आमतौर पर लोग छुट्टियां मनाने टापू पर जाया करते हैं लेकिन भारत में ऐसा टापू है जहां पर बड़े-बड़े मिसाइलों का परीक्षण किया जाता है। इस टापू पर आम लोगों का आना मना है। यह टापू उड़ीसा राजधानी भुवनेश्वर से करीब 150 किलोमीटर दूर समुद्र किनारे स्थित है। आपको बता दें कि इस टापू का नाम कभी व्हीलर्स द्वीप हुआ करता था लेकिन पूर्व राष्ट्रपति एपीजे एपीजे अब्दुल कलाम के निधन के बाद ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने इस टापू का का नाम बदलकर एपीजे कलाम द्वीप रख दिया।
इस टापू पर देश के सभी मिसाइलों का परीक्षण किया जाता है। यही वजह है कि यहां पर आम लोगों का आना जाना मना है। यहां पर कोई भी शख्स बिना इजाजत के नहीं पहुंच सकता यहां पर हाई सिक्योरिटी होता है।आपको बता दें कि यह द्वीप उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर बंगाल की खाड़ी में स्थित हैं। इस द्वीप की लंबाई लगभग 2 किलोमीटर है, यह 390 एकड़ में फैला है। साल 1983 में पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के कहने पर उड़ीसा के मुख्यमंत्री ने इस द्वीप को रक्षा मंत्रालय को अपने प्रयोगों के लिए दे दिया था। इसके बाद लगातार इस आईलैंड पर कई तरह के मिसाइलों का परीक्षण किया जाता है।
किया जा चुका है कई मिसाइलों का परीक्षण
1980 के दशक में भारत सरकार को एक ऐसे जगह की तलाश थी जहां पर मिसाइलों का आसानी से परीक्षण परीक्षण किया जा सके। इसके लिए डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से बातचीत की और उड़ीसा सरकार ने उन्हें व्हीलर्स द्वीप दे दिया।इस द्वीप पर कई तरह की मिसाइलों का परीक्षण हो चुका हैं। निर्भय, प्रहार, पृथ्वी मिसाइल, एस्ट्रा मिसाइल, अग्नि मिसाइल, अकाश मिसाइल से लेकर नए-नए परीक्षण यहीं पर हो रहे हैं। आपको बता दें कि पूर्व राष्ट्रपति कलाम इसे थिएटर ऑफ एक्शन बोला करते थे।
इस द्वीप पे आने जाने के लिए कोई राज्य मार्ग नहीं हैं, यहां बस एक छोटा हेलीपैड है। मिसाइल के लिए सभी सामानों की सामग्री, भारी उपकरण जहाज से पहुंचाए जाते हैं। इस द्वीप पर सिर्फ DRDO का स्टाफ और रक्षा मंत्रालय के अधिकारी ही आ जा सकते हैं । आम लोगों के जाने पर यहां बैन है।
काफी खूबसूरत है ये द्वीप
अब्दुल कलाम द्वीप समुद्र किनारे स्थित है। यहां का नजारा देखने में काफी सुख खूबसूरत लगता है यहां पर आकर्षक ऑलिव रिडले कछुए भी पाए जाते हैं। हालांकि कुछ समय पहले यहां कछुओ को परेशानियों का सामना करना पडा था। दरअसल मिसाइल टेस्टिंग के दौरान आइलैंड पर रोशनी के लिए तेज लाइट लगाई गई थी। तेज रोशनी के कारण कई कछुए रास्ता भटक जाया करते थे और कई कछुओं की समुद्र में ही मौत हो जाया करती थी।इन सब पर काफी रिसर्च करने के बाद डीआरडीओ ने कछुए के प्रजाति को सुरक्षित रखने के लिए कई कदम उठाए। कछुए के प्रजनन के दौरान इन बातों का खास ख्याल रखा जाता था। आईलैंड की लाइटों को काफी हल्की (Deam) कर दी जाती थी या फिर उन्हें ढक दिया जाता था।
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