बिहार के सांस्कृतिक खुबसूरती की एक अद्द्भुत्त विशेषता यह है कि यहाँ सभी धर्म की ऐतिहासिक गाथा और उनके धर्म स्थल मौजूद है। गया मे स्थित विष्णुपद मंदिर पूरी दुनिया मे हिंदुओं की आस्था का केंद्र है तो पटना साहिब का तख्त श्री हरिमंदिर साहिब सिखो के प्रमुख तीर्थ स्थलो मे से एक है। बोधगया के महाबोधि मंदिर मे दुनिया भर के कोने कोने से बौद्ध मतावलंबी आते है तो वहीं पावापुरी का मंदिर जैन धर्म का प्रमुख धर्म स्थल है। पावापुरी के श्वेतांबर मंदिर को गांव मंदिर के नाम से भी विख्यात है। यहीं जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी ने 16 पहर तक अपने अमृत वचनों की अखंड दर्शना देते हुए कार्तिक की अमावस्या के अंतिम पहर में स्वाति नक्षत्र में 72 वर्ष की आयु में देहत्याग कर दिया था। यह जैनियों का पवित्र स्थल है।
पावापुरी में हर साल दीपावली के मौके पर भगवान महावीर की निर्वाण स्थली पर बड़ा मेला लगता है। जैन धर्मावलम्बियो का ऐसा कहना है कि भगवान महावीर स्वामी ने जिस जगह पर देह त्याग किया और मोक्ष प्राप्त किया था, वहां प्रभु महावीर की स्मृति में उनके अग्रज सम्राट नंदी वर्धन ने एक चबूतरा बनवा कर प्रभु के चरण स्थापित किए। चबूतरे के उसी स्थान पर भगवान महावीर का भव्य मंदिर बनवाया गया एवं समय-समय पर उस समय के शासको द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार कराया जाता रहा है।
प्राप्त अभिलेखों के अनुसार 1631 ई में जब मुगल बादशाह शाहजहां का शासन था तो बिहार शरीफ के महात्मा संघ ने इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। उन्होने इसे विमान की आकृति दी, आचार्य जिनराज सूरी ने प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवाई। पिछले पांच सालो से राज्य सरकार की तरफ से पावापूरी मे दो दिवसीय राजकीय पावापुरी महोत्सव का आयोजन किया जाता रहा है, जिसमें स्थानीय लोगों के अलावा देश विदेश से श्रद्धालु आते हैं, लेकिन पिछले साल कोरोना संक्रमण के कारण यह आयोजन नहीं किया गया।
दीपावली के अवसर पर यहा जो मेले आयोजित किए जाते हैं, उसमें मुंबई, गुजरात, राजस्थान, जबलपुर तथा विदेशों से श्रद्धालुगण आते हैं। जैन श्रद्धालुओ द्वारा पावापुरी के तीनों मंदिर से रथ यात्रा निकाली जाती है। दिगंबर रथ, समोशरण रथ तथा श्वेतांबर रथ तीनों रथ की बोली लगती है, रथ पर भगवान महावीर की प्रतिमा को विराजमान किया जाता है जिसे विभिन्न समय पर भगवान महावीर के निर्वाण स्थल जलमंदिर तक लाया जाता है और वहां विशेष पूजा – अर्चना की जाती है।
रथ यात्रा में श्रद्धालु जय बोलो महावीर की, जय बोलो त्रिशला नंदन वीर की नारे लगाते हुए भक्ति भाव से झूमकर चलते हैं। पावापुरी निर्वाण स्थल जल मंदिर से पूजा अर्चना करके दिगंबर रथ पांडुक शिला मंदिर, सामोशरण रथ, नया मंदिर तक जाता है। इसी प्रकार से श्वेतांबर रथ को भी भ्रमण कराया जाता है। जैनियों मे इस अवसर के बारे मे आस्था है कि दीपावली पर पूजा-अर्चना करने से उन्हें निर्वाण भूमि के जरिए मोक्ष मिलेगा।
कार्तिक की अमावस्या के अवसर पर पावापुरी जल मंदिर में 5 किलो से लेकर 51 तक के लाडू चढ़ाए जाने की परम्परा है। इन लाडू को बनाने मे बहुत शुद्धता बरती जाती है। कारीगर स्नान ध्यान करके साफ-सुथरे सूती चादर पहनते है तब जाकर लाडू बनाने के काम मे लगते हैं। जल मंदिर में लाडू चढ़ाने के लिए लाखों की बोली लगती है। जिसके द्वारा सबसे उँची बोली लगाई जाती है, उसे सबसे पहले मंदिर में लाडू चढ़ाने का सौभाग्य प्राप्त होता है।
प्रातःकाल के चार बजे से बोली लगाने की परंपरा शुरु हो जाती है। श्रद्धालु द्वारा रात में जल मंदिर परिसर में निर्वाण जाप किया जाता है। पाँच वर्षो पूर्व ही सीएम नीतीश कुमार द्वारा दीवाली के अवसर पर दो दिनों के पावापुरी राजकीय महोत्सव का शुभारंभ किया गया था। इस कार्यक्रम मे अपनी पेशकश देने के लिए देश-विदेश से नामचीन कलाकार आते है और प्रस्तुति देते हैं। इस मेले मे कई तरह के स्टाल लगाए जाते हैं। इस दौरान पावापुरी मंदिर को काफी भव्य और खूबसूरत लाइटिंग से सजाया जाता है।
अभी बरसात का मौसम है और इन दिनों पावापुरी जल मंदिर का नजारा बेहद ही खूबसूरत हो गया है, यह कमल के फूल के पत्तों से भर गया है। नीचे मछलियां अठखेलियां कर रही हैं तो सतह पर बत्तख की तरह दिखने वाली वन मुर्गियों का विचरण है। मंदिर तो अभी बंद है, लेकिन फिर भी पर्यटकों के आवागमन के दिनों में लोग इन जलचरों को मूढ़ी खिलाना नहीं भूलते। यहाँ नजारा इन दिनों हरियाली से भर गया है।
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