बिहार के इस जिले में है अँग्रेजों के जमाने का 325 वर्ष पुराना मॉल, राजा ने नाम रखा था मीना बाजार

Written by: Manish Kumar | biharivoice.com • 19 अगस्त 2021, 11:58 पूर्वाह्न

आज का दौर बाजारीकरण का दौर हो चुका है। बाजारीकरण ने मॉल संस्कृति को बढ़ावा दिया है। मॉल उपभोक्ताओ के लिए बेहद ही सुविधाजनक जगह है, क्योंकि यहाँ लोग एक ही जगह से अपने जरूरत के लगभग सभी सामान ले सकते हैं। वैसे तो मॉल आधुनिक संस्कृति की देन है लेकिन यह जानकर आपको ताज्जुब होगा कि आज से लगभग 325 वर्ष पहले बेतिया के महाराज ने मॉल की जरुरत महसूस की थी और अपने साम्राज्य के अंदर उन्होंने मॉल कल्चर को बढ़ावा दिया था। उन्होंने शहर के दक्षिणी छोर एक बड़े मीना बाजार की स्थापना की थी। यहां पर लोगों की जरूरत के सारे सामान की बिक्री के लिए अलग-अलग शेड बने हैं।

सुई से लेकर जहाज तक के सामान मिल जाते हैं

यहाँ के बारे मे कहा जाता था कि मीना बाजार में एक ही छत के नीचे सुई से लेकर जहाज तक के सामान मिल जाते थे। बेतिया महाराज ने जब इस बाजार की स्थापना की थी, तब इसकी चर्चा नेपाल सहित कई राज्यों में की जाती थी। वहां के कारोबारी भी यहाँ आया करते थे। कई समान ऐसे थे जिसे दूसरे राज्य से लाकर यहाँ बेचा जाता था। अभी की बात करें तो बाजार में एक ही छत के नीचे लगभग 3000 दुकानें हैं। आज भी जब शहर के या आस पास के इलाके मे रहने वाले लोगों के परिवार ने शादी ब्याह या कोई समारोह होता है तो खरीदारी के लिए जेहन में सबसे पहले मीना बाजार की ही याद आती है।

महाराज दिलीप सिंह ने बनवाए थे

बेतिया राजगुरु परिवार के प्रमोद व्यास इस बाजार के बारे मे बताते हुए कहते हैं कि महाराज दिलीप सिंह जिन्होने वर्ष 1694 से 1715 तक इस क्षेत्र पर शासन किया था, ने शहर के दक्षिणी हिस्से में इस बाजार की स्थापना की थी। महाराज के दरबार मे जो भी मेहमान आया करते थे, वे इस बाजार को देखने और खरीदारी करने जरूर जाते थे। जब अंग्रेजो के आगमन के बाद बेतिया अस्तित्व समाप्त हो गया तो ब्रिटिश काल में भी इस बाजार की चमक फीकी नहीं पड़ी, और यहाँ पहले की तरह ही कई राज्यों के व्यापारी सामान की खरीद बिक्री के लिए यहाँ आते रहे।

काफी अच्छा प्रबंध है यहाँ

बाजार के बीचोंबीच एक कुआं खुदवाया गया था, जिससे लोगों को पेय जल प्राप्त होता था। इतने वर्ष गुजर जाने के बाद भी आज भी उस कुएँ को देखा जा सकता है। बाजार मे सफाई की व्यवस्था के लिए महाराज की तरफ से कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती थी। रोशनी के लिए जगह-जगह दीप जलाए जाते थे। बाजार में प्रवेश के लिए चारों दिशाओं में द्वार बनाए गए थे। जल निकासी का भी कुशाल प्रबंध किया गया था। इनमें से कई निशानियां आज भी मौजूद है।

ये सारे सामान मिलते हैं

बता दें कि बेतिया का मीना बाजार आज भी शहर के व्यापार का एक बड़ा केंद्र है। आरएलएसवाई के पूर्व प्राचार्य डॉ ओम प्रकाश यादव के मुताबिक, यह बाजार आज के किसी भी मॉल से ज्यादा संपन्न है। अगर कुछ अंतर है तो बस इतना कि आज के मॉल बहुमंजिला, रोशनी से जगमग तथा आकर्षक हैं, तो वही मीना बाजार में इसकी कुछ कमी है। यहाँ कपड़े, जूते-चप्पल, वस्त्र, बर्तन, सोने-चांदी, मीट-मछली, पुस्तकें, दवा, जड़ी-बूटी, बांस की सामग्री, किसानों के लिए हसुआ-खुरपी, खाद्य पदार्थ, अनाज, मंडी, साग-सब्जी, फर्नीचर, मवेशियों के उपयोग व पूजा-पाठ की सामग्री की बिक्री के लिए अलग-अलग शेड बने हुए हैं।

About the Author :

Manish Kumar

पिछले 5 सालों से न्यूज़ सेक्टर से जुड़ा हुआ हूँ। इस दौरान कई अलग-अलग न्यूज़ पोर्टल पर न्यूज़ लेखन का कार्य कर अनुभव प्राप्त किया। अभी पिछले कुछ साल से बिहारी वॉइस पर बिहार न्यूज़, बिजनस न्यूज़, ऑटो न्यूज़ और मनोरंजन संबंधी खबरें लिख रहा हूँ। हमेशा से मेरा उद्देश्य लोगो के बीच सटीक और सरल भाषा मे खबरें पहुचाने की रही है।

Related Post