टोक्यो पैरालिंपिक में हाई के T64 इवेंट में शरद कुमार कांस्य पदक जीतकर भारत का तिरंगा लहराते हुए काफी खुश नज़र आ रहे थे। इस सफलता तक पँहुचने के लिए उन्होंने कड़ा संघर्ष किया। मंगलवार के दिन उन्होंने खेलों के सबसे बड़े मंच पर मेडल जीतकर वह सपना पूरा किया जो सालों से उनकी आंखों में बसा हुआ था। वे इस सफलता का स्वाद दो साल पहले ही चख चुके होते, अगर उन पर बैन नहीं लगाया गया होता।
शरद कुमार के जिंदगी की कहानी जितनी मार्मिक है, उनके इरादे उतने ही बुलंद हैं। जब वे महज दो साल के थे तब डॉक्टर ने उन्हें गलत इंजेक्शन दे दिया। इस इंजेक्शन के कारण वे पोलियो से ग्रसित हो गए। इस घटना के बाद उनके माता-पिता काफी टूट गए लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और बेटे को पढ़ाई पर ध्यान लगाने के लिए कहा। उन्होंने शरद को खुद से दूर दार्जिलिंग के बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया। उनके माता-पिता अपने रिश्तेदारों स्व् और उधार लेकर तो कभी किसी तरह पैसे का इन्तजाम करके स्कूल की फीस भरा करते थे।
स्कूल मे बच्चे उड़ाते थे मजाक
बोर्डिंग स्कूल में ही शरद के खेल का सफर शुरू हुआ। वे पढ़ाई में भी काफी तेज थे और खेल मे भी वे आगे रहते थे। आरम्भ में जब वे खेल का अभ्यास करते थे तो साथी विद्यार्थी उनका उपहास करते थे। इसलिए वे अकेले में अभ्यास करते थे। जब कभी छुट्टियों में वह घर आते थे तो आम के पेडों के बीच रस्सी बांधकर और नीचे गद्दे डालकर हाई जंप की प्रैक्टिस किया करते थे। उन्होंने 2000 की शुरुआत में दार्जिलिंग का राज्य चैंपियनशिप जीता। जबकि साल 2008 में उन्होंने अपना पहला नेशनल मेडल जीता। उन्होंने 1.76 मीटर से भी ज्यादा के जंप्स के साथ लंदन ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई किया था लेकिन उन पर डोपिंग के आरोप लगे, उन्हें टेस्ट मे डोपिंग पॉजिटिव पाया गया ।
डोपिंग के आरोप ने तोड़ा आत्मविश्वास
शरद पर जब डोपिंग का आरोप लगा,वे खेल मे बेहतर प्रदर्शन के लिए पूरी तरह तैयार थे और बहुत उतसाहित थे।वे लंदन में खुद को गोल्ड लाने का दावेदार मान रहे थे। लेकिन बैन के कारण उन्हें दो वर्षो तक खेल से दूर रहना पड़ा। इस समय का उपयोग उन्होंने अपनी पढ़ाई मे किया और जेएनयू में अपनी की। वह यहां हाई जंप और खेलों से जुड़ी खबरें भी पढ़ा करते थे। रियो ओलिंपिक में वे छठे स्थान पर रहे, इससे उन्हें काफी निराशा हुई। उन्होंने रियो के बाद छह महीने तक ट्रेनिंग नहीं की लेकिन पैरालिंपिक मेडल का सपना उन्होंने जिंदा रखा। उन्होने यूक्रेन में ट्रेनिंग ली।
आईएएस बनने का है सपना
साल 2019 में आईपीसी वर्ल्ड चैंपियनशिप में शरद ने सिल्वर मेडल जीता और पैरालिंपिक के लिए क्वालिफाई किया। यूक्रेन में भी वह पढ़ाई से जुड़े रहे और अपनी किताबें साथ लेकर गए। मेडल जीतने के बाद अब उनका सपना आईएएस अधिकारी बनने का है। वह टोक्यो पैरालिंपिक के बाद इसकी तैयारी शुरू करेंगे
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