प्लास्टिक निर्मित कप-प्लेट तो आजकल आम हो चुका है, इसे आप सबने जरूर देखा होगा और कई बार इस्तेमाल में भी लाया होगा। लेकिन प्लास्टिक से बनी वस्तुएं न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि इंसानों के स्वास्थ्य के लिए भी घातक साबित हो रहा है। लेकिन क्या आप सोच सकते हैं कि इसका विकल्प मक्के के छिलके भी हो सकते हैं।
जी हाँ, मुजफ्फरपुर के मुरादपुर गांव के रहने वाले एमटेक पास मोहम्मद नाज मक्के के छिलके से कप, कोटरी, साबुन के रैपर आदि का बनाने में लगे हुए हैं। इसकी कीमत भी बहुत ही हलकी रखी जा रही है। महज एक रुपये में एक कप-प्लेट। मोहम्मद नाज उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान की ओर से आयोजित गांधी मैदान स्थित खादी माल परिसर में राज्य पुरस्कार प्रतियोगिता में भाग लेने आए हुए हैं, और मक्के के छिलके से कई प्रकार की उपयोगी सामग्री बना कर लोगों को आकर्षित करने में लगे हुए हैं।
नौकरी छोड़ कुछ अलग करने की चाह
मोहम्मद नाज एक बहुत ही सामान्य परिवार से हैं। उन्होंने साल 2016 में हैदराबाद के जवाहर लाल नेहरू टेक्निकल विश्वविद्यालय से एमटेक किया। उसके बाद प्राइवेट कपंनी में उन्हें अच्छे पैकेज की जॉब भी ऑफर हुई लेकिन वे हमेशा से कुछ अलग करने की चाहत रखते थे। इसी क्रम में उन्हें गांव जाने का मौका मिला।
गांव जाने के बाद एक रोज़ उनकी नज़र मक्के के छिलके पर पड़ी और तभी उनके दिमाग में आईडिया आया कि प्लास्टिक की बजाय छिलके से कप-प्लेट आदि सामग्री बनाई जा सकती है, जो पर्यावरण के लिए काफी फायदेमन्द साबित होगा। जब मक्के के छिलके से तैयार सामग्री की प्रदर्शनी विभिन्न जिलों में लगाई गई तो लोगों ने इसे खूब पसंद किया। नाज बताते हैं कि डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विवि पूसा के वैज्ञानिकों द्वारा भी उनके इस नए पहल की सराहना की गई है।
किसानों को भी मिलेगा इसका लाभ
मोहम्मद नाज ने बताया कि बिहार में मक्के की खेती बड़े पैमाने पर होती है। लेकिन इसके छिलके का कोई वैसा उपयोग नहीं हो पाता।लेकिन इसका लाभ समझाने के बाद किसान भाई बड़े पैमाने पर मक्के की खेती कर लभान्वित हो सकते हैं। किसान भाइयों से मक्के के छिलके प्राप्त कर प्लास्टिक की जगह ईको फ्रैंडली वस्तुओ का निर्माण कर उन्हें आर्थिक मदद कर सकते हैं।
आरंभ के दिनों में आए थे कुछ जगहों से आर्डर
नाज शुरू मे मक्के के छिलके से निर्मित प्लेट तैयार करते थे। वे गांव-गांव घूमकर इसका प्रचार प्रसार करते थे। कुछ लोगों ने उनके इस प्रयास की सराहना की और आर्डर भी दिए। बाद मे थोड़ी परेशानी हुई। मोहम्मद नाज एक दिन में एक हजार प्लेट तैयार कर अगले दिन उसकी बिक्री के लिए बाजार में जाते थे। पूंजी के अभाव में वे व्यापक पैमाने पर मशीन नहीं लगा सके, जिसके कारण प्रचार-प्रसार सही ढंग से नहीं हो पा रहा।
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