इतिहास गवाह है कि किस तरह से बिहार के मेहनती और प्रतिभाशाली लोगों ने अपने मेहनत और लगन के बदौलत खुद के लिए तो उच्च मुकाम हासिल किया ही साथ ही साथ देश का भी नाम रौशन किया है। ऐसे ही एक होनहार व्यक्ति हैं आईएएस राजेश कुमार सिंह जो अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बदौलत देश के सबसे प्रतिष्ठित सेवा आयोग यूपीएससी में चयनित होकर आईएएस अधिकारी बने।
इनकी कहानी इसलिए प्रेरणादायक है क्योंकि 6 साल की उम्र में ही क्रिकेट खेलते हुए इनकी आंखो पर चोट लगने से इनकी आंखो कि रौशनी चली गई थी। इनके परिवार वालो को इनके भविष्य का डर सताने लगा था। फिर भी इन्होंने हार नहीं मानी और अपने लिए एक बड़ा मुकाम हासिल किया। कहा जाता है न कि अगर अपनी कमजोरी को अपना ताकत बना लिया जाए तो कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है।
यहाँ के रहने वाले
इनका पैतृक घर पटना जिले के धनरूआ में है। इनके पिता जी एक अधिकारी थे। इनकी 12 वीं तक की पढ़ाई देहरादून के मॉडल स्कूल से हुई। उसके बाद इन्होंने अपनी उच्च शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से पूरी की। फिर एम ए और पीएचडी की पढ़ाई जेएनयू से पूरी की। दृष्टिबाधित होने के कारण इन्होंने अपनी पढ़ाई ब्रेल लिपि से की।आंखो की रौशनी जाने के बावजूद भी ये हमेशा क्रिकेट से जुड़े रहे।
2006 में इन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दी और चयनित हुवे। दिब्यांग श्रेणी में तृतीय स्थान प्राप्त करने के बावजूद इन्हे आईएएस नहीं मिली। यूपीएससी ने अपनी सफाई में कहा कि हम पूरी तरह से दृष्टिबाधित को आईएएस सेवा में बहाल नहीं कर सकते। फिर इन्होंने अपनी लड़ाई कोर्ट में लड़ी जहां सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आईएएस अधिकारी होने के लिए दृष्टि नहीं दृष्टिकोण की जरूरत होती है।इन्होंने नेत्रहीन क्रिकेट विश्वकप में 1998, 2002 तथा 2006 में भारत का प्रतिनधित्व किया। पिछले वर्ष झारखंड सरकार ने उन्हें बोकारो जिले के डीएम के रूप में नियुक्त किया है। इन्होंने “पुटिंग आई इन आईएस” नामक किताब भी लिखी है
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