लालू प्रसाद यादव को जमानत मिलने से बिहार की सियासी सरगर्मी थोड़ी सी बढ़ सी गई है गई है। चारा घोटाले के दुमका कोषागार के मामले में उनकी अर्जी पर रांची हाईकोर्ट ने सुनवाई कर शनिवार को उन्हें जमानत दे दी। लालू यादव चारा घोटाला के तीन मामलों में जेल में सजा काट रहे थे। लालू को दो मामलों में पहले ही जमानत मिल चुकी थी, तीसरे मामले में जमानत मिलने से उनके जेल बाहर आने का रास्ता साफ हो गया है। फ़िलहाल वो अस्पताल में भर्ती है। उनके जमानत के बाद ये सवाल उठ रहे हैं कि क्या फिर से आरजेडी और बिहार की राजनीति में लालू यादव दिखेंगे।
राजनीतिक गलियारों में यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि उनके जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद क्या बिहार के राजनीतिक हवा में कुछ बदलाव होगा। हालांकि इस कोरोना काल में राजनीति पहले की तरह आसान नहीं होने वाली है। इस परिस्थिति में जेल से बाहर आ रहे लालू प्रसाद के चीजें आसान नहीं होगी। कोरोना काल में राजनीतिक मेल-मिलाप ठप सी पड़ गई हैं।
हालांकि उनके जेल से बाहर आने के बाद उनके परिवार को हिम्मत मिलेगी। राजनीति में अपने पिता की तरह आक्रमक दिखने वाले तेजस्वी को और अन्य नेताओं को नई धार मिलेगी। पिछले तीन दशक की बात करे तो बिहार की राजनीति लालू प्रसाद के आसपास ही घूमती नजर आ रही थी। बिहार के राजनीति में लालू यादव की स्थिति पहले ऐसी थी जैसे गले बिना हार ऐसे ही लालू बिना बिहार। लेकिन अभी देखा जाए तो लालू प्रसाद की सेहत उनका साथ नहीं दे रही है।
रेल मंत्री भी बने
लालू की राजनीति कैरियर की बात करे तो 1990 में मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन साल 2005 के बाद नीतीश के हाथों बिहार की सत्ता से हाथ धोना पड़ा था। हालांकि लालू यूपीए की सरकार में रेल मंत्री भी बने थे। इस बात से सभी लोग अवगत होंगे कि लालू का यूपीए वन पर किस तरह का दबदबा रहा था। लालू ने दिल्ली को अपना राजनीतिक गढ बना लिया था। रेल मंत्री के रूप में वो देश की राजनीति में खूब चर्चा में रहे।
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