोप लगे। अपराध की दुनिया में उनके नाम एक लंबी हिस्ट्री शीट दायर थी, लेकिन इसके साथ ही राजपूतों का उन्हें भारी समर्थन प्राप्त था। ऐसे में बिहार की राजनीति में 90 के दशक में रामा किशोर सिंह के नाम की तूती बोलती थी।
90 के दशक में उनका नाम तेजी से उभरा और इस दौरान उनकी दोस्ती जब बाहुबली अशोक सम्राट से हुई, तो हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र जनशक्ति पार्टी और रामविलास पासवान के गढ़ से जीत दर्ज की। इस दौरान कहा गया कि साल 2014 में मोदी लहर में राम किशोर सिंह एलजीपी के टिकट पर वैशाली से सांसद रहे। इस दौरान उन्होंने आरजेडी के कद्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह को करारी मात दी थी। जहां इस जीत के साथ राम किशोर सिंह का नाम छा गया, तो वही हार के बाद रघुवंश प्रसाद का नाम राजनीति की दुनिया में कहीं गुम हो गया।
राजन तिवारी
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के सोहगौरा गांव के रहने वाले राजन तिवारी बेहद साधारण परिवार से थे। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई यहीं से की थी, लेकिन बड़े होने के बाद अपराध की दुनिया से जुड़ने लगे और इसी दौरान उनकी मुलाकात माफिया डॉन श्री प्रकाश शुक्ला से हुई। श्री प्रकाश शुक्ला के संपर्क में आने के बाद राजन तिवारी का नाम एक के बाद एक अपराध की दुनिया से जुड़ने लगा। श्री प्रकाश शुक्ला के साथ वह कई मामलों में आरोपी भी पाए गए। ऐसे में अपराध की दुनिया के साथ बढ़ते हुए राजन तिवारी का नाम बिहार के बाहुबलियों की लिस्ट में गिना जाने लगा।
बाहुबली बने और लोगों पर दबदबा नजर आने लगा, तो राजनीति की दुनिया में कदम रख दिया और इसी के साथ वह दो बार विधायक बनें। बता दे राजन तिवारी पूर्वी चंपारण के गोविंदगंज से लोजपा विधायक रह चुके हैं। राजन तिवारी पर यूपी के महाराजगंज के लक्ष्मीपुर विधानसभा सीट से विधायक रहे वीरेंद्र प्रताप शाही पर हमले करने का आरोप लगा था। इस दौरान राजन तिवारी को इस मामले में यूपी पुलिस की ओर से वांटेड भी घोषित किया गया था। हालांकि इस मामले में राजन तिवारी को साल 2014 में कोर्ट की ओर से बरी कर दिया गया था।
सुनील पांडे
बिहार के बाहुबली नेताओं की लिस्ट में शामिल सुनील पांडे तीन बार विधायक रह चुके हैं। वह दो बार जेडीयू से और एक बार समता पार्टी से विधायक बने थे। वह भगवान महावीर से पीएचडी कर चुके और अपने नाम के आगे डॉक्टर लगाने वाले बिहार के एकलौते बाहुबली नेता है। सुनील पांडे कई मामलों में जेल जा चुके थे। सुनील पांडे का नाम बिहार के बाहुबली नेताओं की उस लिस्ट में शामिल है, जिन्होंने अपने जीवन की आधी जिंदगी जेल में और आधी जिंदगी फरार रहते हुए बिताई है, लेकिन इसके बावजूद बिहार की राजनीति पर उनका दबदबा था।
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