पिछले कई दिनों से बिहार की राजनीति में एक नाम काफी चर्चा में है। नाम जिसे लेकर सबों की अपनी-अपनी राय है। नाम जिसकी वजह से बिहार का राजनीतिक तापमान फिलहाल अपने चरम पर है। आखिर कौन है वह शख्स , जिसके बारे में इतनी चर्चाएँ हो रही हैं??
दूसरों की राय से इतर हम पूरी तथ्यात्मक बात करेंगे।
दरअसल जिस शख्स को लेकर बिहार की राजनीति में इतना तूफान उठा हुआ है, उनका नाम पशुपति कुमार पारस है। पशुपति कुमार पारस का जन्म 06 jun 1957 को हुआ था। इनके पिता का नाम जमुना दास था। पशुपति कुमार पारस अलौली से पांच बार विधायक रह चुके हैं। उन्होंने जेएनपी उम्मीदवार के रूप में 1977 में अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता। तब से वे एलकेडी, जेपी और एलजेपी उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ते रहे हैं।
उन्होंने बिहार सरकार में पशु और मछली संसाधन विभाग के मंत्री के रूप में कार्य किया। ये हाजीपुर से 2019 का संसदीय चुनाव जीते और संसद के सदस्य बने। इसके अलावा, वे लोक जनशक्ति पार्टी की बिहार इकाई के प्रदेश अध्यक्ष हैं। इन सबके अलावा भी इनकी एक पहचान है और वह है दिवंगत राम विलास पासवान के भाई और चिराग पासवान के चाचा। बता दें कि पिछले कई दिनों से चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस में सबकुछ ठीक नहीं चल रकह है , इसकी एक बड़ी वजह पार्टी के 6 में से 5 सांसदों द्वारा चिराग़ पासवान से बगावत कर पशुपति कुमार पारस को अपना नेता चुन लेना है।
आखिर कब हुई इस बगावत की शुरूआत और क्या है इस बगावत के अंदरखाने की कहानी??
सूत्रों के मुताबिक , चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के संबंधों में खटास की शुरूआत बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान राम विलास पासवान के मौत के बाद हीं शुरू हो गया था। पार्टी के नेता बताते हैं कि रामविलास पासवान के निधन के चार दिनों के बाद और बिहार चुनाव से पहले पारस ने बिहार के सीएम नीतीश कुमार की तारीफ कर दी थी। कहते हैं कि नीतीश की तारीफ चिराग पासवान को काफी नागवार गुजरी। इसके बाद गुस्साये चिराग ने चाचा को पार्टी से निकालने तक की धमकी दे दी थी और उन्हें परिवार के नहीं होने तक की बात कह दी थी। तब जवाब में पारस ने भी कह दिया था कि जाओ आज से तुम्हारे लिए तुम्हारे चाचा मर गये।
इस घटना के बाद चाचा-भतीजे के बीच मुश्किल से ही बात होती थी। नीतीश कुमार की तारीफ के बाद जब चिराग पासवान ने पशुपति कुमार पारस पर दबाव बनाया तो पारस ने उस वक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपनी बात को संभाला था। लेकिन उस समय भी पशुपति पारस बिहार विधानसभा चुनाव में कभी भी एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने या भाजपा व जदयू के खिलाफ लोजपा के उम्मीदवार खड़े करने के पक्ष में नहीं थे। पारस के करीबी बताते हैं कि जब चुनाव की तैयारियों के दौरान भतीजे ने चाचा से पार्टी के उम्मीदवारों के नामों पर चर्चा करना जरूरी नहीं समझा तो वह खुद को अलग-थलग महसूस करने लगे थे।
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