सीएम नीतीश कुमार ने अपने संघर्ष के दिनों के साथी ललन सिंह पर भरोसा जताते हुए जदयू का कमान उन्हें सौंप दिया है, और उन्हें पार्टी का अध्यक्ष चुना गया है। राजीव रंजन उर्फ सिंह नीतीश् कुमार के बेहद करीबी माने जाते हैं, उन्हें चुनाव प्रबंधन में भी महारत हासिल है। उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर सबसे पहले उन्हें नीतीश कुमार ने ही बधाई दी। ललन सिंह को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के बाद यह कहा जा रहा कि नीतीश कुमार ने पार्टी को ‘लव-कुश’ के दायरे से बढ़ाकर अब सोशल इंजीनियरिंग पर भरोसा जताया।
जातीय समीकरण मे फिट
जातीय समीकरण के हिसाब से देखें तो अभी तक जदयू मे अध्यक्ष पद पर OBC का बोलबाला था। लेकिन अब ललन सिंह सवर्ण चेहरे के तौर पर देखे जाएंगे। इसके साथ ही नीतीश कुमार के ऊपर ‘लव-कुश’ की राजनीति का आरोप भी खत्म हो जाएगा। बता दे कि आरसीपी सिंह और नीतीश कुमार कुर्मी जाति से हैं तो वही जबकि जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा उपेंद्र कुशवाहा कोइरी जाति से हैं। लेकिन अब ललन सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद सवर्ण (भूमिहार ब्राह्मण) की एंट्री हुई है और एक नया राजनीतिक समीकरण बना है। जब से जदयू की स्थापना हुई तब से ललन सिंह ऐसे सवर्ण जो अध्यक्ष हैं। इससे पहले के तीनों अध्यक्ष ओबीसी से थे। 30 अक्टूबर 2003 को जेडीयू की स्थापना की गई थी।
चिराग पासवान से लिया बदला
ललन सिंह की ऐसी कई खूबियां है जो उनकी राजनीतिक वर्चस्वता को साबित करती है। सियासत मे अब तक मे यह बात मशहूर हो चुकी है कि चिराग पासवान की वजह से नीतीश कुमार को विधानसभा में काफी नुकसान उठाना पड़ा था। लेकिन ललन सिंह ने अपने राजनीतिक दुशमनों से चुन-चुन कर बदला लिया। पहले एलजेपी के इकलौते विधायक को पार्टी में शामिल कराने यानी कि विधानसभा में लोजपा का ‘खाता’ बंद कराने का श्रेय ललन सिंह को ही दिया जाता है इसके बाद उन्होंने ‘मिशन दिल्ली’ की शुरुआत की। कहा जाता है कि उन्होंने चिराग के चाचा सहित पार्टी के पांच सांसदों को तोड़ दिया। 18 फरवरी के दिन एलजेपी के 18 जिलाध्यक्ष और 5 प्रदेश महासचिवों सहित 208 नेताओं को उन्होने जेडीयू में शामिल कराया।
लालू यादव की धूर विरोधी है ललन सिंह
ललन सिंह एक बड़ी विशेषता यह मानी जाती है कि वे लालू यादव के धुर विरोधी हैं। ऐसा कहा जाता है कि लालू यादव को जेल पहुंचाने में ललन सिंह की सबसे बड़ी भूमिका थी। केस की जल्दी सुनवाई के लिए ललन सिंह ने सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया था। कांग्रेस और आरजेडी से नेताओं को तोड़ने में भी ललन सिंह की बड़ी भूमिका मानी जाती है। कुल मिलाकर यही कहा जा रहा कि लालू प्रसाद से संघर्ष के साथ ही ललन सिंह सोशल इंजीनियरिंग के लिहाज से भी फिट हैं। उनके सवर्ण होने से स्वजाति को बढ़ावा देने का आरोप भी अब नीतीश कुमार पर नहीं लगाया जा सकेगा।नीतीश कुमार के साथ ललन सिंह के रिश्ते मे एक बार खटास भी आई थी लेकिन ये मतभेद ज्यादा दिनों तक नहीं चला और जल्द ही दोनों के राजनीतिक और निजी रिश्ते मधुर हो गए।
नीतीश कुमार से निजी रिश्ते भी बेहतर
नीतीश कुमार और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के निजी रिश्ते के बारे में बात करे तो इन दोनों के रिश्ते बहुत अच्छे रहे हैं। नीतीश कुमार, लालू यादव, सुशील कुमार मोदी, रविशंकर प्रसाद के साथ-साथ ललन सिंह ने भी अपने राजनीतिक जीवन का शुरुआत जेपी आंदोलन से किया था। ललन सिंह भागलपुर की टीएनबी कॉलेज से ग्रेजुएट है। ये छात्र संघ के महासचिव भी रह चुके हैं।
बिहार में नीतीश कुमार की सियासत इंट्री के बाद से ही ललन सिंह हमेशा से नीतीश कुमार के रणनीतिकार रहे हैं। नितीश कुमार और ललन सिंह के करीबी को लेकर बहुत सी बातें भी हुई लेकिन दोनों का तालमेल बना रहा। नीतीश कुमार के मजबूत संबंध के बल पर जदयू में ललन सिंह हमेशा से एक ताकतवर नेता बने रहे। जब 2019 में मुंगेर लोकसभा क्षेत्र से ललन सिंह तीसरी बार सांसद चुनकर आए तो उन्हे लोकसभा में पार्टी का नेता भी बनाया गया।
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