असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को आर्थिक सहायता पंहुचाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार मजदूरो को पेंशन देने की योजना बना रही है। जानकारी के मुताबिक सरकार ‘डोनेट पेंशन’ अभियान चलाने की तैयारी में है। इसके जरिए लोगों को स्वैच्छिक रूप से इस पेंशन के लिए सहयोग देने के लिए प्रेरित किया जाएगा। बता दें कि यह अभियान ‘गिव इट अप’ अभियान का हिस्सा होगा। पूर्व में इस अभियान के जरिए लोगों को रसोई गैस की सब्सिडी जरूरतमंदों के लिए छोड़ने के लिए प्रेरित किया गया था, और इसके सकारात्मक नतीजे भी देखने को मिले थे।
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट की मानें तो ‘डोनेट पेंशन’ अभियान के तहत एक व्यक्ति को मात्र 36,000 रुपये प्रति मजदूर व्यय आने की संभावना है। यह प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन (पीएम-एसवाईएम) योजना के तहत एकमुश्त भुगतान होगा, जो मजदुरो द्वारा उनके पूरे जीवन के दौरान किए जाने वाले मासिक योगदान की भरपाई करेगा। उल्लेखनीय है कि इस योजना के लाभुक 60 वर्ष की आयु से 3,000 रुपये मासिक पेंशन के लिए पात्र होगा। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि शीर्ष सरकारी अफसरों द्वारा कहा गया है कि श्रम मंत्रालय इस संबंध में उच्च स्तर पर विचार के लिए प्रस्ताव की तैयारी कर रहा है।
श्रम मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों से जानकारी प्राप्त होती है कि अक्टूबर में मात्र 35 श्रमिकों द्वारा इस योजना के तहत नामांकन किया गया था जबकि 85 मजदुरो द्वारा सितंबर में पंजीकरण कराया गया था। अगर सालाना औसत मासिक पंजीकरण की बात करें तो यह आंकड़ा 2,366 का रहा है। अधिकारी द्वारा कहा गया है कि ‘यदि इसे मंजूरी मिल जाती है तो यह योजना को पुनर्जीवित करेगी और लाखों श्रमिकों को इसके दायरे में लाने का काम करेगी।’
क्या है PM-SYM
PM-SYM एक ऐसी स्वैच्छिक पेंशन योजना है,जो लाखों असंगठित मजदुरो को सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने के उद्देश्य से प्रारम्भ की गई थी। इसके दायरे मे 18-40 आयु वर्ग के असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों आते जिनकी प्रत्येक महीने की आय 15,000 से कम की होती है। इसके तहत एक मजदूर को 55 रुपये से लेकर 200 रुपये का योगदान करना होगा, इस प्रक्रिया मे सरकार भी एक समान योगदान प्रदान करेगी।
तीन साल पूर्व इस योजना की शुरुआत की गई थी, तब से इस साल के अक्टूबर तक कुल मिलाकर 45.1 लाख अनौपचारिक श्रमिकों को नामांकित किया गया है। लेकिन फिर भी आंकड़ा देश में अनुमानित 38 करोड़ अनौपचारिक श्रमिकों की तुलना में बेहद कम है। शामिल किए गए अधिकांश श्रमिकों को 60 वर्ष की आयु के बाद किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा के बगैर छोड़ दिया गया है।
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